भरतपुर. राजा मानसिंह हत्याकांड के समय से जुड़ी तमाम यादों को वरिष्ठ पत्रकार राकेश वशिष्ठ ने ईटीवी भारत से साझा करते हुए बताया '21 फरवरी 1985 का वह दिन आज भी मेरी आंखों के सामने घूमता रहता है. शाम 5 बजे तक पूरे जिले भर में राजा मानसिंह की हत्या की सूचना आग की तरह फैल गई. सूचना पाते ही जनता बेकाबू हो गई. उग्र जनता ने भरतपुर शहर के कोतवाली थाना कुम्हेर गेट चौकी और डीग में तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी के सरकारी आवास को आग लगा दी थी. हालात ये थे कि जिलेभर में 4 दिन तक कर्फ्यू लगाना पड़ा. राजा मान सिंह की अंतिम यात्रा में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे.
भरतपुर के राकेश वशिष्ठ उस वक्त पत्रकारिता में थे. वे कहते हैं, '21 फरवरी 1985 को दोपहर करीब 3 बजे राजा मानसिंह की गोलीबारी में मौत होने की सूचना मिली. हर तरफ से तरह-तरह की सूचनाएं आ रही थी, लेकिन जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन घटना की पुष्टि नहीं कर रहा था. उस समय सूचना के साधन भी इतने मजबूत नहीं थे. ऐसे में वह सूचना की पुष्टि के लिए राजा मान सिंह के निवास मोतीझील पर पहुंचे, जहां उन्हें उनकी बेटी कृष्णेंद्र कौर दीपा वायरलेस पर बात करती हुई मिली. वो घटना के संबंध में चीफ सेक्रेटरी से बात कर रही थीं. मुझे उनकी बेटी ने ही बताया कि राजा मानसिंह अब नहीं रहे.'
थाना छोड़ भाग गई थी पुलिस
पत्रकार राकेश वशिष्ट ने बताया कि पूरे जिले भर में राजा मानसिंह की हत्या की सूचना आग की तरह फैल गई. जनता आक्रोश से भर गई और उग्र भीड़ ने भरतपुर के कोतवाली थाना, कुम्हेर गेट चौकी और डीग कस्बे के तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी के सरकारी आवास में आग लगा दी. हालात ये थे कि जनता का आक्रोश देख कर डीग के थाने और पुलिस चौकियों से सभी पुलिसकर्मी भाग छूटे. जगह-जगह जनता के आक्रोश की खबरें आने लगी. जनता सड़कों पर उतर आई थी.
यह भी पढ़ें : एक शाही मर्डर, जिसकी वजह से छोड़नी पड़ी थी मुख्यमंत्री को गद्दी
पुलिस ने गुपचुप तरीके से निकाला राजा मानसिंह का शव
पत्रकार राकेश वशिष्ठ ने बताते हैं 'जनता के गुस्से को देखते हुए पुलिस के सामने राजा मानसिंह के शव को निकालना सबसे बड़ी चुनौती बन गई थी. ऐसे में पुलिस ने गुपचुप तरीके से राजा मानसिंह के शव को गोवर्धन, मथुरा होते हुए भरतपुर की पुलिस लाइन में लाकर रखा. वहीं तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी को भी भारी पुलिस जाप्ते के बीच मथुरा होते हुए जयपुर पहुंचाया. बाद में घटनाक्रम को लेकर कई लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई.
क्या थी वो घटना?
यह घटना 21 फरवरी, 1985 की है. राजस्थान के भरतपुर जिले के डीग में चुनाव के दौरान उपजे एक विवाद के बाद पुलिस ने पूर्व रियासत के सदस्य मानसिंह को गोली चला कर मार डाला. मान सिंह पर आरोप था कि उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान अपनी जीप से पहले कांग्रेस की सभा का मंच धराशाई कर दिया और फिर तत्कालीन मुख्य मंत्री शिव चरण माथुर के हेलिकॉप्टर को जीप से टक्कर मार कर क्षतिग्रस्त कर दिया.
यह विवाद तब पैदा हुआ, जब विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान कथित रूप से डीग में कांग्रेस समर्थकों ने लक्खा तोप के पास अपना परचम लहरा दिया. मान सिंह डीग से निर्दलीय होकर चुनाव मैदान में थे. उनके समर्थकों को यह गवारा नहीं हुआ. इसके अलावा भी दोनों पक्ष के कार्यकर्ताओ में कटुता की कुछ और घटनाएं भी हुई. इससे मान सिंह कुपित हो गए. चुनाव प्रचार के दौरान 20 फरवरी को मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर का दौरा था.
राजा के पक्ष के लोगों का कहना था कि मानसिंह के झंडे की तौहीन की गई थी. यह बड़ा अपमानकारी लगा. लिहाजा मान सिंह जी ने कांग्रेस की सभा न होने देने की ठान ली थी. वे अपने कार्यकर्ताओ के साथ जीप में सवार होकर पहुंचे और मंच तोड़ दिया. फिर हेलीकॉप्टर भी जीप का निशाना बना. लेकिन इसमें कोई चोटिल नहीं हुआ.
