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देश में एक तरफ मनाया जा रहा इंटरनेशनल टाइगर डे, दूसरी ओर सरिस्का में मंडरा रहा बाघों पर खतरा

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Published : Jul 30, 2019, 4:21 AM IST

हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है.लेकिन यह बाघ दिवस केवल सरकारी खानापूर्ति बनकर रह गया है. इसका उदाहरण सरिस्का में हो रही बाघोंं की मौत है. बीते साल चार बाघों की मौत हुई है. दो दशक में करीब 20 से ज्यादा बाघों की मौत हो चुकी है.

सरिस्का के जंगल को बचाने के लिए बाघों का संरक्षण जरूरी है। सरिस्का सहित देशभर में करीब 48 बाघ अभ्यारण है। पर्यटन में रोजगार का यह बड़ा साधन है.सरिस्का सहित अन्य टाइगर रिजर्व आकर्षण का केंद्र है. हर साल लाखों पर्यटक बाघ को देखने के लिए आते हैं. सरिस्का कि बात करें तो वर्ष 2004 में में करीब 20 बाघ थे. जिनकी संख्या तेजी से कम हो रही है.

अलवर . देश में जहां एक तरफ बाघ दिवस मनाया जा रहा है. सरकारें बाघों को बचाने के लिए तमाम दावे कर रही है. वहीं सरिस्का में हुई बाघों की मौत हकीकत कुछ और बयां कर रही है. सरिस्का में बाघों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है. जहां बीते साल चार बाघों की मौत हुई है. वहीं अभी कुछ समय पहले रणथंभौर से सरिस्का लाए गए बाघ की मौत का मामला भी सामने आया था.

देश में एक तरफ मन रहा बाघ दिवस, तो अलवर में मर रहे हैं बाघ

देश में तेजी से बाघ मर रहे हैं. बाघों को बचाने और लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है. लेकिन यह बाघ दिवस केवल सरकारी खानापूर्ति बनकर रह गया है. इसलिए सरिस्का में लगातार बाघों के मरने का सिलसिला जारी है. समय रहते बाघों का संरक्षण नहीं किया गया तो जंगल में जैव विविधता की बड़ी समस्या आ सकती है.

मुख्य बातें-

  • सरिस्का में बीते साल चार बाघों की मौत हुई है.
  • वहीं इस साल एक बाघ की मौत का मामला सामने आ चुका है तो वहीं तीन शावकों की मौत भी हो चुकी है.
  • बीते दो दशक में सरिस्का में 20 से ज्यादा बाघों की मौत हो चुकी है. सरिस्का में इस समय 11 बाघ व 3 बच्चे हैं. हालांकि तीन बच्चों की अभी तक सरिस्का प्रशासन की तरफ से पुष्टि नहीं की गई है
  • सरिस्का में बढ़ रहा शिकारियों का दखल

बाघ तेजी से विलुप्त हो रहे हैं. हर साल देश भर में बाघों को बचाने के लिए नए-नए दावे होते हैं.लेकिन हकीकत सबके सामने है.ऐसे में बाघ दिवस मनाने का क्या फायदा. यही हालात रहे तो आने वाले कुछ सालों में देश बाघ विहीन हो जाएगा.

पढ़ें-ईटीवी भारत की मुहिम लाई रंग, इस बार अलवर के कन्या उपवन में लगाए जा रहे हैं एक लाख पौधे

सरिस्का के जंगल को बचाने के लिए बाघों का संरक्षण जरूरी है.सरिस्का सहित देशभर में करीब 48 बाघ अभ्यारण है.पर्यटन में रोजगार का यह बड़ा साधन है.सरिस्का सहित अन्य टाइगर रिजर्व आकर्षण का केंद्र है. हर साल लाखों पर्यटक बाघ को देखने के लिए आते हैं.

इन घटनाओं के बाद भी वन विभाग के अधिकारी कोई सबक नहीं ले रहे हैं.इसलिए लगातार बाघों की मौत का सिलसिला जारी है.हालांकि सरकारों की तरफ से आए दिन नई योजनाएं बनाई जाती है.बाघ संरक्षण के लिए भारत सरकार ने पशु संरक्षण के उद्देश्य से 1972 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था.

