भरतपुर. जिले में सरकार के इंजीनियरिंग कॉलेज को कृषि कॉलेज बनाया जा रहा है. कॉलेज कैंपस में अवैध रूप से गेहूं की खेती की जा रही है, जिससे लगता है कि यह कॉलेज इंजीनियर बनाने के लिए नहीं, बल्कि कृषि विशेषज्ञ बनाने का कॉलेज है. साथ ही, जानकारी में यह भी आ रहा है कि इंजीनियरिंग कॉलेज परिसर में की जा रही गेहूं की खेती की फसल किसी बड़ी नेता को देने और उसे खुश करने के लिए की जा रही है.
जानकारी के मुताबिक, इंजीनियरग कॉलेज कैंपस का एरिया 16.4 हेक्टेयर है, जिसमें करीब 4 हेक्टेयर में गेहूं की खेती की जा रही है और जो बोरवेल बच्चों के पानी पीने के लिए हैं, उनसे फसल की सिंचाई की जा रही है. गेहूं की खेती कराने में कौन खर्च कर रहा है और उसका मुनाफा कौन लेगा, इसका रिकॉर्ड या प्रस्ताव कॉलेज प्रशासन के पास भी नहीं है. जबकि, 1 बीघा गेहूं की फसल तैयार करने के लिए करीब 6,000 का खर्च आता है. मगर कॉलेज प्रशासन को यह तक नहीं पता कि इस गेहूं की खेती को तैयार करने में खर्च कौन कर रहा है. कॉलेज प्रिंसिपल डॉ. रवि गुप्ता के अनुसार, कॉलेज कैंपस खाली पड़ा हुआ है, जिसकी जमीन पर बागवानी करनी है. लेकिन, उससे पहले उस जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए गेहूं की खेती की जा रही है और खेती का खर्चा कॉलेज में काम करने वाले अस्थाई कर्मचारी उठा रहे हैं. यहां फसल सरसों की होगी या गेंहू की इस पर किसी ने कोई फैसला नहीं लिया.
अब एक बड़ा सवाल उठता है कि जिस जमीन पर गेहूं की खेती की जा सकती है. उस पर बागवानी क्यों नहीं की जा सकती और भूमि को उपजाऊ बनाने के नाम पर जिस तरह से अवैध रूप से गेहूं की खेती की जा रही है, उससे लगता है कि एक इंजीनियरिंग कॉलेज का वातावरण भी खराब हो रहा है. गेहूं की खेती का फायदा किसी बड़े नेता को देने के लिए या उसको खुश करने के लिए किया जा रहा है. कॉलेज प्राचार्य के अनुसार, कॉलेज में 550 स्टूडेंट्स हैं और एक स्टूडेंट से 60 हजार प्रति वर्ष फीस ली जाती है. इस हिसाब से करीब 28 लाख रुपये सालाना कॉलेज को आमदनी होती है, लेकिन कॉलेज का खर्च 30 लाख सालाना बैठता है, जो कि कॉलेज के लिए घाटा है. जबकि, राजस्थान के चिकित्सा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष गर्ग यहां से विधायक भी हैं और तकनीकी शिक्षा के मंत्री भी हैं. उसके बावजूद उनके विधानसभा क्षेत्र में स्थित सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में इस तरह की अवैध खेती की जा रही है और कॉलेज भी घाटे में जा रहा है.