भरतपुर. सर्प के दंश से राम कुमार के पैर में भयंकर विष फैल गया. एलोपैथिक चिकित्साकों ने रामकुमार के पैर को कटवाने का परामर्श दिया, लेकिन मुनियों की हजारों वर्ष प्राचीन जलौका थैरेपी ने न केवल रामकुमार के पैर को कटने से बचा लिया बल्कि अब वो स्वस्थ जीवन भी जी रहा है. ऐसे कितने ही असाध्य बीमारियों के मरीजों को हमारी प्राचीन जलौका थैरेपी से स्वास्थ्य लाभ हो रहा है.
क्या है जलौका थैरेपी
आयुर्वेदिक चिकित्सालय के चिकित्सक अंकित चतुर्वेदी ने बताया कि जलौका थैरेपी में बीमारी के उपचार के लिए जोंक का इस्तेमाल (use of leeches for treatment of disease) किया जाता है. इसमें बीमारी वाले स्थान/अंग पर जोंक को लगाया जाता है और वह उस स्थान से रक्त का चूंसड करती है. जोंक अशुद्ध रक्त को चूंस कर बाहर कर देती है. साथ ही जोंक एक एंजाइम छोड़ती हैं जिससे नई कोशिकाओं का निर्माण होता है. इसी प्रक्रिया को तीन से चार बार किया जाता है और मरीज को बीमारी से मुक्ति मिल जाती है.
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उगने लगे बाल
सरिता ( बदला हुआ नाम) कॉलेज छात्रा है. 2 वर्ष पूर्व अचानक से उसके बाल झड़ने लगे और हालात यह हो गए कि उसका सिर गंजा हो गया. इसकी वजह से सरिता के विवाह के लिए रिश्ता भी तय नहीं हो पा रहा था. लेकिन बीते करीब चार माह से सरिता डॉ. अंकित चतुर्वेदी की देखरेख में जलौका थैरेपी ले रही है. अब अंकित के सिर पर फिर से बाल उग आए हैं और वो धीरे-धीरे सामान्य होने लगी है.
सफेद दाग से मिली मुक्ति
डॉ. अंकित चतुर्वेदी ने बताया कि जनों का थैरेपी से सभी प्रकार के असाध्य रोगों का उपचार संभव है. शरीर पर सफेद दाग के निशान और चर्म रोगों के तो सैकड़ों मरीज जलौका थैरेपी से स्वस्थ हो चुके हैं. वहीं, घुटना दर्द, कमर दर्द, कुष्ठ रोग, बाय, गठिया जैसी अन्य बीमारियों में भी ये बहुत कारगर सिद्ध हो रही है.
तीन थैरेपी में लाभ
डॉक्टर अंकित चतुर्वेदी ने बताया कि किसी बीमारी के मरीज का कम से कम तीन बार जलौका थैरेपी की जाती है. प्रत्येक थैरेपी में करीब एक-एक महीने का अंतराल रखा जाता है. तीन बार की थैरेपी के बाद मरीज को स्वास्थ्य लाभ होना शुरू हो जाता है और करीब 5 थैरेपी तक उसे संपूर्ण आराम मिल जाता है.