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अलवर में पाले जाते थे चीते, दी जाती थी ट्रेनिंग, 1872 का एक फोटो आया सामने

अफ्रीका के नामीबिया से चीते मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में लाए गए हैं, चूंकि देश में चीते नहींं बचे. हालांकि एक समय ऐसा भी था, जब अलवर में चीते पाले जाते थे. इतिहासकार हरिशंकर गाेयल के पास मौजूद 1872 की एक फोटाे में ऐसा साफ नजर आता है. अलवर के महाराज शिवदास सिंह के समय यहां चीतों को ट्रेनिंग भी दी जाती (Cheetah Training center in Alwar in 1872) थी.

Cheetah Training center in Alwar in 1872, rare photo is the proof
अलवर में पाले जाते थे चीते, दी जाती थी ट्रेनिंग, 1872 का एक फोटो आया सामने
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Published : Sep 17, 2022, 11:33 PM IST

अलवर. देश में चीते समाप्त हो चुके हैं. नामीबिया से चीते मंगवाए गए हैं. इन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया है. आजादी से पहले रियासत काल के दौरान अलवर में भी चीते पाले जाते थे. साथ ही चीतों को ट्रेनिंग भी दी जाती थी. शहर के नजदीक घने जंगल में चीते शिकार करते थे. उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर उनको घोड़ा गाड़ी में लेकर जाया जाता था. चीतों को मांस के साथ घी व पनीर भी खिलाया जाता था.

भारत सहित कई देशों में चीते समाप्त हो चुके हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीजों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा. देश में इस समय चीजों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं और सोशल मीडिया पर उनकी फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं. इस बीच इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने कहा कि अलवर चीतों का ट्रेनिंग सेंटर था. शहर के चितावन गली मोहल्ले में चीतों का प्रशिक्षण केंद्र था. उन्होंने 1872 में महाराज शिवदास सिंह के समय की एक फोटो दिखाते हुए कहा कि ट्रेनिंग सेंटर में चीते विश्राम कर करते (Rare image of Cheetah in Alwar of 1872) थे.

रियासत काल में अलवर में था चीतों का ट्रेनिंग सेंटर...

पढ़ें: चीता तेज धावक, पर उसमें ज्यादा देर तक रफ्तार को बरकरार रखने की ताकत नहीं

गोयल के अनुसार यह क्षेत्र घना जंगल हुआ करता था. चीतों को शिकार के लिए पाला जाता था. महाराजा मंगल सिंह व महाराजा जयसिंह तक चीतों का ट्रेनिंग सेंटर चला. उन्होंने कहा कि अलवर जिले में साढ़े 47 रुंध हुआ करती थीं. इनमें घना जंगल था. चीतों को उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर शिकार के लिए ऊंट गाड़ी में लेकर जाया जाता था.

पढ़ें: Cheetah Super Exclusive: नामीबिया से कूनो लाए जा रहे चीतों की देखें 10 तस्वीरें और जाने इनकी जानकारी

गोयल ने कहा कि अलवर के छठे महाराजा जय सिंह अच्छे शिकारी, क्रिकेटर व पोलो खिलाड़ी थे. उन्होंने हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में कविताएं व लेख लिखे. उनके समय में शिकार पर रोक लगी. जिसके बाद लगातार चीतों की संख्या में कमी होती गई. अंग्रेज अलवर घूमने के लिए आते थे. यहां शिकार करते थे व मौज मस्ती करते थे.

पढ़ें: MP Cheetah Project कूनो में तेंदुए और चीतों का हुआ सामना, तो क्या होगा, जानिए देश में आखिरी बार कहां दिखा था चीता

उस दौरान चीतों को जंगल में छोड़ा जाता था. चीते हिरण, चीतल व चीतल का शिकार करते थे. उन्होंने कहा कि चीते के खुजली या कोई परेशानी ना हो, इसके लिए गंधक व तेल मिलाकर उसके मालिश होती थी. समय के साथ कुछ बदलाव हुए कंपनी बाग में जूं चलता था. उसमें भी चीतों को रखा गया. महाराजा जयसिंह के समय में शिकार पर रोक लगी. जिसके बाद कंपनी बाग का जो भी समाप्त हो गए.

अलवर. देश में चीते समाप्त हो चुके हैं. नामीबिया से चीते मंगवाए गए हैं. इन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया है. आजादी से पहले रियासत काल के दौरान अलवर में भी चीते पाले जाते थे. साथ ही चीतों को ट्रेनिंग भी दी जाती थी. शहर के नजदीक घने जंगल में चीते शिकार करते थे. उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर उनको घोड़ा गाड़ी में लेकर जाया जाता था. चीतों को मांस के साथ घी व पनीर भी खिलाया जाता था.

भारत सहित कई देशों में चीते समाप्त हो चुके हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीजों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा. देश में इस समय चीजों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं और सोशल मीडिया पर उनकी फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं. इस बीच इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने कहा कि अलवर चीतों का ट्रेनिंग सेंटर था. शहर के चितावन गली मोहल्ले में चीतों का प्रशिक्षण केंद्र था. उन्होंने 1872 में महाराज शिवदास सिंह के समय की एक फोटो दिखाते हुए कहा कि ट्रेनिंग सेंटर में चीते विश्राम कर करते (Rare image of Cheetah in Alwar of 1872) थे.

रियासत काल में अलवर में था चीतों का ट्रेनिंग सेंटर...

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गोयल के अनुसार यह क्षेत्र घना जंगल हुआ करता था. चीतों को शिकार के लिए पाला जाता था. महाराजा मंगल सिंह व महाराजा जयसिंह तक चीतों का ट्रेनिंग सेंटर चला. उन्होंने कहा कि अलवर जिले में साढ़े 47 रुंध हुआ करती थीं. इनमें घना जंगल था. चीतों को उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर शिकार के लिए ऊंट गाड़ी में लेकर जाया जाता था.

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गोयल ने कहा कि अलवर के छठे महाराजा जय सिंह अच्छे शिकारी, क्रिकेटर व पोलो खिलाड़ी थे. उन्होंने हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में कविताएं व लेख लिखे. उनके समय में शिकार पर रोक लगी. जिसके बाद लगातार चीतों की संख्या में कमी होती गई. अंग्रेज अलवर घूमने के लिए आते थे. यहां शिकार करते थे व मौज मस्ती करते थे.

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उस दौरान चीतों को जंगल में छोड़ा जाता था. चीते हिरण, चीतल व चीतल का शिकार करते थे. उन्होंने कहा कि चीते के खुजली या कोई परेशानी ना हो, इसके लिए गंधक व तेल मिलाकर उसके मालिश होती थी. समय के साथ कुछ बदलाव हुए कंपनी बाग में जूं चलता था. उसमें भी चीतों को रखा गया. महाराजा जयसिंह के समय में शिकार पर रोक लगी. जिसके बाद कंपनी बाग का जो भी समाप्त हो गए.

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