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स्पेशल: स्वच्छ बनाने की शानदार पहल, रोजाना सड़ी गली सब्जियों से 120 क्यूबिक मीटर बनती है 'बायोगैस' - 120 क्यूबिक मीटर बनती है बायोगैस

भीलवाड़ा के बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र ने अनूठी पहल की है. शहर को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने के लिए सड़ी-गली सब्जियों से बायोगैस और विद्युत का उत्पादन किया जा रहा है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि धरती में जो आवश्यक पौष्टिक तत्व की कमी है, उसकी भी इनसे बनी खाद से पूर्ति हो सकती है.

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बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र सड़ी गली सब्जियों से बना रहा बायोगैस
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Published : Dec 16, 2019, 1:58 PM IST

भीलवाड़ा. जिले के आरजिया गांव के पास स्थित बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र ने अनूठी पहल की है. इस अनुसंधान केंद्र में राजस्थान के पहले बायोगैस प्लांट की शुरुआत हुए 1 साल हो गया है. यहां रोजाना 120 क्यूबिक मीटर बायोगैस बनाई जाती है.

शहर की सड़ी-गली सब्जियों और एग्रो वेस्ट से इस गैस का उत्पादन किया जा रहा है. जो पूरे राजस्थान के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. अगर इसी तरह राजस्थान के अन्य जिलों में भी एग्रो वेस्ट प्लांट लग जाए तो निश्चित रूप से जो धरती में आवश्यक पोषक तत्व की कमी है. उसकी भी पूर्ति हो सकती है और सड़ी गली सब्जियों का उपयोग भी हो सकता है.

बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र सड़ी गली सब्जियों से बना रहा बायोगैस

बता दें कि भीलवाड़ा की बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक अनिल कोठारी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि इस प्लांट की शुरुआत हुए 1 वर्ष हो चुका है. यह आरके. के. वाई के तहत इस प्लांट की शुरुआत हुई. यह राजस्थान में पहला प्लांट है, जिनकी राजस्थान सरकार द्वारा फाइनेंस करने पर ही इसकी शुरुआत हुई.

ढाई करोड़ रुपए का प्लांट...

कोठारी ने बताया कि यह ढाई करोड़ रुपए का प्लांट है. इसका लोकार्पण 17 मार्च 2018 को हुआ था. लोकार्पण के बाद से ही इस प्लांट में 120 क्यूबिक मीटर बायोगैस प्रतिदिन बनती है. जहां 120 क्यूबिक मीटर का बायोगैस बनाने के लिए 3 टन से लगभग कचरा और बायोवेस्ट डालकर इस प्रकार की गैस बनाई जाती है. इसके प्रमुख उद्देश्य के सवाल पर कोठारी ने कहा कि वर्तमान में अपनी धरती में जो आवश्यक पोषक तत्व लेते हैं. वह वापस धरती को मिल जाए, यानि कि जो भी सड़ी गली हरी सब्जियां फल जो भी हैं. उनके आवश्यक पौष्टिक तत्व धरती को नहीं मिलते हैं. इसलिए उनके वेस्ट को अपने यहां लाकर वेस्ट का वापिस डी कंपोज किया जाता है. उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि शहर को स्वच्छ बनाना तथा उर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होना. यहां प्रतिदिन 120 क्यूबिक मीटर गैस का उत्पादन होता है. जिसमें 3 टन सब्जियां ,गोबर और एग्रोवेट से गैस का उत्पादन हो रहा है .साथ ही इससे शहर का पर्यावरण स्वच्छ बनाया जा सके.

यह भी पढे़ं : CM गहलोत ने की कानून-व्यवस्था की समीक्षा, भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के दिए निर्देश

सीएनजी में भी कन्वर्ट करते हैं बायोगैस...

अगर बायोगैस ज्यादा बन जाती है तो उसको हम सीएनजी में भी कन्वर्ट कर लेते हैं और सीएनजी से हम इंजन से विद्युत में कन्वर्ट करते हैं. जिससे इस अनुसंधान केंद्र में विद्युत की आवश्यकताओं की पूर्ति यहीं से हो जाती है. हमारा सरकार और जिला प्रशासन से अनुरोध है कि शहर में जो भी एग्रोवेस्ट व कचरा है, अगर यहां अवेलेबल करवा देते हैं तो बायोगैस बनाने में और भी आसानी हो सकती है.

शहरवासियों से अपील...

साथ ही उन्होंने शहरवासियों से भी अपील की है कि जो आपके घर में एग्रो बेस्ट कि सड़ी गली सब्जियां हैं, उनको नगर परिषद के ऑटो टिपर के माध्यम से हमारे यहां पहुंचाएं, जिससे शहर भी स्वच्छ व स्वस्थ रह सकें और हमारे यहां भी गैस का उत्पादन अच्छी तरह हो सके.

