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अलवर संग्रहालय राजस्थान में सबसे बेहतर, बाबरनामा से लेकर बेशकीमती सामान मौजूद

अलवर संग्रहालय राजस्थान में सबसे बड़ा व बेहतर संग्रहालय है. प्रदेश में सबसे ज्यादा पर्यटक घूमने के लिए अलवर संग्रहालय में आते हैं. 1940 में इस संग्रहालय की स्थापना हुई थी. इसमें बड़ी संख्या में हथियार, हस्तलिखित ग्रंथ, बाबरनामा, अकबरनामा सहित गई प्राचीन वस्तुएं मौजूद हैं.

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अलवर संग्रहालय आकर्षण का केंद्र
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Published : Jun 19, 2020, 7:28 PM IST

अलवर. अलवर संग्रहालय राजस्थान का सबसे बड़ा संग्रहालय है. इसको देखने के लिए साल भर हजारों की संख्या में लोग संग्रहालय में पहुंचते हैं. संग्रहालय में 234 मूर्तियां, 11 शिलालेख, 9,702 सिक्के, 2,565 पेंटिंग, 2,270 हथियार, 35 छात्रों की वस्तुएं 1,809 वाद्य यंत्रों के ऑब्जेक्ट शामिल हैं. इसके अलावा हाथीदह और अन्य चीजों से बने हुए सामान मिट्टी के बर्तन, फारसी पांडुलिपि या लघु के अलावा बाबरनामा, अकबरनामा सहित कई ऐसी चीजें हैं, जो जल्दी से कहीं पर भी नहीं मिलती हैं.

अलवर संग्रहालय है आकर्षण का केंद्र

अलवर राज्य के अंतिम शासक तेज सिंह के शासनकाल में संग्रहालय की स्थापना हुई थी. सिटी पैलेस की पांचवी मंजिल में संग्रहालय स्थित है. 16 हजार से अधिक दुर्लभ, अमूल्य, हस्तलिखित ग्रंथ, राजशाही उपयोगी सामान, वस्तु, चित्र, सिक्के, शहीदों का बेशकीमती सामान यहां मौजूद है. महाराजा विनय सिंह ने सन 1847 में पुस्तकालय की स्थापना करवाई थी. 20 जनवरी 1909 को पुस्तकशाला और तोशाखाना की ऐतिहासिक सामग्री और महत्वपूर्ण कला सामग्री को एकत्रित कर नुमाइश खाना विभाग की स्थापना की गई थी.

मुंशी जगमोहन लाल राम कंवर की देखरेख में सामग्री को प्रदर्शित किया गया. 12 जून 1940 को विधिवत रूप से संग्रहालय की स्थापना हुई. यहां एक म्यान में दो तलवार देखने को मिलती हैं. इसको देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. इसके अलावा अस्त्र-शस्त्र कक्ष में हजरत अली की तलवार जिस पर फारसी लेख लिखा हुआ है वो भी मौजूद है. लकी पत्थर काटने वाली तलवार के अलावा अनेक बंधु, नाखून, सूर्या कटारा आदि का संग्रह है. इंदौर के महाराजा यशवंत राव होलकर की ओर से युद्ध के दौरान पहने वाली वेशभूषा भी यहां प्रदर्शित है. उससे संबंधित हथियार भी यहां रखे गए हैं.
बता दें कि यहां पर एक ही जगह पर गेंडे की खाल, कछुए की खाल, मगरमच्छ की खाल और मेटल से बनी ढाल प्रदर्शित की गई है. जबकि संग्रहालय में पर्यटकों को एक या दो तरह की ढाल ही देखने को मिलती है. हस्तशिल्प कला में प्रदर्शित जर्मन सिल्वर से निर्मित मेज आकर्षण का केंद्र रहती है. कलाकार नंदकिशोर ने चांदी की इमेज का निर्माण किया था. इसके नीचे एक यंत्र लगा हुआ है. इसके संचालन से इमेज के ऊपर ऊपरी भाग में बनी लहरों में मछलियों के जल में तैरने का एहसास होता है. तकनीकी खराबी के चलते यह भी खराब है.

