भरतपुर. भरतपुर के जैन संत ने ' श्री अभिधान राजेन्द्र कोष' नामक इस ज्ञान कोष की रचना की (Jain Holy Book In Bharatpur). आज भी लोकसभा के पुस्तकालय के साथ ही कैलिफोर्निया और शिकागो यूनिवर्सिटी समेत तमाम अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी के पुस्तकालयों की शोभा बढ़ा रहा है. भरतपुर के जैन संत राजेंद्र सूरीश्वर ने 10 हजार पेज का ये ग्रंथ लिखा.
14 में लिखा 14 में संपादित: अनाह गेट जैन मंदिर के सेवादार सुमेरचंद जैन ने बताया कि भरतपुर में जन्मे संत राजेंद्र सूरीश्वर ने करीब 1890 में इस ग्रंथ को लिखना शुरू किया. करीब 14 साल में 'श्री अभिधान राजेन्द्र कोष' की रचना की. इस ज्ञानकोष को 7 भागों में लिखा गया है. 10 हजार से अधिक पेज के इस ज्ञानकोष में करीब 35 किलो वजन है. पूरे ज्ञानकोष को लिखने में संत राजेन्द्र सूरीश्वर को करीब 14 वर्ष का समय लगा. उसके बाद करीब 14 वर्ष तक इस ग्रंथ का संपादन किया गया. कुल मिलाकर 28 वर्ष में इस जैन ग्रंथ की रचना पूर्ण हो पाई.
जैन आगमों का सार: सुमेर चंद जैन ने बताया कि इस ग्रंथ में संत राजेंद्र सूरीश्वर ने प्राकृत संस्कृत भाषा में जैन आगमों का सार संग्रहित किया है. जैन आगमों को चार वेदों के समान माना गया है. साथ ही इस ग्रंथ में नवतत्व, भूगोल, खगोल, ईश्वरवाद, गणितायोग जैसे विषयों पर भी विस्तार से लिखा गया है.
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ज्ञान कोष पर हो रहा शोध, हिंदी अनुवाद भी जल्द: सुमेर चंद जैन ने बताया कि श्री अभिधान राजेन्द्र कोष प्राकृत संस्कृत भाषा मे लिखित है इसलिए आज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए इस ग्रंथ का गुजरात की एक साध्वी हिंदी अनुवाद तैयार कर रही हैं. सुमेरचंद जैन ने बताया कि एक बार उपराष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन भरतपुर आए थे. उस समय उन्हें इस ग्रंथ की एक प्रति भेंट की गई थी. उपराष्ट्रपति ने वो प्रति भरतपुर के हिंदी साहित्य समिति को सौंप दी, जो आज भी वहां पर रखी है. साथ ही इस ग्रंथ की प्रतियां देश विदेश के जैन तीर्थों, कैलिफोर्निया व शिकागो यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में रखी हैं. आज भी जैन साहित्य के विद्यार्थी उस ग्रंथ पर शोध करते हैं.
ये थे जैन संत राजेन्द्र सूरीश्वर: जैन संत राजेन्द्र सूरीश्वर का 3 दिसंबर 1827 को भरतपुर में जन्म हुआ. उन्होंने 11 वर्ष की आयु में दीक्षा लेकर देश, विदेश की यात्रा शुरू कर दी थी. संत राजेन्द्र सूरीश्वर ने अपने जीवनकाल में 61 ग्रंथों की रचना की. शहर के अनाह गेट क्षेत्र स्थित जैन मंदिर में इस ग्रंथ को आज भी सुरक्षित रखा गया है. सुमेरचंद जैन ने बताया कि मंदिर में हर दिन ग्रंथ की धूप दीप से पूजा की जाती है.