भीलवाड़ा. जिले के आरजिया गांव के पास स्थित बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र ने अनूठी पहल की है. इस अनुसंधान केंद्र में राजस्थान के पहले बायोगैस प्लांट की शुरुआत हुए 1 साल हो गया है. यहां रोजाना 120 क्यूबिक मीटर बायोगैस बनाई जाती है.

शहर की सड़ी-गली सब्जियों और एग्रो वेस्ट से इस गैस का उत्पादन किया जा रहा है. जो पूरे राजस्थान के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. अगर इसी तरह राजस्थान के अन्य जिलों में भी एग्रो वेस्ट प्लांट लग जाए तो निश्चित रूप से जो धरती में आवश्यक पोषक तत्व की कमी है. उसकी भी पूर्ति हो सकती है और सड़ी गली सब्जियों का उपयोग भी हो सकता है.

बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र सड़ी गली सब्जियों से बना रहा बायोगैस

बता दें कि भीलवाड़ा की बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक अनिल कोठारी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि इस प्लांट की शुरुआत हुए 1 वर्ष हो चुका है. यह आरके. के. वाई के तहत इस प्लांट की शुरुआत हुई. यह राजस्थान में पहला प्लांट है, जिनकी राजस्थान सरकार द्वारा फाइनेंस करने पर ही इसकी शुरुआत हुई.

ढाई करोड़ रुपए का प्लांट...

कोठारी ने बताया कि यह ढाई करोड़ रुपए का प्लांट है. इसका लोकार्पण 17 मार्च 2018 को हुआ था. लोकार्पण के बाद से ही इस प्लांट में 120 क्यूबिक मीटर बायोगैस प्रतिदिन बनती है. जहां 120 क्यूबिक मीटर का बायोगैस बनाने के लिए 3 टन से लगभग कचरा और बायोवेस्ट डालकर इस प्रकार की गैस बनाई जाती है. इसके प्रमुख उद्देश्य के सवाल पर कोठारी ने कहा कि वर्तमान में अपनी धरती में जो आवश्यक पोषक तत्व लेते हैं. वह वापस धरती को मिल जाए, यानि कि जो भी सड़ी गली हरी सब्जियां फल जो भी हैं. उनके आवश्यक पौष्टिक तत्व धरती को नहीं मिलते हैं. इसलिए उनके वेस्ट को अपने यहां लाकर वेस्ट का वापिस डी कंपोज किया जाता है. उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि शहर को स्वच्छ बनाना तथा उर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होना. यहां प्रतिदिन 120 क्यूबिक मीटर गैस का उत्पादन होता है. जिसमें 3 टन सब्जियां ,गोबर और एग्रोवेट से गैस का उत्पादन हो रहा है .साथ ही इससे शहर का पर्यावरण स्वच्छ बनाया जा सके.

यह भी पढे़ं : CM गहलोत ने की कानून-व्यवस्था की समीक्षा, भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने के दिए निर्देश

सीएनजी में भी कन्वर्ट करते हैं बायोगैस...

अगर बायोगैस ज्यादा बन जाती है तो उसको हम सीएनजी में भी कन्वर्ट कर लेते हैं और सीएनजी से हम इंजन से विद्युत में कन्वर्ट करते हैं. जिससे इस अनुसंधान केंद्र में विद्युत की आवश्यकताओं की पूर्ति यहीं से हो जाती है. हमारा सरकार और जिला प्रशासन से अनुरोध है कि शहर में जो भी एग्रोवेस्ट व कचरा है, अगर यहां अवेलेबल करवा देते हैं तो बायोगैस बनाने में और भी आसानी हो सकती है.

शहरवासियों से अपील...

साथ ही उन्होंने शहरवासियों से भी अपील की है कि जो आपके घर में एग्रो बेस्ट कि सड़ी गली सब्जियां हैं, उनको नगर परिषद के ऑटो टिपर के माध्यम से हमारे यहां पहुंचाएं, जिससे शहर भी स्वच्छ व स्वस्थ रह सकें और हमारे यहां भी गैस का उत्पादन अच्छी तरह हो सके.