पढ़ेंः Special: Lockdown में मोबाइल कंपनियों की बल्ले-बल्ले, प्रदेश के 6 करोड़ 55 लाख यूजर्स ने जमकर किया डाटा कंजप्शन

उसके अलावा सन 1892 में अलवर जिले के बानसूर में गिरा आकाशीय उल्कापिंड का खंडवा प्रदर्शित किया गया है. आकाशीय उल्कापिंड बाहरी अंतरिक्ष से पृथ्वी के बाजारों में आने से जल गया था. इसके अलावा हजारों की संख्या में मौजूद चीजें अलवर संग्रहालय को राजस्थान में सबसे बेहतर बनाती हैं.

अलवर. अलवर संग्रहालय राजस्थान का सबसे बड़ा संग्रहालय है. इसको देखने के लिए साल भर हजारों की संख्या में लोग संग्रहालय में पहुंचते हैं. संग्रहालय में 234 मूर्तियां, 11 शिलालेख, 9,702 सिक्के, 2,565 पेंटिंग, 2,270 हथियार, 35 छात्रों की वस्तुएं 1,809 वाद्य यंत्रों के ऑब्जेक्ट शामिल हैं. इसके अलावा हाथीदह और अन्य चीजों से बने हुए सामान मिट्टी के बर्तन, फारसी पांडुलिपि या लघु के अलावा बाबरनामा, अकबरनामा सहित कई ऐसी चीजें हैं, जो जल्दी से कहीं पर भी नहीं मिलती हैं.

अलवर संग्रहालय है आकर्षण का केंद्र

अलवर राज्य के अंतिम शासक तेज सिंह के शासनकाल में संग्रहालय की स्थापना हुई थी. सिटी पैलेस की पांचवी मंजिल में संग्रहालय स्थित है. 16 हजार से अधिक दुर्लभ, अमूल्य, हस्तलिखित ग्रंथ, राजशाही उपयोगी सामान, वस्तु, चित्र, सिक्के, शहीदों का बेशकीमती सामान यहां मौजूद है. महाराजा विनय सिंह ने सन 1847 में पुस्तकालय की स्थापना करवाई थी. 20 जनवरी 1909 को पुस्तकशाला और तोशाखाना की ऐतिहासिक सामग्री और महत्वपूर्ण कला सामग्री को एकत्रित कर नुमाइश खाना विभाग की स्थापना की गई थी.

मुंशी जगमोहन लाल राम कंवर की देखरेख में सामग्री को प्रदर्शित किया गया. 12 जून 1940 को विधिवत रूप से संग्रहालय की स्थापना हुई. यहां एक म्यान में दो तलवार देखने को मिलती हैं. इसको देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते हैं. इसके अलावा अस्त्र-शस्त्र कक्ष में हजरत अली की तलवार जिस पर फारसी लेख लिखा हुआ है वो भी मौजूद है. लकी पत्थर काटने वाली तलवार के अलावा अनेक बंधु, नाखून, सूर्या कटारा आदि का संग्रह है. इंदौर के महाराजा यशवंत राव होलकर की ओर से युद्ध के दौरान पहने वाली वेशभूषा भी यहां प्रदर्शित है. उससे संबंधित हथियार भी यहां रखे गए हैं.
बता दें कि यहां पर एक ही जगह पर गेंडे की खाल, कछुए की खाल, मगरमच्छ की खाल और मेटल से बनी ढाल प्रदर्शित की गई है. जबकि संग्रहालय में पर्यटकों को एक या दो तरह की ढाल ही देखने को मिलती है. हस्तशिल्प कला में प्रदर्शित जर्मन सिल्वर से निर्मित मेज आकर्षण का केंद्र रहती है. कलाकार नंदकिशोर ने चांदी की इमेज का निर्माण किया था. इसके नीचे एक यंत्र लगा हुआ है. इसके संचालन से इमेज के ऊपर ऊपरी भाग में बनी लहरों में मछलियों के जल में तैरने का एहसास होता है. तकनीकी खराबी के चलते यह भी खराब है.

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उसके अलावा सन 1892 में अलवर जिले के बानसूर में गिरा आकाशीय उल्कापिंड का खंडवा प्रदर्शित किया गया है. आकाशीय उल्कापिंड बाहरी अंतरिक्ष से पृथ्वी के बाजारों में आने से जल गया था. इसके अलावा हजारों की संख्या में मौजूद चीजें अलवर संग्रहालय को राजस्थान में सबसे बेहतर बनाती हैं.

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