अलवर. देश में चीते समाप्त हो चुके हैं. नामीबिया से चीते मंगवाए गए हैं. इन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा गया है. आजादी से पहले रियासत काल के दौरान अलवर में भी चीते पाले जाते थे. साथ ही चीतों को ट्रेनिंग भी दी जाती थी. शहर के नजदीक घने जंगल में चीते शिकार करते थे. उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर उनको घोड़ा गाड़ी में लेकर जाया जाता था. चीतों को मांस के साथ घी व पनीर भी खिलाया जाता था.
भारत सहित कई देशों में चीते समाप्त हो चुके हैं. देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीजों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा. देश में इस समय चीजों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं और सोशल मीडिया पर उनकी फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं. इस बीच इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने कहा कि अलवर चीतों का ट्रेनिंग सेंटर था. शहर के चितावन गली मोहल्ले में चीतों का प्रशिक्षण केंद्र था. उन्होंने 1872 में महाराज शिवदास सिंह के समय की एक फोटो दिखाते हुए कहा कि ट्रेनिंग सेंटर में चीते विश्राम कर करते (Rare image of Cheetah in Alwar of 1872) थे.
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गोयल के अनुसार यह क्षेत्र घना जंगल हुआ करता था. चीतों को शिकार के लिए पाला जाता था. महाराजा मंगल सिंह व महाराजा जयसिंह तक चीतों का ट्रेनिंग सेंटर चला. उन्होंने कहा कि अलवर जिले में साढ़े 47 रुंध हुआ करती थीं. इनमें घना जंगल था. चीतों को उनकी आंखों पर पट्टी बांधकर शिकार के लिए ऊंट गाड़ी में लेकर जाया जाता था.
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गोयल ने कहा कि अलवर के छठे महाराजा जय सिंह अच्छे शिकारी, क्रिकेटर व पोलो खिलाड़ी थे. उन्होंने हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में कविताएं व लेख लिखे. उनके समय में शिकार पर रोक लगी. जिसके बाद लगातार चीतों की संख्या में कमी होती गई. अंग्रेज अलवर घूमने के लिए आते थे. यहां शिकार करते थे व मौज मस्ती करते थे.
उस दौरान चीतों को जंगल में छोड़ा जाता था. चीते हिरण, चीतल व चीतल का शिकार करते थे. उन्होंने कहा कि चीते के खुजली या कोई परेशानी ना हो, इसके लिए गंधक व तेल मिलाकर उसके मालिश होती थी. समय के साथ कुछ बदलाव हुए कंपनी बाग में जूं चलता था. उसमें भी चीतों को रखा गया. महाराजा जयसिंह के समय में शिकार पर रोक लगी. जिसके बाद कंपनी बाग का जो भी समाप्त हो गए.