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पानी की कमी के कारण केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से मुंह मोड़ रहे प्रवासी पक्षी, बीते तीन दशक में कई प्रजातियों ने आना किया बंद

भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park) में पहले हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के पक्षी (Extinct species birds) पाए जाते थे, वहीं अब पानी की कमी के चलते पक्षी धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं. यही नहीं साइबेरियन (Siberian) सारस समेत कई प्रजाति के पक्षी तो यहां देखने को नहीं मिलते.

Water scarcity in Keoladeo National Park, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की कमी
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से पक्षियां विलुप्त
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Published : Jul 13, 2021, 12:34 PM IST

भरतपुर. पक्षियों का स्वर्ग माना जाने वाला विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park) बीते लंबे समय से पानी की कमी (Water crisis) की मार झेल रहा है. बीते वर्षों में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया और अब हालात यह हैं कि यहां से साइबेरियन (Siberian) सारस समेत कई प्रजाति के हजारों प्रवासी पक्षियों ने मुंह मोड़ लिया है. जिन पक्षियों के कलरव से केवलादेव घना गुंजायमान रहता था, ऐसे कितने ही पक्षी आज देखने को नहीं मिलते.

प्राकृतिक जल स्रोत सिमटे, जल संकट बढ़ा

पक्षी विशेषज्ञ डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा और सेवानिवृत्त रेंजर भोलू अबरार ने बताया कि पहले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में गंभीरी नदी, बाणगंगा नदी, पांचना बांध और रूपारेल नदी के माध्यम से पानी मिलता था. इससे यहां पर प्राकृतिक पानी के साथ ही पक्षियों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन भी उपलब्ध होता था, जिसकी वजह से देसी - विदेशी सैकड़ों प्रजाति के लाखों पक्षी यहां प्रभात करते थे. लेकिन अब प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया है और अब पहले की तरह पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा. जिसकी वजह से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब पहले की तरह पक्षियों के लिए जरूरी विविध प्रकार की वनस्पति और भोजन में कमी आई है, प्राकृतिक बदलाव हुए हैं, जिसके चलते पक्षियों की प्रजातियों में कमी के साथ ही संख्या में भी गिरावट आई है.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से पक्षियां विलुप्त

लाखों से हजारों में सिमटी संख्या

पक्षी विशेषज्ञों की माने तो जब तक केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिल रहा था, तब तक यहां पर लाखों की संख्या में पक्षी आते थे, लेकिन बीते वर्षों की पक्षी गणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो अब घना में औसतन 55 से 57 हजार तक पक्षी पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं साइबेरियन सारस समेत कई प्रजाति के पक्षी अब यहां देखने को नहीं मिलते.

पढ़ें- Special: भाजपा के विरोध प्रदर्शन से अलग किरोड़ी दिखा रहे अपना दमखम..क्या है ये सियासी संकेत?

इन प्रजातियों के पक्षियों ने मुंह मोड़ा

पक्षी विशेषज्ञ भोलू अबरार और डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से अब कई प्रजाति के पक्षियों ने पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया है. पहले कई प्रजाति के पक्षी केवलादेव घना में अच्छी तादाद में देखने को मिलते थे, लेकिन अब वो कहीं नजर नहीं आते.

Water scarcity in Keoladeo National Park, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की कमी
किन प्रजातियों ने साथ छोड़ा

साइबेरियन सारस : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की विश्वस्तरीय पहचान साइबेरियन सारस की वजह से हुई थी, लेकिन वर्ष 2002 के बाद से केवलादेव घना में साइबेरियन सारस में आना बंद कर दिया.

लार्ज कॉरवेंट : अब नहीं आता. पहले यह पक्षी अच्छी संख्या में आता था और घना में पेड़ों पर घौंसला बनाकर प्रजनन और प्रवास करता था.

पेंटेड स्टॉर्क : पहले पेंटेड स्टॉर्क करीब 10 हजार की संख्या में आते थे, लेकिन अब मुश्किल से 2 या ढाई हजार ही आ रहे हैं.

मार्वल टेल : यह पक्षी भी पहले घना में आता था, लेकिन अब इसने भी आना बंद कर दिया है.

रिंग टेल्ड फिशिंग ईगल : तिब्बत से आता था, लेकिन अब बिल्कुल दिखाई नहीं देता.

ब्लैक नेक स्टॉर्क : पहले अच्छी संख्या में आता था, लेकिन अब सिर्फ एक जोड़ा नजर आता है.

आउटर जीव तो अब देखने को ही नहीं मिलता.

कॉमन क्रेन : पहले घना में हजारों की संख्या में कॉमन क्रेन आते थे, लेकिन अब मुश्किल से 15-20 नजर आते हैं.

