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Bhilwara Special Holi: रंग तेरस पर महिलाओं ने होलियारों पर बरसाए कोड़े...200 साल से चली आ रही परंपरा - 200 years old traditional kodamar Holi

राजस्थान का मेवाड़ अपनी परंपराओं को लेकर देश-प्रदेश में अलग छाप छोड़ता है. इसी कड़ी में भीलवाड़ा जिले में पिछले 200 साल से कोड़ामार होली खेली (Bhilwara Special Kodamar Holi) जा रही है. ये होली धुलंडी के 13वें दिन यानि रंग तेरस के दिन कोड़ामार होली खेली जाती है.

Bhilwara Special Kodemar Holi
भीलवाड़ा में खेली गई कोड़ामार होली
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Published : Mar 30, 2022, 7:30 PM IST

Updated : Mar 30, 2022, 10:35 PM IST

भीलवाड़ा. राजस्थान का मेवाड़ अपनी प्राचीन परंपराओं को लेकर देश और प्रदेश में अनोखी छाप छोड़ता है. एक ऐसी वर्षों पुरानी परंपरा है जीनगर समाज की कोड़ा मार (Bhilwara Special Kodamar Holi) होली. लगभग 200 सालों से चली आ रही कोड़ामार होली धुलंडी के 13वें दिन रंग तेरस के उपलक्ष्य में खेली जाती है. इस परंपरा को भीलवाड़ा शहर में रहने वाले जीनगर समाज का बुजुर्ग और युवा अब तक निभाता आ रहा है. शहर के सराफा बाजार बड़े मंदिर के पास जिलेभर के जीनगर समाज के लोग एकत्रित होते हैं और कोड़ा मार होली का भरपूर आनंद लेते हैं. इस होली को लेकर पुलिस महकमे की ओर से पुख्ता इंतजाम किए गए. इसमें पुलिस का अतिरिक्त बल सराफा बाजार में तैनात किया गया था और ड्रोन से व्यवस्था पर नजर भी रखी जा रही थी

200 साल पहले प्रारंभ हुई थी परंपरा
स्थानीय निवासी नंदकिशोर जीनगर ने बताया कि समाज के विभिन्न वर्ग अपने-अपने तरीके से इस आनन्द को प्रकट करते हैं. इसी कड़ी में लगभग 200 वर्ष पूर्व स्थानीय जीनगर समाज के बुजुर्गों ने रंग तेरस पर कोड़ा मार होली के आयोजन को प्रारम्भ किया. तब से यह परंपरा बदस्तूर निभाई जा रही है. भीलवाड़ा की कोड़ामार होली यहां की शान और परंपरा बन गई है. इस रंग तेरस पर्व का जीनगर समाज को भी इंतजार रहता है. सराफा बाजार में पूरे उत्साह के साथ कोड़ामार होली खेली जाती है. इस दौरान समाज के हर वर्ग के लोग शामिल होते हैं.

भीलवाड़ा में खेली गई कोड़ामार होली

पढ़ें. मेवाड़ में बारूद की होली, यहां गुलाल अबीर से नहीं आतिशबाजी से जमता है रंग!

महिलाएं बरसाती हैं कोड़ा
जीनगर समाज के अध्यक्ष कैलाश जीनगर ने बताया कि गुलमंडी में पिछले 200 साल से रंग तेरस के दिन कोड़ामार होली खेली जाती है. इसका मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और देवर और भाभी के अटूट रिश्ते को दर्शाना है. इस परंपरा में भीलवाड़ा जिले और शहर के विभिन्न स्थानों से जीनगर समाज की महिलाएं ढोल नगाड़ों के साथ सराफा बाजार पहुंचती हैं. जहां समाज के बंधू उनका हंसी ठिठोली के साथ स्वागत करते हैं. परंपरा के तहत पुरुष या फिर देवर कड़ाव में भरा रंग महिलाओं पर डालते हैं और उनसे बचने के लिए महिलाएं कपड़े से बने कोड़े से प्रहार करती है.