इस परियोजना के हिस्से के रूप में बाघों की आबादी को बचाए रखने के लिए कोर एरिया व बफर क्षेत्र को अधिसूचित किया गया था. लेकिन उसके बाद भी हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ। बाघ की संख्या बढ़ने से सभी तरह के संसाधनों में बढ़ोतरी होगी. एक तरफ पर्यटन बढ़ेगा तो वहीं उससे रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे. ऐसे में अब समय आ गया है कि सभी को एक साथ मिलकर बाघ बचाने के लिए पहल करनी होगी नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब जंगल बाघ विहीन हो जाएंगे.

अलवर . देश में जहां एक तरफ बाघ दिवस मनाया जा रहा है. सरकारें बाघों को बचाने के लिए तमाम दावे कर रही है. वहीं सरिस्का में हुई बाघों की मौत हकीकत कुछ और बयां कर रही है. सरिस्का में बाघों के मरने का सिलसिला लगातार जारी है. जहां बीते साल चार बाघों की मौत हुई है. वहीं अभी कुछ समय पहले रणथंभौर से सरिस्का लाए गए बाघ की मौत का मामला भी सामने आया था.

देश में एक तरफ मन रहा बाघ दिवस, तो अलवर में मर रहे हैं बाघ

देश में तेजी से बाघ मर रहे हैं. बाघों को बचाने और लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है. लेकिन यह बाघ दिवस केवल सरकारी खानापूर्ति बनकर रह गया है. इसलिए सरिस्का में लगातार बाघों के मरने का सिलसिला जारी है. समय रहते बाघों का संरक्षण नहीं किया गया तो जंगल में जैव विविधता की बड़ी समस्या आ सकती है.

मुख्य बातें-

  • सरिस्का में बीते साल चार बाघों की मौत हुई है.
  • वहीं इस साल एक बाघ की मौत का मामला सामने आ चुका है तो वहीं तीन शावकों की मौत भी हो चुकी है.
  • बीते दो दशक में सरिस्का में 20 से ज्यादा बाघों की मौत हो चुकी है. सरिस्का में इस समय 11 बाघ व 3 बच्चे हैं. हालांकि तीन बच्चों की अभी तक सरिस्का प्रशासन की तरफ से पुष्टि नहीं की गई है
  • सरिस्का में बढ़ रहा शिकारियों का दखल

बाघ तेजी से विलुप्त हो रहे हैं. हर साल देश भर में बाघों को बचाने के लिए नए-नए दावे होते हैं.लेकिन हकीकत सबके सामने है.ऐसे में बाघ दिवस मनाने का क्या फायदा. यही हालात रहे तो आने वाले कुछ सालों में देश बाघ विहीन हो जाएगा.

पढ़ें-ईटीवी भारत की मुहिम लाई रंग, इस बार अलवर के कन्या उपवन में लगाए जा रहे हैं एक लाख पौधे

सरिस्का के जंगल को बचाने के लिए बाघों का संरक्षण जरूरी है.सरिस्का सहित देशभर में करीब 48 बाघ अभ्यारण है.पर्यटन में रोजगार का यह बड़ा साधन है.सरिस्का सहित अन्य टाइगर रिजर्व आकर्षण का केंद्र है. हर साल लाखों पर्यटक बाघ को देखने के लिए आते हैं.

इन घटनाओं के बाद भी वन विभाग के अधिकारी कोई सबक नहीं ले रहे हैं.इसलिए लगातार बाघों की मौत का सिलसिला जारी है.हालांकि सरकारों की तरफ से आए दिन नई योजनाएं बनाई जाती है.बाघ संरक्षण के लिए भारत सरकार ने पशु संरक्षण के उद्देश्य से 1972 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था.