रिवर्टन बर्ड भी घना में देखने को नहीं मिलती

ग्रीब (डुगडुगी) : लिटल ग्रीब मिल जाता है, लेकिन ग्रेटर ग्रीब नजर नहीं आती.

ये थे प्राकृतिक जलस्रोत

पक्षी विशेषज्ञ डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि केवलादेव घना को 3 प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी मिलता था.

बाणगंगा नदी : मध्य अरावली यानी जयपुर की तरफ से बाणगंगा नदी का पानी घना तक पहुंचता था, लेकिन जयपुर में जमवारामगढ़ बनने के बाद बाणगंगा का पानी भी घना तक पहुंचना बंद हो गया.

गम्भीरी नदी/पांचना बांध : करौली की तरफ से गम्भीरी नदी का पानी और पांचना बांध के ओवरफ्लो का पानी भी यहां तक पहुंचता था, लेकिन राजनीति के चलते यहां से भी पानी मिलना बंद हो गया.

रूपारेल नदी : घना में पहले अलवर, हरियाणा और मेवात की तरफ से आने वाली रूपारेल नदी से पानी आता था, लेकिन अलवर में अरावली और अन्य बहाव क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप के चलते रूपारेल नदी सूख गई और घना को पानी मिलना बंद हो गया.

पढ़ें- Special : राजस्थान में कोरोना के बाद मंडराया जीका वायरस का खौफ, 3 साल पहले मचा चुका है तबाही

बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में अब पानी की किल्लत

डॉ. मेहरा ने बताया कि इन सभी स्रोतों का पानी घना में पहुंचने के बाद यमुना में मिलता था और यह पूरा एरिया बाढ़ ग्रस्त एरिया हुआ करता था, लेकिन वर्ष 1970 के बाद से पानी का प्रबंधन प्रभावित हुआ और अब घना को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा.

गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान अपनी पक्षी विविधता और जैव विविधता के लिए विश्व भर में पहचाना जाता है, लेकिन प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद होने के बाद से यह राष्ट्रीय उद्यान अब पानी की कमी झेल रहा है. हालांकि धरा के लिए फिलहाल गोवर्धन ट्रेन और चंबल से हर वर्ष 550 एमसीएफटी पानी उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है, लेकिन कई बार यह पानी भी पूरा नहीं मिल पाता. राज्य सरकार ने पिछले बजट घोषणा में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के लिए धौलपुर की चंबल नदी से घना तक पाइपलाइन डलवाने के लिए 570 करोड़ रुपए के बजट की घोषणा की थी, लेकिन वह कार्य अभी तक शुरू नहीं हो पाया है.

भरतपुर. पक्षियों का स्वर्ग माना जाने वाला विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park) बीते लंबे समय से पानी की कमी (Water crisis) की मार झेल रहा है. बीते वर्षों में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया और अब हालात यह हैं कि यहां से साइबेरियन (Siberian) सारस समेत कई प्रजाति के हजारों प्रवासी पक्षियों ने मुंह मोड़ लिया है. जिन पक्षियों के कलरव से केवलादेव घना गुंजायमान रहता था, ऐसे कितने ही पक्षी आज देखने को नहीं मिलते.

प्राकृतिक जल स्रोत सिमटे, जल संकट बढ़ा

पक्षी विशेषज्ञ डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा और सेवानिवृत्त रेंजर भोलू अबरार ने बताया कि पहले केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में गंभीरी नदी, बाणगंगा नदी, पांचना बांध और रूपारेल नदी के माध्यम से पानी मिलता था. इससे यहां पर प्राकृतिक पानी के साथ ही पक्षियों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन भी उपलब्ध होता था, जिसकी वजह से देसी - विदेशी सैकड़ों प्रजाति के लाखों पक्षी यहां प्रभात करते थे. लेकिन अब प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद हो गया है और अब पहले की तरह पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा. जिसकी वजह से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में अब पहले की तरह पक्षियों के लिए जरूरी विविध प्रकार की वनस्पति और भोजन में कमी आई है, प्राकृतिक बदलाव हुए हैं, जिसके चलते पक्षियों की प्रजातियों में कमी के साथ ही संख्या में भी गिरावट आई है.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से पक्षियां विलुप्त

लाखों से हजारों में सिमटी संख्या

पक्षी विशेषज्ञों की माने तो जब तक केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिल रहा था, तब तक यहां पर लाखों की संख्या में पक्षी आते थे, लेकिन बीते वर्षों की पक्षी गणना के आंकड़ों पर नजर डालें तो अब घना में औसतन 55 से 57 हजार तक पक्षी पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं साइबेरियन सारस समेत कई प्रजाति के पक्षी अब यहां देखने को नहीं मिलते.

