भरतपुर. कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है और उनका आह्वान किया जाता है. भादों महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. इस दौरान 11 दिन तक बप्पा घरों में विराजते हैं और अंतिम दिन विधि-विधान से उनका विसर्जन कर दिया जाता है. गणेश जी अपने भक्तों के सारे कष्टों को हरते हैं. यही वजह है कि भरतपुर की स्थापना और लोहागढ़ किले की नींव रखने से पहले यहां त्रिनेत्र गणेश जी की स्थापना की गई.
क्यों हुई त्रिनेत्र गणेश जी की स्थापना
भरतपुर के अटल बंद गणेश मंदिर के पुजारी गुंजन पाठक बताते हैं कि गणेश मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है. भरतपुर की स्थापना 1733 ईस्वी में की गई थी, लेकिन अटल बंद गणेश जी की स्थापना भरतपुर शहर की स्थापना से भी पहले हो गई थी. पुजारी गुंजन पाठक बताते हैं कि पूर्वजों से सुनी कहानी के अनुसार गणेश जी की स्थापना भरतपुर शहर के वास्तु दोष निवारण के लिए की गई. यह प्रतिमा शहर के दक्षिण दिशा में ईशान कोण मुखी मुद्रा में विराजित है.
त्रिनेत्र प्रतिमा की पौराणिक कथा
गजवंदनम् चितयम् में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है. लोक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी स्वरूप अपने पुत्र गणेश को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की सारी शक्तियां गजानन में निहित हो गई. महागणपति षोड्श स्त्रौतमाला में विनायक के सौलह विग्रह स्वरूपों का वर्णन है. महागणपति अत्यंत विशिष्ट व भव्य है जो त्रिनेत्र धारण करते हैं, इस प्रकार ये माना जाता है कि रणथम्भौर के त्रिनेत्र गणेशजी महागणपति का ही स्वरूप है.
बरगद के पेड़ के नीचे स्थापित थी प्रतिमा
कहा जाता है कि पहले गणेश प्रतिमा को यहां एक विशाल बरगद के वृक्ष के नीचे स्थापित किया गया. काफी वर्षों बाद यहां पर मंदिर का निर्माण किया गया. पुजारी बताते हैं कि सभी नकारात्मक शक्तियां दक्षिण दिशा की ओर से आती हैं. ऐसे में गणेश जी की प्रतिमा दक्षिण दिशा में स्थापित की गई, ताकि दक्षिण दिशा से शहर की ओर आने वाली सभी नकारात्मक शक्तियों को रोका जा सके.
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राजस्थान में सिर्फ दो जगह त्रिनेत्र गणेश प्रतिमा
मंदिर के पुजारी गुंजन पाठक ने बताया कि पूरे प्रदेश में सिर्फ दो स्थानों पर ही गणेश जी की त्रिनेत्र चंद्रमौलि प्रतिमा है. एक प्रतिमा सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर के गणेश मंदिर में स्थापित है तो वहीं दूसरी प्रतिमा भरतपुर के अटल बंद मंदिर में रखी गई है.
स्वर्ण वर्क से होती थी सजावट
पुजारी गुंजन के मुताबिक त्रिनेत्र गणेश प्रतिमा की हमेशा सोने के वर्क से सजावट होती थी. लेकिन इस बार सिर्फ सिंदूर से प्रतिमा की सजावट की गई. पहली बार कोरोना की वजह से भक्तों के लिए फूल बंगला झांकी भी नहीं सजाई गई.
पहली बार दर्शनार्थियों को नहीं मिला प्रवेश
पुजारी गुंजन पाठक ने बताया कि अटल बंद गणेश मंदिर के द्वार सदैव भक्तों के लिए खुले रहे, लेकिन करीब 287 वर्ष के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब गणेश चतुर्थी के अवसर पर भी भक्तों को मंदिर के बाहर से ही दर्शन कर वापस लौटना पड़ा है.