Bhilwara Special Kodemar Holi
पुलिस प्रशासन भी तैनात

पढ़ें. राजस्थान में पर्यटकों पर चढ़ा होली का रंग, पुष्कर में उड़े गुलाल, चित्तौड़गढ़ में फाग का खुमार

इस दिन महिलाएं सूती साड़ियों को गूंदकर कोड़े बना लेती हैं और वहां पर रखे पानी और रंग से भरे बड़े कड़ाव के पास खड़ी हो जाती है. वहीं समाज के पुरुष कड़ाव से पानी की डोलची भरकर महिलाओं पर डालते है और महिलाएं उन पर कोड़े बरसाती हैं. कड़ाव पर जिस का कब्जा होता है वही इसमें विजेता होती है. कोड़ामार होली खेलने के बाद समाज के लिए सामूहिक भोज का आयोजन भी किया जाता है. जिसमें पूरे समाज के लोग स्नेह मिलन करते हैं.

भीलवाड़ा. राजस्थान का मेवाड़ अपनी प्राचीन परंपराओं को लेकर देश और प्रदेश में अनोखी छाप छोड़ता है. एक ऐसी वर्षों पुरानी परंपरा है जीनगर समाज की कोड़ा मार (Bhilwara Special Kodamar Holi) होली. लगभग 200 सालों से चली आ रही कोड़ामार होली धुलंडी के 13वें दिन रंग तेरस के उपलक्ष्य में खेली जाती है. इस परंपरा को भीलवाड़ा शहर में रहने वाले जीनगर समाज का बुजुर्ग और युवा अब तक निभाता आ रहा है. शहर के सराफा बाजार बड़े मंदिर के पास जिलेभर के जीनगर समाज के लोग एकत्रित होते हैं और कोड़ा मार होली का भरपूर आनंद लेते हैं. इस होली को लेकर पुलिस महकमे की ओर से पुख्ता इंतजाम किए गए. इसमें पुलिस का अतिरिक्त बल सराफा बाजार में तैनात किया गया था और ड्रोन से व्यवस्था पर नजर भी रखी जा रही थी

200 साल पहले प्रारंभ हुई थी परंपरा
स्थानीय निवासी नंदकिशोर जीनगर ने बताया कि समाज के विभिन्न वर्ग अपने-अपने तरीके से इस आनन्द को प्रकट करते हैं. इसी कड़ी में लगभग 200 वर्ष पूर्व स्थानीय जीनगर समाज के बुजुर्गों ने रंग तेरस पर कोड़ा मार होली के आयोजन को प्रारम्भ किया. तब से यह परंपरा बदस्तूर निभाई जा रही है. भीलवाड़ा की कोड़ामार होली यहां की शान और परंपरा बन गई है. इस रंग तेरस पर्व का जीनगर समाज को भी इंतजार रहता है. सराफा बाजार में पूरे उत्साह के साथ कोड़ामार होली खेली जाती है. इस दौरान समाज के हर वर्ग के लोग शामिल होते हैं.

भीलवाड़ा में खेली गई कोड़ामार होली

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महिलाएं बरसाती हैं कोड़ा
जीनगर समाज के अध्यक्ष कैलाश जीनगर ने बताया कि गुलमंडी में पिछले 200 साल से रंग तेरस के दिन कोड़ामार होली खेली जाती है. इसका मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और देवर और भाभी के अटूट रिश्ते को दर्शाना है. इस परंपरा में भीलवाड़ा जिले और शहर के विभिन्न स्थानों से जीनगर समाज की महिलाएं ढोल नगाड़ों के साथ सराफा बाजार पहुंचती हैं. जहां समाज के बंधू उनका हंसी ठिठोली के साथ स्वागत करते हैं. परंपरा के तहत पुरुष या फिर देवर कड़ाव में भरा रंग महिलाओं पर डालते हैं और उनसे बचने के लिए महिलाएं कपड़े से बने कोड़े से प्रहार करती है.

Bhilwara Special Kodemar Holi
पुलिस प्रशासन भी तैनात

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इस दिन महिलाएं सूती साड़ियों को गूंदकर कोड़े बना लेती हैं और वहां पर रखे पानी और रंग से भरे बड़े कड़ाव के पास खड़ी हो जाती है. वहीं समाज के पुरुष कड़ाव से पानी की डोलची भरकर महिलाओं पर डालते है और महिलाएं उन पर कोड़े बरसाती हैं. कड़ाव पर जिस का कब्जा होता है वही इसमें विजेता होती है. कोड़ामार होली खेलने के बाद समाज के लिए सामूहिक भोज का आयोजन भी किया जाता है. जिसमें पूरे समाज के लोग स्नेह मिलन करते हैं.

Last Updated : Mar 30, 2022, 10:35 PM IST
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