पढ़ें- Special: भाजपा के विरोध प्रदर्शन से अलग किरोड़ी दिखा रहे अपना दमखम..क्या है ये सियासी संकेत?

इन प्रजातियों के पक्षियों ने मुंह मोड़ा

पक्षी विशेषज्ञ भोलू अबरार और डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से अब कई प्रजाति के पक्षियों ने पूरी तरह से मुंह मोड़ लिया है. पहले कई प्रजाति के पक्षी केवलादेव घना में अच्छी तादाद में देखने को मिलते थे, लेकिन अब वो कहीं नजर नहीं आते.

Water scarcity in Keoladeo National Park, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पानी की कमी
किन प्रजातियों ने साथ छोड़ा

साइबेरियन सारस : केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की विश्वस्तरीय पहचान साइबेरियन सारस की वजह से हुई थी, लेकिन वर्ष 2002 के बाद से केवलादेव घना में साइबेरियन सारस में आना बंद कर दिया.

लार्ज कॉरवेंट : अब नहीं आता. पहले यह पक्षी अच्छी संख्या में आता था और घना में पेड़ों पर घौंसला बनाकर प्रजनन और प्रवास करता था.

पेंटेड स्टॉर्क : पहले पेंटेड स्टॉर्क करीब 10 हजार की संख्या में आते थे, लेकिन अब मुश्किल से 2 या ढाई हजार ही आ रहे हैं.

मार्वल टेल : यह पक्षी भी पहले घना में आता था, लेकिन अब इसने भी आना बंद कर दिया है.

रिंग टेल्ड फिशिंग ईगल : तिब्बत से आता था, लेकिन अब बिल्कुल दिखाई नहीं देता.

ब्लैक नेक स्टॉर्क : पहले अच्छी संख्या में आता था, लेकिन अब सिर्फ एक जोड़ा नजर आता है.

आउटर जीव तो अब देखने को ही नहीं मिलता.

कॉमन क्रेन : पहले घना में हजारों की संख्या में कॉमन क्रेन आते थे, लेकिन अब मुश्किल से 15-20 नजर आते हैं.

रिवर्टन बर्ड भी घना में देखने को नहीं मिलती

ग्रीब (डुगडुगी) : लिटल ग्रीब मिल जाता है, लेकिन ग्रेटर ग्रीब नजर नहीं आती.

ये थे प्राकृतिक जलस्रोत

पक्षी विशेषज्ञ डॉक्टर सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि केवलादेव घना को 3 प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी मिलता था.

बाणगंगा नदी : मध्य अरावली यानी जयपुर की तरफ से बाणगंगा नदी का पानी घना तक पहुंचता था, लेकिन जयपुर में जमवारामगढ़ बनने के बाद बाणगंगा का पानी भी घना तक पहुंचना बंद हो गया.

गम्भीरी नदी/पांचना बांध : करौली की तरफ से गम्भीरी नदी का पानी और पांचना बांध के ओवरफ्लो का पानी भी यहां तक पहुंचता था, लेकिन राजनीति के चलते यहां से भी पानी मिलना बंद हो गया.

रूपारेल नदी : घना में पहले अलवर, हरियाणा और मेवात की तरफ से आने वाली रूपारेल नदी से पानी आता था, लेकिन अलवर में अरावली और अन्य बहाव क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप के चलते रूपारेल नदी सूख गई और घना को पानी मिलना बंद हो गया.

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बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में अब पानी की किल्लत

डॉ. मेहरा ने बताया कि इन सभी स्रोतों का पानी घना में पहुंचने के बाद यमुना में मिलता था और यह पूरा एरिया बाढ़ ग्रस्त एरिया हुआ करता था, लेकिन वर्ष 1970 के बाद से पानी का प्रबंधन प्रभावित हुआ और अब घना को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा.

गौरतलब है कि केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान अपनी पक्षी विविधता और जैव विविधता के लिए विश्व भर में पहचाना जाता है, लेकिन प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी मिलना बंद होने के बाद से यह राष्ट्रीय उद्यान अब पानी की कमी झेल रहा है. हालांकि धरा के लिए फिलहाल गोवर्धन ट्रेन और चंबल से हर वर्ष 550 एमसीएफटी पानी उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है, लेकिन कई बार यह पानी भी पूरा नहीं मिल पाता. राज्य सरकार ने पिछले बजट घोषणा में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के लिए धौलपुर की चंबल नदी से घना तक पाइपलाइन डलवाने के लिए 570 करोड़ रुपए के बजट की घोषणा की थी, लेकिन वह कार्य अभी तक शुरू नहीं हो पाया है.

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