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Disclosure in Study Report: तीन दशक में बदला भरतपुर का जलवायु तंत्र, बारिश के औसत दिनों में 20% की गिरावट...प्रवासी पक्षियों की संख्या भी घटी

भरतपुर की आबोहवा में पिछले तीन दशकों में काफी बदलाव (Climate system changed of Bharatpur) आया है. ये बातें हवाहवाई नहीं हैं. तीन दशकों में हुए बदलावों के आंकड़ों की अध्ययन रिपोर्ट (Disclosure in Study Report) को देखें तो जिले का जलवायु तंत्र काफी बदला है. यहां बारिश के औसत दिनों में कमी आई है तो सर्दी के न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी हुई है. इस बदलाव का असर यह भी रहा है कि यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्या में भी कमी आई है. पढ़ें पूरी खबर...

Disclosure in Study Report
तीन दशक में बदला भरतपुर का जलवायु तंत्र
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Published : Dec 20, 2021, 8:11 PM IST

Updated : Dec 20, 2021, 9:25 PM IST

भरतपुर. पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन और उसका असर देखने को मिल रहा है. बीते तीन दशक में जलवायु में हुए बदलावों के आंकड़ों के अध्ययन (Disclosure in Study Report) में सामने आया है कि भरतपुर का जलवायु तंत्र इस परिवर्तन से काफी प्रभावित (Climate system changed of Bharatpur) हुआ है. मौसम विभाग के आंकड़ों की मानें तो बीते तीन दशक में भरतपुर जिले में बरसात के औसत दिनों (average rainy days of Bharatpur) में गिरावट दर्ज की गई है. इसके साथ ही सर्दियों के न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी हुई है. इसका सीधा असर विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले प्रवासी पक्षियों पर देखने को मिला है.

राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (आरएसएनएच) के निदेशक एवं पर्यावरणविद डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा के निर्देशन में बीएससी स्टूडेंट हर्ष सिंघल ने 'क्लाइमेट चेंज एंड द अविफौनल पैटर्न ऑफ द वेटलैंड्स इन एंड अराउंड केवलादेव नेशनल पार्क' विषय पर अध्ययन किया. जबिक शोधार्थी हर्ष सिंघल ने विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फेलो के रूप में इस पर स्टडी की है.

पढ़ें. भरतपुर में शाकुंतलम : दंपती ने घर के परिसर में बसा दिया पूरा जंगल..जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण बेमिसाल

20% कम हुए बरसात के दिन

डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि शोधार्थी हर्ष सिंघल ने वर्ष 1990 से 2020 तक के बरसात के आंकड़ों का अध्ययन किया है. सिंघल ने बताया कि 1991 से 2000 तक के दशक में जहां बरसात के दिन औसतन 35 तक हुआ करते थे. वहीं वर्ष 2011 से 2020 तक बरसात के दिन 25 से 27 तक ही सिमट गए हैं. यानी 30 वर्ष में बरसात के औसत दिनों में करीब 20% तक की गिरावट दर्ज की गई.

Disclosure in Study Report
केवलादेवी उद्यान में कम हुए प्रवासी पक्षी

पढ़ें. Winter Special Dishes: सर्दियों में बढ़ा अजमेर का जायका, बाजारों में गुड़, तिल, मूंगफली और मेवों से बने व्यंजनों की डिमांड बढ़ी

बढ़ गया सर्दियों का न्यूनतम तापमान

अध्ययन में सामने आया है कि वर्ष 1991 से 2000 के दशक में जहां सर्दियों के मौसम में औसत न्यूनतम तापमान 3 से 4 डिग्री रहा करता था, अब वर्ष 2011 से 2020 के दौरान यह 6 से 7 डिग्री तक पहुंच गया है. यानी सर्दियों के औसत न्यूनतम तापमान में 2 से 3 डिग्री तक कि वृद्धि हुई है, जो कि जलवायु में बड़े परिवर्तन का सूचक है.

Disclosure in Study Report
सर्दी का न्यूनतम तापमान बढ़ा

पढ़ें. Bharatpur Government School: वर्षों से गंदे पानी में डूबा स्कूल, बच्चे शिवालय में पढ़ने को मजबूर...और सरकार मना रही सफलता का जश्न

पक्षियों की कॉलोनी में 70 फीसदी कमी

अध्ययन के आंकड़ों में जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले प्रवासी पक्षियों के घोंसलों पर देखने को मिला है. वर्ष 1991 में जहां केलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों के 5549 घोंसले दर्ज किए गए थे. वहीं वर्ष 2020 में यह घोंसले सिर्फ 1586 दर्ज किए गए हैं, यानी 3 दशक में इनमें करीब 70 फीसदी कमी आई है.

