अलवर. सिलिकोसिस बीमारी के मरीजों को बड़ी राहत मिली है. खान विभाग ने सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ित मरीजों को 1.64 करोड़ रुपए की सहायता राशि दी है. ऐसे में मरीजों का समय पर बेहतर इलाज हो सकेगा. दूसरी तरफ बीमारी से मरने वाले परिजनों को भी सहायता राशि दी गई है. सिलिकोसिस के मरीजों को किसी भी तरह की परेशानी न हो इसके लिए प्रदेश स्तर से मॉनिटरिंग की जाती है.
सिलीकोसिस बीमारी से पीड़ित मरीजों को अब सहायता राशि के लिए भटकना नहीं पड़ता है. सरकार की ओर से मरीजों के लिए ऑनलाइन व्यवस्था शुरू करने से राहत मिली है. अब सीधा भुगतान मरीज के खाते में जमा होता है. सरकार भामाशाह कार्ड के माध्यम से मरीज को तीन लाख रुपए क्षतिपूर्ति और निधन होने पर परिजनों को दो लाख रुपए सहायता राशि देगी. इसमें डेढ़ लाख की एफडी और डेढ़ लाख रुपए खाते में जमा होंगे. मरीजों को श्रम विभाग, खनन विभाग और समाज कल्याण विभाग से भी सहायता राशि मिलेगी. सरकार की इन ऑनलाइन व्यवस्था से मरीजों को काफी राहत मिल रही है.
मरीजों को वेरफिकेशन प्रमाण पत्र पेश नहीं करना पड़ेगा. अब तक प्रदेश के 7 हजार 300 मरीजों को (Relief to Silicosis Disease victims in Rajasthan) लाभान्वित किया गया है. अलवर में खान विभाग ने हाल ही में सिलिकोसिस के मरीजों के लिए 1.64 करोड़ रुपए की राशि जारी की है. इसमें 49 ऐसे मरीज है, जो सिलिकोसिस बीमारी से ग्रसित हैं. जबकि सात मरीजों की सिलिकोसिस बीमारी से मौत हो चुकी है.
सिलिकोसिस फेफड़ों से संबंधित रोग: सिलिकोसिस फेफड़ों से संबंधित रोग है. यह आमतौर पर ऐसी फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोगों को होता है, जहां पर धूल में सिलिका पाया जाता है. सिलिका क्रिस्टल की आकृति के सूक्ष्म कण होते हैं, जो पत्थर व खनिजों के कणों में पाए जाते हैं. अलवर में खान में हजारों श्रमिक काम करते हैं. सिलिका युक्त धूल में लगातार सांस लेने से फेफड़ों में होने वाली बीमारी को सिलिकोसिस कहा जाता है. इसमें मरीज के फेफड़े खराब हो जाते हैं. पीड़ित व्यक्ति का सांस फूलने लगता है. इलाज न मिलने पर मरीज की मौत हो जाती है.
यदि कोई व्यक्ति सिलिका युक्त धूल में सांस ले रहा है, तो धीरे-धीरे सिलिका उनके फेफड़ों में जमा होने लगता है. ऐसी स्थिति में फेफड़ों में स्कार बनने लग जाते हैं, जिससे सांस लेने में दिक्कत होने लग जाती है. सिलिकोसिस लगातार बढ़ने वाला रोग है, जिसके लक्षण समय के साथ गंभीर होते रहते हैं. इसके शुरुआती लक्षण गंभीर खांसी, सांस फूलना और कमजोरी के रूप में विकसित होते हैं. सिलिकोसिस के अन्य लक्षण निम्न स्थितियों पर निर्भर करते हैं.
यदि आप काम के दौरान सिलिका के संपर्क में आते हैं, तो आपको शुरुआत में सांस लेने में (Causes of Silicosis Disease) दिक्कत होती है. साथ ही परेशान कर देने वाली खांसी, कफ की परेशानी होती है. इसके बाद थकान, वजन कम होना, छाती में दर्द होना, अचानक से बुखार होना, टांगों में सूजन होना व होंठ नीले पड़ना जैसी परेशानी होती है.
इनसे होती है सिलिकोसिस
- एस्फॉल्ट मैन्युफैक्चरिंग (डामर निर्माण)
- कंक्रीट निर्माण
- पत्थर व कंक्रीट पिसाई
- तोड़ने-फोड़ने की फैक्ट्रियां
- कांच निर्माण
- चिनाई
- खुदाई
- उत्खनन
- सैंडब्लास्टिंग
- सुंरग बनाने का काम
यह है प्रदेश के हालात: वर्ष 2013-14 में 304 मरीजों पर एक मौत दर्ज की गई थी. वर्ष 2014-15 में संख्या बढ़कर 905 मरीजों पर 60 मौत तक पहुंच गई. 2015-16 में सिलिकोसिस की भयावहता और अधिक बढ़ गई और 2186 मरीजों पर 153 मौत के मामले दर्ज किए गए. हालांकि 2016-17 में मरीजों की संख्या में तो कमी देखी गई लेकिन सिलिकोसिस से मरने वालों की मौत में इजाफा दर्ज किया गया. इस दौरान 1536 मरीज सामने आए और 235 मौतें दर्ज की गईं. उसके बाद से लगातार मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है.
इन जिलों में सर्वाधिक मरीजः प्रदेश में सबसे ज्यादा सिलिकोसिस के मरीज धौलपुर, जोधपुर, किशनगढ़ नागौर, पाली क्षेत्र में हैं. क्योंकि यहां के पत्थर में छोटे धूल के कण की मात्रा ज्यादा निकलती है, जो सांस के साथ आसानी से फेफड़ों तक जाते हैं.
अलवर के यह हैं हालातः स्वास्थ विभाग के अधिकारियों ने बताया कि सिलिकोसिस बीमारी के तहत मिलने वाली मदद के लिए 500 से ज्यादा श्रमिकों ने ऑनलाइन आवेदन किया था. इसमें करीब 225 मरीजों के बोर्ड द्वारा प्रमाण पत्र बनाए गए. जबकि 250 के आसपास रिजेक्ट कर दिए गए. मरीजों की स्क्रिनिंग की अलग व्यवस्था है. इसके लिए एक बोर्ड बनाया गया है. बोर्ड की सहमति के बाद ही सिलिकोसिस पीड़ित मरीज को प्रमाण पत्र जारी किया जाता है.