Intro:नोट - यह स्पेशल स्टोरी है कृपया वॉइस और वहीं से करने का कष्ट करें

भीलवाड़ा- भीलवाड़ा जिले के बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र ने अनूठी पहल करते हुए शहर को स्वच्छ व स्वस्थ बनाने के लिए सडी गली सब्जियों से बायोगैस व विद्युत का उत्पादन किया जा रहा है । जहां कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे धरती में जो आवश्यक पोस्टिक तत्व की कमी है उसकी भी इनसे बनी खाद से पूर्ति हो सकती है।


Body:भीलवाड़ा जिले के आरजिया गांव के पास स्थित बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र ने अनूठी पहल की है। इस अनुसंधान केंद्र में राजस्थान का पहला बायोगैस प्लांट की शुरुआत हुए 1 वर्ष हो गया है । यहां प्रतिदिन 120 क्यूवेक मीटर बायोगैस बनाई जाती है । शहर की सड़ी गली सब्जियों व एग्रोवेस्ट से इस गैस का उत्पादन किया जा रहा है । जो पूरे राजस्थान के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है ।अगर इसी तरह राजस्थान के अन्य जिलों में भी एग्रो वेस्ट प्लांट लग जाए तो निश्चित रूप से जो धरती में आवश्यक पोषक तत्व की कमी है उसकी भी पूर्ति हो सकती है। और सड़ी गली सब्जियों का उपयोग भी हो सकता है। ईटीवी भारत की टीम आरजिया बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र पहुंचकर बायोगैस प्लांट की गुणवत्ता की जांच की। जहां ईटीवी भारत के कैमरे में सड़ी गली सब्जियों से बायो गैस बनती हुई कैद हुई।

भीलवाड़ा की बारानी कृषि अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक अनिल कोठारी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि इस प्लांट की शुरुआत हुए 1 वर्ष हो चुका है। यह आरके. के. वाई के तहत इस प्लांट की शुरुआत हुई । यह राजस्थान में पहला प्लांट है जिनकी राजस्थान सरकार द्वारा फाइनेंस करने पर ही इसकी शुरुआत हुई। यह ढाई करोड रुपए का प्लांट है । इसका लोकार्पण 17 मार्च 2018 को हुआ था। लोकार्पण के बाद से ही इस प्लांट में 120 कीविक मीटर बायोगैस प्रतिदिन बनती है। जहां 120 मीटर का बायोगैस बनाने के लिए 3 टन से लगभग कचरा व बायोवेस्ट डालकर इस प्रकार की गैस बनाई जाती है ।

इसका प्रमुख उद्देश्य के सवाल पर कोठारी ने कहा कि वर्तमान में अपनी धरती में जो आवश्यक पोषक तत्व लेते हैं। वह वापस धरती को मिल जाए। यानी कि जो भी सडी गली हरी सब्जियां फल जो भी है उनके आक्शयक पोस्टिक तत्व धरती को नहीं मिलते हैं ।उनको वेस्ट को अपने यहां लाकर वेस्ट का वापिस डी कंपोज करके न्यू ट्रेन के साथ ऑर्गेनिक कार्बन धरती में कम हो गया उसको वापस इससे बने खाद को धरती में देने से आवश्यक पोषक तत्व की पूर्ति होती है । हमारा उद्देश्य है कि शहर को स्वच्छ बनाना तथा उर्जा के मामले में आत्मनिर्भर होना है। यहां प्रतिदिन 120 क्वीक मीटर गैस का उत्पादन होता है। जिसमें 3 टन सब्जियां ,गोबर व एग्रोवेट से गैस का उत्पादन हो रहा है ।साथ ही इससे शहर का पर्यावरण स्वच्छ बनाया जा सके ।
अगर बायोगैस ज्यादा बन जाती है तो उसको हम सीएनजी में भी कन्वर्ट कर लेते हैं और सीएनजी से हम इंजन से विद्युत में कन्वर्ट करते हैं जिससे इस अनुसंधान केंद्र में हमारे को विद्युत की आवश्यकताओं की पूर्ति यहीं से हो जाती है। हमारी सरकार व जिला प्रशासन से अनुरोध है कि शहर में जो भी एग्रोवेस्ट व कचरा है व अगर हमारे को यहा अवेलेबल करवा देते हैं तो हमारे को बायोगैस बनाने में और भी आसानी हो सकती है। साथ ही में शहरवासियों से भी अपील करना चाहता हूं कि जो आपके घर में एग्रो बेस्ट कि सड़ी गली सब्जियां हैं उनको नगर परिषद के ऑटो टिपर के माध्यम से हमारे यहां पहुंचाएं जिससे शहर भी स्वच्छ व स्वस्थ रह सकें और हमारे यहां भी गैस का उत्पादन अच्छी तरह हो सके ।

अब देखना यह होगा कि शहरवासी बारानी अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक की अपील के बाद एग्रो बेस्ट में हरी सब्जियां पहुंचाते हैं जिससे आसानी से उनका उपयोग हो सके।

सोमदत्त त्रिपाठी ईटीवी भारत भीलवाड़ा

वन टू वन -अनिल कोठरी ,वरिष्ठ वैज्ञानिक वारानी कृषि अनुसंधान केंद्र भीलवाड़ा


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