कई वर्ष सूखा का असर

वहीं जिले में बीते 3 दशक में कई साल ऐसे भी रहे जब बहुत कम बरसात की वजह से उद्यान में प्रवासी पक्षियों ने घोंसले ही नहीं बनाए. उद्यान प्रशासन के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1997, 1999, 2000, 2002, 2003, 2004, 2006 और 2009 में घोंसलों की संख्या शून्य रही.

विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फेलो हर्ष सिंघल ने बताया कि उन्होंने यह स्टडी करीब एक साल में पूरी की है. इसमें मौसम विभाग, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और सरसों अनुसंधान निदेशालय से मिले 30 साल के आंकड़ों के आधार पर अध्ययन किया है.

भरतपुर. पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन और उसका असर देखने को मिल रहा है. बीते तीन दशक में जलवायु में हुए बदलावों के आंकड़ों के अध्ययन (Disclosure in Study Report) में सामने आया है कि भरतपुर का जलवायु तंत्र इस परिवर्तन से काफी प्रभावित (Climate system changed of Bharatpur) हुआ है. मौसम विभाग के आंकड़ों की मानें तो बीते तीन दशक में भरतपुर जिले में बरसात के औसत दिनों (average rainy days of Bharatpur) में गिरावट दर्ज की गई है. इसके साथ ही सर्दियों के न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी हुई है. इसका सीधा असर विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले प्रवासी पक्षियों पर देखने को मिला है.

राजपूताना सोसायटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (आरएसएनएच) के निदेशक एवं पर्यावरणविद डॉ. सत्यप्रकाश मेहरा के निर्देशन में बीएससी स्टूडेंट हर्ष सिंघल ने 'क्लाइमेट चेंज एंड द अविफौनल पैटर्न ऑफ द वेटलैंड्स इन एंड अराउंड केवलादेव नेशनल पार्क' विषय पर अध्ययन किया. जबिक शोधार्थी हर्ष सिंघल ने विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फेलो के रूप में इस पर स्टडी की है.

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20% कम हुए बरसात के दिन

डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने बताया कि शोधार्थी हर्ष सिंघल ने वर्ष 1990 से 2020 तक के बरसात के आंकड़ों का अध्ययन किया है. सिंघल ने बताया कि 1991 से 2000 तक के दशक में जहां बरसात के दिन औसतन 35 तक हुआ करते थे. वहीं वर्ष 2011 से 2020 तक बरसात के दिन 25 से 27 तक ही सिमट गए हैं. यानी 30 वर्ष में बरसात के औसत दिनों में करीब 20% तक की गिरावट दर्ज की गई.

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केवलादेवी उद्यान में कम हुए प्रवासी पक्षी

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बढ़ गया सर्दियों का न्यूनतम तापमान

अध्ययन में सामने आया है कि वर्ष 1991 से 2000 के दशक में जहां सर्दियों के मौसम में औसत न्यूनतम तापमान 3 से 4 डिग्री रहा करता था, अब वर्ष 2011 से 2020 के दौरान यह 6 से 7 डिग्री तक पहुंच गया है. यानी सर्दियों के औसत न्यूनतम तापमान में 2 से 3 डिग्री तक कि वृद्धि हुई है, जो कि जलवायु में बड़े परिवर्तन का सूचक है.

Disclosure in Study Report
सर्दी का न्यूनतम तापमान बढ़ा

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पक्षियों की कॉलोनी में 70 फीसदी कमी

अध्ययन के आंकड़ों में जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर विश्व विरासत केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आने वाले प्रवासी पक्षियों के घोंसलों पर देखने को मिला है. वर्ष 1991 में जहां केलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों के 5549 घोंसले दर्ज किए गए थे. वहीं वर्ष 2020 में यह घोंसले सिर्फ 1586 दर्ज किए गए हैं, यानी 3 दशक में इनमें करीब 70 फीसदी कमी आई है.

कई वर्ष सूखा का असर

वहीं जिले में बीते 3 दशक में कई साल ऐसे भी रहे जब बहुत कम बरसात की वजह से उद्यान में प्रवासी पक्षियों ने घोंसले ही नहीं बनाए. उद्यान प्रशासन के आंकड़ों की मानें तो वर्ष 1997, 1999, 2000, 2002, 2003, 2004, 2006 और 2009 में घोंसलों की संख्या शून्य रही.

विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फेलो हर्ष सिंघल ने बताया कि उन्होंने यह स्टडी करीब एक साल में पूरी की है. इसमें मौसम विभाग, केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान और सरसों अनुसंधान निदेशालय से मिले 30 साल के आंकड़ों के आधार पर अध्ययन किया है.

Last Updated : Dec 20, 2021, 9:25 PM IST
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