भरतपुर. पुरातन समय में भगवान विष्णु के अवतार (Lord Vishnu Varaha avatar) वराह भगवान समुद्र के अंदर से पृथ्वी को सुरक्षित निकाल कर ले आए थे. लेकिन कलयुग में उन्हीं वराह भगवान के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है. शहर के पुरोहित मोहल्ला में स्थित राजकीय सुपुर्दगी श्रेणी के ऐतिहासिक वराह भगवान मंदिर का परिसर पुजारी के भाई की ओर से अवैध तरीके से बेच दिया गया है. आरोपी लाखों रुपये में मंदिर परिसर को बेचकर चंपत हो गया और इधर देवस्थान विभाग सोता रहा. इतना ही नहीं, मंदिर की ऐतिहासिक प्रतिमा को भी मंदिर परिसर के कोने में स्थापित कर दिया है.
वर्षों पहले सुपुर्द किया था मंदिरः शहर के पुरोहित मोहल्ला में वराह भगवान का ऐतिहासिक मंदिर करीब 1363.92 वर्ग फुट जमीन पर बना है. मंदिर की प्रतिमा भी ऐतिहासिक है. मंदिर राजस्थान सरकार के देवस्थान विभाग की ओर से नियंत्रित है. इस मंदिर की सुपुर्दगी वर्षों पहले निन्नू राम (निनुआ राम) को की गई थी. निनुआ राम की मौत के बाद सुपुर्दगी विभाग की ओर से उनके बेटे वेद प्रकाश के नाम कर दी गई. चूंकि निनुआ राम के तीन बेटे थे (ओमप्रकाश, वेदप्रकाश और सुरेश) तो मंदिर परिसर को तीन भागों में बांट दिया गया. पुजारी वेद प्रकाश की मौत 12 मार्च 1994 हो गई. उसके बाद उनके परिजन मंदिर की सेवा पूजा करते रहे, लेकिन कोई सुपुर्दनामा नहीं हुआ.
12 लाख में बेच दिया मंदिर परिसरः वर्ष 2018 में पुजारी के आरोपी भाई सुरेश चंद पुत्र निनुआ राम ने अपने हिस्से का मंदिर परिसर का तीसरा भाग 12 लाख रुपये (Priest Brother Illegally Sold Temple Premises) कीमत में बेच दिया. आरोपी सुरेश चंद्र पैसे लेकर शहर से फरार हो गया.
कोने में स्थापिक की प्रतिमाः जिन वराह भगवान की मूर्ति और मंदिर के लिए करीब 1363.92 वर्ग फुट जमीन निर्धारित की गई. उस पूरी जमीन पर आज पुजारी का पूरा परिवार काबिज है. इतनी बड़ी भूमि में भगवान वराह की मूर्ति को स्थापित करने के लिए उचित स्थान तक नसीब नहीं हो पा रहा है. हाल यह है कि प्राचीन मूर्ति को परिसर के एक कोने में स्थापित कर दिया गया है.
पढ़ें : शादी देव मंदिर: जहां हर कुंवारों की खुलती है किस्मत, दिवाली पर दर्शन मात्र से दूर हो जाती हैं बाधाएं
सोता रहा विभागः मंदिर के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे बृजभूषण भारद्वाज ने बताया कि मंदिर परिसर की जमीन की पहचान को लेकर (Historical temple of Lord Varaha located in Bharatpur) उनकी ओर से समय-समय पर देवस्थान विभाग के अधिकारियों को सूचित किया गया. लेकिन विभाग के अधिकारियों की ओर से कभी भी मंदिर परिसर को अतिक्रमण मुक्त कराने के लिए पुख्ता प्रयास नहीं किए गए.
सूचना के बावजूद हो गई रजिस्ट्रीः बृजभूषण भारद्वाज की ओर से बार-बार विभाग को सचेत करने पर वर्ष 2017 में देवस्थान विभाग ने उप पंजीयक को पत्र लिखकर सूचित किया कि वराह भगवान का मंदिर सुपुर्द की श्रेणी का मंदिर है. मंदिर की भूमि को पुजारी परिवार की ओर से बेचने का प्रयास किया जा रहा है. यह मंदिर देवस्थान विभाग का राजस्थान राजपत्र में दर्ज सरकारी मंदिर है, जिसकी किसी भी भूमि या संपदा को खुर्द बुर्द करने का अधिकार किसी को नहीं है. अतः उक्त मंदिर की किसी भी भूमि या संपदा का विक्रय विलेख पंजीबद्ध नहीं करें. देवस्थान विभाग की इस पत्र के बावजूद 1 साल बाद वर्ष 2018 में इस भूमि का बेचान कर विक्रय विलेख पंजीबद्ध हो गया.
न्यायालय की शरण में भक्त और विभागः देवस्थान विभाग के सहायक आयुक्त के के खंडेलवाल ने बताया कि इस पूरे मामले को लेकर जिला न्यायालय में केस किया है. साथ ही बेचान निरस्त (Condition of Bharatpur Varaha Temple Premises) करने के लिए तहसीलदार को भी लिखा गया है. वहीं शहर के बृजभूषण की ओर से भी इस पूरे मामले को लेकर न्यायालय में केस कर रखा है.
पढ़ें : मन्नतें पूरी करने के लिए काशी के इस मंदिर में श्रद्धालु लगाते हैं 'ताला'
जांच करवा देंगेः मंगलवार को सर्किट हाउस में जनसुनवाई करने आए पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मंत्री विश्वेंद्र सिंह के सामने भी वराह भगवान मंदिर परिसर के पहचान की बात रखी गई. उन्होंने कहा कि इस पूरे मामले के कागजात मुझे उपलब्ध कराए जाएं. मैं देवस्थान मंत्री के ध्यान में इस पूरे मामले को लाऊंगा और पूरे मामले की जांच करवाई जाएगी.