अलवर. कोरोना वैसे तो छोटे से लेकर बड़े तक सभी व्यापारियों को खासा नुकसान पहुंचाया है. लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी उस वर्ग को ही है, जो सुबह से शाम तक काम करके दो वक्त की रोटी का इंतजाम करता है. सड़क किनारे दुकान लगाकर पेट पालने वाले हजारों लाखों लोग जुड़े हुए हैं. ऐसे ही कुछ लोगों से ईटीवी भारत ने बातचीत की.
अलवर में सड़क के किनारे दुकान लगाने वाले मक्का और घाट की राबड़ी बेचकर अपना पेट भरने वाले लोगों ने कहा कि कोरोना के चलते कामकाज बिल्कुल समाप्त हो गया है. ऐसे में दो वक्त की रोटी का खर्चा निकालना बड़ा मुश्किल का काम बन गया है. कई बार शाम की रोटी का इंतजाम भी नहीं हो पाता है. दुकानदारों ने कहा कि पहले जीवन-यापन हो जाता था. लेकिन कोरोना के चलते अब लोग बाहर की चीजों से बच रहे हैं.
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दिनभर दुकान लगाने के बाद शाम तक 100 से 50 रुपए की आय हो पाती है, जिससे घर का खर्च भी नहीं चलता है. किसी तरह से लॉकडाउन का समय निकला है. 3 महीने पूरी तरह से खराब हो गए हैं. इस दौरान जीवन-यापन करने में खासी दिक्कत हुई. लेकिन अब बाजार खुलने से रोटी का इंतजाम हुआ है. सरकार की भी अब तक कोई मदद नहीं मिली है. ऐसे में लोग खासे परेशान हैं.
उन्होंने कहा कि सीजन पूरी तरह से खराब हो चुका है. बार-बार काम बदलने के लिए भी पैसे नहीं हैं. परिवार बड़ा है, इसलिए जीवन-यापन में खासी दिक्कत आती है. वहीं लगातार आने वाले कुछ समय तक हालात ठीक होते भी दिखाई नहीं दे रहे हैं. अलवर शहर की बात करें तो अलवर शहर में इस तरह की दुकान चलाने वाले 4 हजार लोग हैं. जो पूरी तरह से अन्य लोगों पर निर्भर रहते हैं. एक परिवार में 5 सदस्य हैं. ऐसे में 20 हजार से अधिक लोग इस कारोबार और कोरोना की मार झेल रहे हैं.
नहीं मिली सरकारी कोई मदद
सड़क के किनारे दुकान लगाने वाले लोगों को लॉकडाउन में उसके बाद अब तक किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है. ऐसे में ये लोग खासे परेशान हैं. परिवार का जीवन- यापन करने में भी खासी दिक्कतें आ रही हैं.
अलवर में हैं हजारों परिवार
सड़क किनारे रेहडी पटरी की दुकान लगाने वाले अलवर में हजारों परिवार हैं. अलवर शहर में 8 हजार से अधिक लोग हैं. वहीं एक परिवार में 5 से 6 सदस्य होते हैं. इसके अलावा शहर के बाहरी क्षेत्र में पूरे जिले में नजर डालें तो यह आंकड़ा 2 हजार 500 से अधिक पहुंचता हैं.