मुख्यमंत्री माथुर सड़क मार्ग से वापस जयपुर लौट गए. पुलिस ने इस बारे में मानसिंह के विरुद्ध मुकदमे दर्ज किए. इसके अगले दिन 21 फरवरी 1985 को पुलिस ने डीग की अनाज मंडी में जीप पर सवार होकर जाते मान सिंह पर गोली चलाई. इसमें सिंह और उनके दो सहयोगी मारे गए. इस जीप में विजय सिंह साथ थे. लेकिन वे बच गए.
बाजार बंद, 4 दिन तक कर्फ्यू
वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि जनता को काबू करना बहुत मुश्किल हो रहा था. ऐसे में हालात को काबू करने के लिए आरएसी को तैनात किया गया. बाजार या शहर में जो कोई भी व्यक्ति घूमता हुआ या आता हुआ मिलता, पुलिस उसी की पिटाई करती और उसे गिरफ्तार कर लेती. उस समय हालात को देखते हुए गिरफ्तार किए गए लोगों को कोतवाली थाने में रखने के बजाय पुलिस लाइन में रखा गया. अगले चार दिन तक कर्फ्यू के हालात रहे.
यह भी पढ़ें : SPECIAL: देर है लेकिन अंधेर नहीं, राजा मानसिंह हत्याकांड के आरोपियों को आखिरकार मिल ही गई सजा
अंतिम यात्रा में हजारों की भीड़
पत्रकार राकेश वशिष्ठ ने बताया 'जिस समय राजा मानसिंह की अंतिम यात्रा निकाली जा रही थी, तो हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी. बिजली घर से मोतीझील तक पहुंचने में 4 घंटे का समय लगा और हजारों की भीड़ की मौजूदगी में राजा मानसिंह की अंत्येष्टि की गई. अंतिम यात्रा में राजस्थान व अन्य प्रदेशों के कई राजनेता शामिल हुए थे. तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर के इस्तीफा देने और सीबीआई को जांच सौंपने के बाद हालात सामान्य हुए.
प्रत्याशियों ने अस्थि कलश के साथ मांगे थे वोट
पत्रकार राकेश वशिष्ठ ने बताते हैं कि राजा मानसिंह हत्याकांड के बाद हालात भले ही सामान्य हो गए थे, लेकिन लोगों के दिलों में आग लगी हुई थी. जब विधानसभा चुनाव हुए तो लोगों के मन में कांग्रेस को हराने के मानस था. वहीं राजपरिवार की ओर से जिन उम्मीदवारों को समर्थन था, उन्हें राजा मानसिंह के अस्थि कलश दिए गए. जब उम्मीदवार जनता के बीच समर्थन मांगने के लिए निकलते तो राजा मानसिंह का अस्थि कलश साथ में रखते और जनता उस अस्थि कलश को देख करके यह पहचान जाती थी कि राज परिवार का समर्थन इस उम्मीदवार को हैं.
हालात यह थे कि उन चुनावों में भरतपुर की सभी सीटों पर कांग्रेस की भारी हार हुई, लेकिन भरतपुर शहर की सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी गिरिराज प्रसाद तिवारी जीत गए. उसके पीछे की वजह यह रही कि अन्य दो उम्मीदवार (पंडित रामकिशन व मुकुट बिहारी गोयल) राजा मान सिंह का अस्थि कलश ले आये. इससे जनता भ्रमित हो गई और समझ नहीं पाई कि राजपरिवार का समर्थन किसको है. ऐसे में वोट बंट गए और कांग्रेस प्रत्याशी गिरिराज प्रसाद तिवारी जीत गया.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में मथुरा की जिला अदालत ने बहुचर्चित भरतपुर के मानसिंह हत्याकांड में दोषी पाए गए सभी 11 पुलिस कर्मचारियों को उम्रकैद व 12-12 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है. जिला जज साधना रानी ठाकुर ने 35 साल से जारी इस मुकदमे में बुधवार को सजा का एलान किया. अदालत के सुनाए गए फैसले के बाद मानसिंह की पुत्री व राजस्थान की पूर्व कैबिनेट मंत्री कृष्णेंद्र दीपा कौर ने अदालत के निर्णय और दोषियों को सुनाई गई सजा पर संतोष व्यक्त किया और कहा कि आखिर 35 साल बाद ही सही, न्याय तो मिला.
यह भी पढ़ें : वो सियासी कत्ल जिसने हिला दी थी मुख्यमंत्री की कुर्सी की चूलें, दिल्ली तक मचा था बवंडर
कार्रवाई बहुत लंबी चली. पुलिस ने अपने पक्ष में 17 गवाह पेश किए, जबकि मान सिंह की तरफ से कोई 61 गवाह कार्रवाई से गुजरे. इस लंबी अवधि में 1700 से अधिक सुनवाई की तारीखें गुजरी और कोई एक हजार दस्तावेज भी अदालत की नजरों से गुजरे. 35 साल चले मुकदमे में 26 जज बदल गए, 27वें ने फैसला. खास बात यह है कि सभी अभियुक्त 60 साल से ऊपर के हैं और डीएसपी कान सिंह भाटी अस्सी साल से ऊपर के हैं. घटना भरतपुर की जिले की थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर मामले की सुनवाई उत्तर प्रदेश में मथुरा की अदालत में हुई.