इस परियोजना के हिस्से के रूप में बाघों की आबादी को बचाए रखने के लिए कोर एरिया व बफर क्षेत्र को अधिसूचित किया गया था. लेकिन उसके बाद भी हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ। बाघ की संख्या बढ़ने से सभी तरह के संसाधनों में बढ़ोतरी होगी. एक तरफ पर्यटन बढ़ेगा तो वहीं उससे रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे. ऐसे में अब समय आ गया है कि सभी को एक साथ मिलकर बाघ बचाने के लिए पहल करनी होगी नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब जंगल बाघ विहीन हो जाएंगे.

Intro:
अलवर।
देश में एक तरफ बाघ दिवस मनाया जा रहा है। सरकारें बाघों को बचाने के लिए तमाम दावे कर रही है। लेकिन हकीकत सबके सामने है। सरिस्का में बाघों के मरने का सिलसिला जारी है। बीते साल तीन बाघों की मौत सरिस्का में हुई है। तो वही अभी कुछ समय पहले रणथंभौर से सरिस्का लाए गए बाघ की मौत का मामला भी सामने आया था। दो दशक में करीब 20 से ज्यादा बाघों की मौत हो चुकी है। ऐसे में बाघ दिवस मनाने का क्या फायदा। यही हालात रहे तो आने वाले कुछ सालों में देश बाघ विहीन हो जाएगा।


Body:देश में तेजी से भाग मर रहे हैं। बाघों को बचाने व लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल विश्व बाघ दिवस मनाया जाता है। लेकिन यह बाघ दिवस केवल सरकारी खानापूर्ति बनकर रह गया है। इसलिए सरिस्का में लगातार बाघों के मरने का सिलसिला जारी है। समय रहते बाघों का संरक्षण नहीं किया गया। तो जिले में जंगल चल पर्यावरण व जेव विविधता की बड़ी समस्या आ सकती है।

बाघ तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। हर साल देश भर में बाघों को बचाने के लिए नए-नए दावे होते हैं। लेकिन हकीकत सबके सामने है। बीते दो दशक में सरिस्का में 20 से ज्यादा बाघों की मौत हो चुकी है। सरिस्का में इस समय 11 भाग 3 बच्चे हैं। हालांकि तीन बच्चों की अभी तक सरिस्का प्रशासन की तरफ से पुष्टि नहीं की गई है। अगर जंगल बाघ विहीन हो गए तो पर्यावरण का संतुलन बिगड़ जाएगा।


Conclusion:इसलिए सरिस्का के जंगल को बचाने के लिए बाघों का संरक्षण जरूरी है। सरिस्का सहित देशभर में करीब 48 बाघ अभ्यारण है। पर्यटन में रोजगार का यह बड़ा साधन है। सरिस्का सहित अन्य टाइगर रिजर्व आकर्षण का केंद्र है। हर साल लाखों पर्यटक बाघ को देखने के लिए आते हैं। सारिका कि बात करें तो वर्ष 2004 में सिरका में करीब 20 बार थे। जिनकी संख्या तेजी से कम हो रही है।

बीते साल तीन इस साल एक बाघ की मौत का मामला सामने आ चुका है। तो वही तीन शावकों की मौत भी सरिस्का में हो चुकी है। मौत का यह सिलसिला लगातार जारी है। इन घटनाओं के बाद भी वन विभाग के अधिकारी कोई सबक नहीं ले रहे हैं। इसलिए लगातार यह सिलसिला जारी है। हालांकि सरकारों की तरफ से आए दिन नई योजना बनाई जाती है। बाघ संरक्षण के लिए भारत सरकार ने पशु संरक्षण के उद्देश्य से 1972 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया था।

इस परियोजना के हिस्से के रूप में बाघों की आबादी को बचाए रखने के लिए कोर एरिया व बफर क्षेत्र को अधिसूचित किया गया था। लेकिन उसके बाद भी हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ। बाघ की संख्या बढ़ने से सभी तरह के संसाधनों में बढ़ोतरी होगी। एक तरफ पर्यटन बढ़ेगा तो वही उससे रोजगार के साधन भी उपलब्ध होंगे। ऐसे में अब समय आ गया है कि सभी को एक साथ मिलकर बाघ बचाने के लिए पहल करनी होगी। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब जंगल बाघ विहीन हो जाएंगे।
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