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अजमेरः ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में सैकड़ों वर्षों से एक ही अन्न से तैयार होता है लंगर, जानें वजह....

अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स पर बनने वाले लंगर का विशेष महत्व है. इस लंगर में प्रत्येक दिन एक ही प्रकार के अन्न से लंगर बनाया जाता है. दरगाह में लंगर पाने के लिए जायरीनों की भारी भीड़ रहती है. पढ़िए दरगाह में क्यों बनता है एक ही प्रकार के अन्न से लंगर....

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Published : Mar 1, 2020, 10:40 AM IST

Updated : Mar 1, 2020, 12:15 PM IST

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अजमेर दरगाह पर बनने वाला लंगर का विशेष महत्व

अजमेर. अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज का 808वां सालाना उर्स जारी है. इस दौरान प्रत्येक दिन दरगाह में लंगर का आयोजन होता है. संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में बंटने वाले लंगर की अपनी विशेषताएं है. कहते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज ने अजमेर आने के बाद एक ही प्रकार का अन्न खाया. उसी अन्न का परंपरागत रूप से आज भी दरगाह में लंगर तैयार कर बांटा जाता है. पढ़िए अजमेर दरगाह शरीफ से यह विशेष स्टोरी....

अजमेर दरगाह पर बनने वाला लंगर का विशेष महत्व

बता दें कि अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हर दिन लंगर बनाया जाता है. यह कम ही लोग जानते है कि लंगर की शुरुआत चिश्तिया सिलसिले से हुई थी. दरगाह की खास बात यह भी है कि यहां कोई भूखा नहीं रहता. यूं तो कई लोग दरगाह में लंगर बनवाकर बंटवाते हैं, लेकिन दरगाह परिसर में मौजूद लंगरखाने में हर रोज परंपरागत रूप से जौ से बनने वाले दलिया का विशेष महत्त्व है.

गरीब नवाज ने पूरे जीवनकाल में खाया महज 40 सेर अन्न

बताया जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज जब अजमेर आए, तब उन्होंने केवल जौ का दलिया खाया. गरीब नवाज का जीवन बहुत ही सादगीपूर्ण था. जो शिक्षा उन्होंने दुनिया को दी, उस शिक्षा को उन्होंने पहले जिया. ख्वाजा ने सभी धर्म, जाति और समाज के लोगों को एक समान समझा और उन्हें मोहब्बत और भाईचारे की शिक्षा दी. दरगाह के खादिम सैयद पीर फकर काजमी बताते है कि ख्वाजा गरीब नवाज ने अजमेर आने के बाद अपने जीवनकाल में महज 40 सेर अन्न ही खाया था.

यह भी पढ़ें. अजमेरः भारी सुरक्षा के बीच दरगाह पहुंचे पाकिस्तानी जायरीन, पेश की चादर

सूफी मत में तीन बातों का जिक्र अहम

खादिम दरगाह काजमी आगे बताते हैं कि सूफी मत खासकर चिश्तियां सिलसिले में तीन बातों का जिक्र अहम होता है. इनमें 'कम खुर्दम' यानी कम खाओ, 'कम सुस्तम' मतलब कम सोओ और 'कम गुफ्तम' इसका अर्थ है कम बोलो. इन तीन नसीहतों पर चलकर ही खुदा की राह में आगे बढ़ा जा सकता है. काजिम दरगाह पर बनने वाले दलिया का महत्व बताते हैं.

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लंगर के लिए तैयार होता दलिया

काजिम का कहना है कि जौ का दलिया दवा की तरह होता है. यह शरीर को साफ रखता है. चिश्तियां सिलसिले में जितने भी पीर वली हुए, उन्होंने अपने मुरीदों को दूसरा अन्न छुड़वाकर दरगाह में बनने वाले जौ के दलिये का लंगर ही दोनों वक्त खाने की नसीहत देते थे. इस लंगर को खाने से ख्वाहिशें नहीं जागती हैं. नब्ज को दबाना ही ईबादत है.

अकबर ने लंगर कायम रखने के लिए दरगाह को जागीर दे दी दान

दरगाह काजिम बताते हैं कि बादशाह अकबर जब अजमेर आए, तब उन्होंने दरगाह में बंटने वाला लंगर खाया था. उसके बाद इस लंगर को हमेशा कायम रखने के लिए अकबर ने कई गांव दरगाह को जागीर में दे दिए. गरीब नवाज की दरगाह में स्थित लंगरखाने में आज भी बढ़े कड़ाही में जौ का दलिया लंगर के रूप में परंपरागत रूप से ही बनाया जाता है.

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लंगर के लिए लाइन में लगे जायरीन

इस परंपरागत लंगर की व्यवस्थाओं का जिम्मा दरगाह कमेटी करती है. इस दलिया को बड़ी भट्टी के ऊपर रखे दो बड़े कड़ाही में जौ के दलिये में नमक और पानी से बनाया जाता है. साथ ही इसे लकड़ियों की आंच पर पकाया जाता है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में लंगर को लेने के लिए जायरीन में होड़ मची रहती है.

