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अलवर: कोरोना काल में कम हुई गुजराती मटकों की डिमांड

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Published : Jun 27, 2020, 8:51 PM IST

अलवर में गुजराती मटकों की डिमांड इस बार कम हो गई है. कोरोना संक्रमण के कारण लोग खरीददारी करने से बच रहे हैं. ऐसे में मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय से जुड़े लोगों पर आर्थिक मार पड़ी है. इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए गुजराती मटकों की डिजाइन में बदलाव भी किया गया है.

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कोरोना काल में कम हुई गुजराती मटकों की डिमांड

अलवर. गुजरात में बने मिट्टी के बर्तन अलवर के लोगों की पहली पसंद होते हैं. गुजरात में बनने वाले ये मटके स्थानीय मटकों से बिल्कुल अलहदा हैं. इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए इन मटकों को डिजाइन किया गया है. इन मटकों में पानी निकालने के लिए मटके में हाथ नहीं डालना पड़ता है. क्योंकि मटकों के नीचे टैब लगी हुई है जिससे आप पानी निकाल सकते हैं. जिससे कोरोना संक्रमण का खतरा भी नहीं होता. गुजराती मटकों के अलग-अलग रेट हैं. छोटे मटके 150 रुपए में तो बड़े मटकों का रेट 200 रुपए है. लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण ने गुजराती मटकों की डिमांड कम कर दी है.

गुजराती मटकों की डिजाइन में बदलाव भी किया गया है

मटका व्यवसाय साल में 4 महीने ही ज्यादा चलता है. लेकिन कोरोना वायरस के बाद लगे लॉकडाउन ने मटका व्यवसाय को पूरी तरह से चौपट कर दिया. ईटीवी भारत के साथ बातचीत में मटका दुकानदारों ने बताया कि गुजरात में बने मटके लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं, लेकिन इनकी बिक्री कम हो रही हैं क्योंकि लोग कोरोना के भय से खरीददारी करने बाजारों में कम निकल रहे हैं.

व्यवसाय से जुड़े लोगों पर कोरोना का असर

अलवर में 2500 परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. वहीं मिट्टी के बर्तन बेचने वालों की भी एक बड़ी संख्या इस व्यवसाय से जुड़ी हुई है. अलवर शहर में सड़क किनारे मिट्टी के बर्तन बेचने वालों की 1500 से अधिक दुकानें हैं. कोरोना काल में इस सभी परिवारों पर आर्थिक मार पड़ी है.

पूरे साल का जीवनयापन गर्मी के दिनों में मटकों के व्यवसाय पर टिका होता है. जून के अंत से बारिश का मौसम शुरू हो जाता है. ऐसे में मिट्टी के बर्तन बेचने वालों पर साल भर की रोजी रोटी का संकट मंडराने लगा है.

अलवर. गुजरात में बने मिट्टी के बर्तन अलवर के लोगों की पहली पसंद होते हैं. गुजरात में बनने वाले ये मटके स्थानीय मटकों से बिल्कुल अलहदा हैं. इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए इन मटकों को डिजाइन किया गया है. इन मटकों में पानी निकालने के लिए मटके में हाथ नहीं डालना पड़ता है. क्योंकि मटकों के नीचे टैब लगी हुई है जिससे आप पानी निकाल सकते हैं. जिससे कोरोना संक्रमण का खतरा भी नहीं होता. गुजराती मटकों के अलग-अलग रेट हैं. छोटे मटके 150 रुपए में तो बड़े मटकों का रेट 200 रुपए है. लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण ने गुजराती मटकों की डिमांड कम कर दी है.

गुजराती मटकों की डिजाइन में बदलाव भी किया गया है

मटका व्यवसाय साल में 4 महीने ही ज्यादा चलता है. लेकिन कोरोना वायरस के बाद लगे लॉकडाउन ने मटका व्यवसाय को पूरी तरह से चौपट कर दिया. ईटीवी भारत के साथ बातचीत में मटका दुकानदारों ने बताया कि गुजरात में बने मटके लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं, लेकिन इनकी बिक्री कम हो रही हैं क्योंकि लोग कोरोना के भय से खरीददारी करने बाजारों में कम निकल रहे हैं.

व्यवसाय से जुड़े लोगों पर कोरोना का असर

अलवर में 2500 परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. वहीं मिट्टी के बर्तन बेचने वालों की भी एक बड़ी संख्या इस व्यवसाय से जुड़ी हुई है. अलवर शहर में सड़क किनारे मिट्टी के बर्तन बेचने वालों की 1500 से अधिक दुकानें हैं. कोरोना काल में इस सभी परिवारों पर आर्थिक मार पड़ी है.

पूरे साल का जीवनयापन गर्मी के दिनों में मटकों के व्यवसाय पर टिका होता है. जून के अंत से बारिश का मौसम शुरू हो जाता है. ऐसे में मिट्टी के बर्तन बेचने वालों पर साल भर की रोजी रोटी का संकट मंडराने लगा है.

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