भरतपुर. जिले में कोरोना संक्रमण का कहर जारी है. अब तक कोरोना की चपेट में से जिले के 37 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. कोरोना संक्रमित मरीज की मौत के बाद जहां परिजनों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है, वहीं मृतक की अंत्येष्टि के लिए परिजनों को 'अग्नि परीक्षा' देनी पड़ती है. चिकित्सा विभाग, पुलिस प्रशासन और नगर निगम के बीच आपसी समन्वय के अभाव के चलते मृतक के परिजन अंत्येष्टि के लिए विभागों के चक्कर काट-काट कर परेशान हो जाते हैं. हालात यह है की कई बार तो परिजनों को शव उठाने तक के लिए अस्पताल से कोई मदद नहीं मिल पाती. ईटीवी भारत ने कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद उनके परिजनों को होने वाली परेशानी और विभागों की व्यवस्था की जमीनी हकीकत जानी.
शहर में 30 जून को एक 60 साल के व्यक्ति की मौत हो गई. मौत के बाद जब उसकी जांच की गई तो मृतक कोरोना पॉजिटिव पाया गया. मृतक का शव मोर्चरी में रखवा दिया गया और परिजनों को अगले दिन 1 जुलाई को सुबह 8 बजे मृतक की अंत्येष्टि कराने के लिए कहा गया. 1 जुलाई को सुबह 8 बजे मृतक के परिजन आरबीएम जिला अस्पताल स्थित मुर्दाघर पहुंचे, जहां परिजनों को पुलिस से एक सहमति पत्र लिखवा कर लाने के लिए कहा गया.
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मृतक का दामाद सहमति पत्र लिखवाने के लिए आरबीएम पुलिस चौकी पहुंचा, जहां से उन्हें मथुरा गेट थाने भेज दिया गया. लेकिन मथुरा गेट थाने पर भी उन्हें मृतक का शव लेने के लिए सहमति पत्र नहीं मिला और उन्हें वापस मुर्दाघर का रास्ता दिखा दिया गया. वापस मुर्दाघर पहुंचने पर चिकित्साकर्मियों ने परिजनों से बिना पुलिस के सहमति पत्र के शव को अंतिम संस्कार के लिए भेजने से इंकार कर दिया.
काफी खींचतान और जिम्मेदारों से बात करने के बाद फिर से परिजन आरबीएम पुलिस चौकी पहुंचे और वहां से एक सहमति पत्र लेकर एक पुलिसकर्मी मुर्दाघर आया. इस पूरी प्रक्रिया में परिजनों को करीब तीन घंटे तक परेशान होना पड़ा. उसके बाद चिकित्सा विभाग के कर्मचारियों ने पीपीई किट पहनकर शव को सुरक्षित एंबुलेंस में रखवाया और कुम्हेर गेट स्थित श्मशानघाट पहुंचवाया.
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निगम कर्मचारियों का इंतजार...
चिकित्सा विभाग की गाड़ी शव को लेकर कुम्हेर गेट श्मशान घाट पहुंच गई. लेकिन यहां पर शव की अंत्येष्टि में मदद करने के लिए निगम का कोई कर्मचारी नहीं मिला. जबकि कागजों के मुताबिक यहां 2 कर्मचारी ड्यूटी पर थे. निगम के जिम्मेदारों को कई बार फोन किया तब जाकर करीब पौन घंटे बाद कर्मचारी पहुंचे. मोर्चरी की गाड़ी के चालक विजय कुमार ने बताया कि श्मशानघाट में कभी भी निगम के कर्मचारी समय पर नहीं पहुंचते. हर बार निगम कर्मचारियों का एक-डेढ़ घंटे तक इंतजार करना पड़ता है.
परिजन ने रखा शव...
मुख्य चिकित्सा एंव स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. कप्तान सिंह से मिली जानकारी के अनुसार श्मशान घाट में संक्रमित मरीज का शव पहुंचने के बाद उसे गाड़ी से उतारने और उसका अंतिम संस्कार करवाने की जिम्मेदारी नगर निगम के कर्मचारियों की होती है. लेकिन 1 जुलाई को नगर निगम के दोनों कर्मचारियों ने गाड़ी से शव उतरवाने से साफ इंकार कर दिया. मजबूरन परिजन ने पीपीई किट पहनकर और गाड़ी के ड्राइवर की मदद से शव को गाड़ी से नीचे उतारा जा सका. उसके बाद मृतक के दामाद ने अकेले ही अंतिम संस्कार की सारी क्रिया पूरी की. हालांकि बाद में निगम के कर्मचारियों ने जमीन से शव को उठवाकर चिता पर रखवाया और परिजन ने अंतिम संस्कार किया.
इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की मशीन खराब...
कोरोना संक्रमित मरीज का श्मशान घाट में नगर निगम कि ओर से स्थापित किए गए इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में अंतिम संस्कार होना था. लेकिन मशीन खराब होने की वजह से यह संभव नहीं हो पाया. नगर निगम से मिली जानकारी के अनुसार मशीन का 1 बर्नर खराब है और उसे ठीक करने के लिए गुजरात से टेक्नीशियन को यहां आना है, जिसकी सूचना भेज दी गई है.
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मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. कप्तान सिंह ने बताया कि यदि किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मौत होती है तो उसका शव थ्री लेयर कवर में पैक करके पुलिस को सुपुर्द किया जाता है. उसके बाद नगर निगम की गाड़ी में उसे कुम्हेर गेट स्थित निगम के इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में पहुंचाया जाता है. जहां निगम के कर्मचारी उसका अंतिम संस्कार कराते हैं. इस पूरी प्रक्रिया में 2 से 5 परिजनों को उपस्थित रहने की अनुमति दी जाती है. दो को पीपीई किट दी जाती है. बॉडी को कवर से बाहर नहीं निकाला जाता है. साथ ही शव परिजनों को भी नहीं सौंपा जाता.