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स्पेशलः घना से किनारा कर गया साइबेरियन सारस, जिसका इतिहास इस मुगल बादशाह की किताबों में दर्ज है... - मुगल सम्राट जहांगीर

विश्व धरोहर के रूप में पहचाने जाने वाले भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को यह पहचान यहां आने वाले साइबेरियन सारस और तमाम प्रवासी पक्षियों की वजह से मिली है. साइबेरियन सारस ने भले ही बीते 20 साल से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से मुंह मोड़ लिया हो, लेकिन इनका नाता घना से 500 साल पुराना है...पढ़िए ये रिपोर्ट...

Kevaladeo National Park, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
घना से साइबेरियन सारस ने मुंह मोड़ा
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Published : Apr 15, 2021, 6:07 PM IST

Updated : Apr 16, 2021, 9:37 PM IST

भरतपुर. विश्व धरोहर के रूप में पहचाने जाने वाले भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को यह पहचान यहां आने वाले साइबेरियन सारस और तमाम प्रवासी पक्षियों की वजह से मिली है. साइबेरियन सारस ने भले ही बीते 20 साल से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से मुंह मोड़ लिया हो, लेकिन इनका नाता घना से 500 साल पुराना है. बता दें, करीब 500 साल पहले मुगल सम्राट जहांगीर के चित्रकार उस्ताद मंसूर ने घना में आने वाले साइबेरियन सारस का संभवतः सबसे पहला चित्र बनाया था.

घना से किनारा कर गया साइबेरियन सारस

उस्ताद मंसूर ने बनाया सारस का पहला चित्र

पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि भरतपुर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से साइबेरियन सारस का 4 से 5 शताब्दी पुराना रिश्ता है. संभवत साइबेरियन सारस उससे पहले से भी भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आते रहे होंगे, लेकिन सबसे पुराना प्रमाण जहांगीरनामा पुस्तक में मिलता है. मुगल सम्राट जहांगीर के समय में उनके दरबारी चित्रकार उस्ताद मंसूर ने (साल 1590-1624) साइबेरियन सारस का सबसे पहला चित्र बनाया था. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से साइबेरियन सारस के जुड़ाव का इतिहास में सबसे पुराना प्रमाण संभवत यही है.

यह भी पढ़ेंः SPECIAL : बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह की पत्नी बल्लभ कुंवर की रहस्यमयी छतरी, जहां से टपकता है दूध

उस्ताद मंसूर का पक्षियों से जुड़ाव

पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि मुगल सम्राट जहांगीर को पक्षियों से काफी प्रेम था. उस वक्त मुगल सल्तनत की राजधानी आगरा हुआ करती थी और राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) आने जाने के लिए भरतपुर और बयाना होकर गुजरना होता था. उसी दौरान उस्ताद मंसूर ने यहां साइबेरियन सारस को देखा और उसका चित्र बनाया, यहां प्रवास के दौरान उस्ताद मंसूर ने साइबेरियन सारस के अलावा और भी पक्षियों के चित्र भी बनाए.

ऐसे घटते गए घना में साइबेरियन सारस

पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में सबसे पहले साइबेरियन सारस की गणना साल 1964 में हुई थी, जिसमें यहां पर 200 साइबेरियन सारस की मौजूदगी दर्ज की गई, लेकिन बाद में अफगानिस्तान और पाकिस्तान वाले क्षेत्र में साइबेरियन सारस के शिकार के चलते धीरे-धीरे घना में साइबेरियन सारस की आमद कम होती गई. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आखिर बार साल 2001 में दो साइबेरियन सारस आए और उसके बाद आज तक सारस लौट कर घना नहीं आए.

Kevaladeo National Park, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
घना में साबेरियन सारस का सफर

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घना में इसलिए आते थे साइबेरियन क्रेन

करीब 5 हजार किमी दूर स्थित मध्य एशिया से निकलने वाला साइबेरियन क्रेन भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पहुंचता था. साइबेरियन सारस के यहां आने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि उसके खाने के लिए यहां पर्याप्त भोजन मिलता था, इसके साथ ही उसे रहने और प्रजनन के लिए सुरक्षित वातावरण.

भरतपुर. विश्व धरोहर के रूप में पहचाने जाने वाले भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को यह पहचान यहां आने वाले साइबेरियन सारस और तमाम प्रवासी पक्षियों की वजह से मिली है. साइबेरियन सारस ने भले ही बीते 20 साल से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से मुंह मोड़ लिया हो, लेकिन इनका नाता घना से 500 साल पुराना है. बता दें, करीब 500 साल पहले मुगल सम्राट जहांगीर के चित्रकार उस्ताद मंसूर ने घना में आने वाले साइबेरियन सारस का संभवतः सबसे पहला चित्र बनाया था.

घना से किनारा कर गया साइबेरियन सारस

उस्ताद मंसूर ने बनाया सारस का पहला चित्र

पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि भरतपुर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से साइबेरियन सारस का 4 से 5 शताब्दी पुराना रिश्ता है. संभवत साइबेरियन सारस उससे पहले से भी भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आते रहे होंगे, लेकिन सबसे पुराना प्रमाण जहांगीरनामा पुस्तक में मिलता है. मुगल सम्राट जहांगीर के समय में उनके दरबारी चित्रकार उस्ताद मंसूर ने (साल 1590-1624) साइबेरियन सारस का सबसे पहला चित्र बनाया था. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से साइबेरियन सारस के जुड़ाव का इतिहास में सबसे पुराना प्रमाण संभवत यही है.

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उस्ताद मंसूर का पक्षियों से जुड़ाव

पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि मुगल सम्राट जहांगीर को पक्षियों से काफी प्रेम था. उस वक्त मुगल सल्तनत की राजधानी आगरा हुआ करती थी और राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) आने जाने के लिए भरतपुर और बयाना होकर गुजरना होता था. उसी दौरान उस्ताद मंसूर ने यहां साइबेरियन सारस को देखा और उसका चित्र बनाया, यहां प्रवास के दौरान उस्ताद मंसूर ने साइबेरियन सारस के अलावा और भी पक्षियों के चित्र भी बनाए.

ऐसे घटते गए घना में साइबेरियन सारस

पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में सबसे पहले साइबेरियन सारस की गणना साल 1964 में हुई थी, जिसमें यहां पर 200 साइबेरियन सारस की मौजूदगी दर्ज की गई, लेकिन बाद में अफगानिस्तान और पाकिस्तान वाले क्षेत्र में साइबेरियन सारस के शिकार के चलते धीरे-धीरे घना में साइबेरियन सारस की आमद कम होती गई. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आखिर बार साल 2001 में दो साइबेरियन सारस आए और उसके बाद आज तक सारस लौट कर घना नहीं आए.

Kevaladeo National Park, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
घना में साबेरियन सारस का सफर

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घना में इसलिए आते थे साइबेरियन क्रेन

करीब 5 हजार किमी दूर स्थित मध्य एशिया से निकलने वाला साइबेरियन क्रेन भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पहुंचता था. साइबेरियन सारस के यहां आने की सबसे बड़ी वजह यह थी कि उसके खाने के लिए यहां पर्याप्त भोजन मिलता था, इसके साथ ही उसे रहने और प्रजनन के लिए सुरक्षित वातावरण.

Last Updated : Apr 16, 2021, 9:37 PM IST
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