अजमेर. अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज का 808वां सालाना उर्स जारी है. इस दौरान प्रत्येक दिन दरगाह में लंगर का आयोजन होता है. संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में बंटने वाले लंगर की अपनी विशेषताएं है. कहते हैं कि ख्वाजा गरीब नवाज ने अजमेर आने के बाद एक ही प्रकार का अन्न खाया. उसी अन्न का परंपरागत रूप से आज भी दरगाह में लंगर तैयार कर बांटा जाता है. पढ़िए अजमेर दरगाह शरीफ से यह विशेष स्टोरी....

अजमेर दरगाह पर बनने वाला लंगर का विशेष महत्व

बता दें कि अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में हर दिन लंगर बनाया जाता है. यह कम ही लोग जानते है कि लंगर की शुरुआत चिश्तिया सिलसिले से हुई थी. दरगाह की खास बात यह भी है कि यहां कोई भूखा नहीं रहता. यूं तो कई लोग दरगाह में लंगर बनवाकर बंटवाते हैं, लेकिन दरगाह परिसर में मौजूद लंगरखाने में हर रोज परंपरागत रूप से जौ से बनने वाले दलिया का विशेष महत्त्व है.

गरीब नवाज ने पूरे जीवनकाल में खाया महज 40 सेर अन्न

बताया जाता है कि ख्वाजा गरीब नवाज जब अजमेर आए, तब उन्होंने केवल जौ का दलिया खाया. गरीब नवाज का जीवन बहुत ही सादगीपूर्ण था. जो शिक्षा उन्होंने दुनिया को दी, उस शिक्षा को उन्होंने पहले जिया. ख्वाजा ने सभी धर्म, जाति और समाज के लोगों को एक समान समझा और उन्हें मोहब्बत और भाईचारे की शिक्षा दी. दरगाह के खादिम सैयद पीर फकर काजमी बताते है कि ख्वाजा गरीब नवाज ने अजमेर आने के बाद अपने जीवनकाल में महज 40 सेर अन्न ही खाया था.

यह भी पढ़ें. अजमेरः भारी सुरक्षा के बीच दरगाह पहुंचे पाकिस्तानी जायरीन, पेश की चादर

सूफी मत में तीन बातों का जिक्र अहम

खादिम दरगाह काजमी आगे बताते हैं कि सूफी मत खासकर चिश्तियां सिलसिले में तीन बातों का जिक्र अहम होता है. इनमें 'कम खुर्दम' यानी कम खाओ, 'कम सुस्तम' मतलब कम सोओ और 'कम गुफ्तम' इसका अर्थ है कम बोलो. इन तीन नसीहतों पर चलकर ही खुदा की राह में आगे बढ़ा जा सकता है. काजिम दरगाह पर बनने वाले दलिया का महत्व बताते हैं.

Ajmer Khwaja Garib Nawaz Dargah, ajmer news, राजस्थान न्यूज, अजमेर न्यूज
लंगर के लिए तैयार होता दलिया

काजिम का कहना है कि जौ का दलिया दवा की तरह होता है. यह शरीर को साफ रखता है. चिश्तियां सिलसिले में जितने भी पीर वली हुए, उन्होंने अपने मुरीदों को दूसरा अन्न छुड़वाकर दरगाह में बनने वाले जौ के दलिये का लंगर ही दोनों वक्त खाने की नसीहत देते थे. इस लंगर को खाने से ख्वाहिशें नहीं जागती हैं. नब्ज को दबाना ही ईबादत है.

अकबर ने लंगर कायम रखने के लिए दरगाह को जागीर दे दी दान

दरगाह काजिम बताते हैं कि बादशाह अकबर जब अजमेर आए, तब उन्होंने दरगाह में बंटने वाला लंगर खाया था. उसके बाद इस लंगर को हमेशा कायम रखने के लिए अकबर ने कई गांव दरगाह को जागीर में दे दिए. गरीब नवाज की दरगाह में स्थित लंगरखाने में आज भी बढ़े कड़ाही में जौ का दलिया लंगर के रूप में परंपरागत रूप से ही बनाया जाता है.

Ajmer Khwaja Garib Nawaz Dargah, ajmer news, राजस्थान न्यूज, अजमेर न्यूज
लंगर के लिए लाइन में लगे जायरीन

इस परंपरागत लंगर की व्यवस्थाओं का जिम्मा दरगाह कमेटी करती है. इस दलिया को बड़ी भट्टी के ऊपर रखे दो बड़े कड़ाही में जौ के दलिये में नमक और पानी से बनाया जाता है. साथ ही इसे लकड़ियों की आंच पर पकाया जाता है. ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में लंगर को लेने के लिए जायरीन में होड़ मची रहती है.

Last Updated : Mar 1, 2020, 12:15 PM IST
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