अजमेर. तीर्थ गुरु पुष्कर जगत पिता ब्रह्मा की नगरी है. इसलिए तीर्थराज पुष्कर की पवित्र धरा की भी अपनी विशेषताएं हैं. पुष्कर की तपोभूमि में कई महर्षियों और देवी-देवताओं ने अपनी साधनाएं सिद्ध की और बदले में पुष्कर को कई नेमत भी दी. इनमें से एक है, पुष्कर का देशी गुलाब.
बजट और क्वालिटी में होता है बेस्ट
जी हां, पुष्कर के देशी गुलाब का सारी पूरी दुनिया में मशहूर है. गुलाब की सुगंध हो या इसके औषधीय गुण. हर मायने में पुष्कर का गुलाब सबसे बेहतर माना जाता है. मगर इन दिनों वैश्विक कोरोना महामारी के चलते देश में किए गए लॉकडाउन की वजह से फूलों के राजा गुलाब की सुगंध भी कम हो गई है.
पुष्कर में काफी मात्रा में गुलाब की खेती होती है. मगर लंबे लॉकडाउन की वजह से गुलाब की खेती करने वाले किसानों के रोजगार को भी कोरोना की बुरी नजर लग गई है. ईटीवी भारत ने जगत पिता ब्रह्मा की नगरी पुष्कर में कोरोना संक्रमण काल में गुलाब की खेती कर रहे किसानों की हालातों का जायजा लिया. सरकार ने कृषि क्षेत्र में काफी छूट दी है. वहीं इस संकट के समय में किसानों को संबल भी दिया है. लेकिन फूलों की खेती करने वाले किसानों से सरकार हमेशा से ही मुंह फेरे हुए है.
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फूलों को सरकार कृषि की अन्य जिंस की भांति नहीं मानती. यही वजह है कि कोरोना संक्रमण काल में फूलों की खेती को भी ग्रहण लग गया है. ईटीवी भारत ने पुष्कर में फूल मंडी समिति के पदाधिकारी और किसान राजेन्द्र महावर से बातचीत की.
25 फीसदी खपत ख्वाजा के मजार में
महावर कहते हैं कि गुलाब और अन्य फूलों की बिक्री नहीं होने से किसानों 14 करोड़ का नुकसान हुआ है. उन्होंने बताया कि पुष्कर के गुलाब की देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान है. उन्होंने बताया कि पुष्कर में होने वाले गुलाब की 25 फीसदी खपत अजमेर ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में होती है.
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50 फीसदी गुलाबों का बनता है गुलकंद
25 फीसदी गुलाब अन्य राज्यों में जाते है. जहां विवाह और अन्य समारोह में उनकी खपत होती है. शेष 50 फीसदी गुलाब सुखाए जाते हैं. जिन्हें विदेश एक्सपोर्ट किया जाता है और कुछ गुलकंद बनाने वाले व्यापारी खरीदते हैं.
10 रुपए किलों में भी नहीं बिक रहा फूल
महावर ने बताया कि आम दिनों में 40 से 50 रुपए प्रति किलो बिकने वाला गुलाब आज कोई 10 रुपए किलो में भी खरीदने को तैयार नहीं है. लॉकडाउन की वजह से फूल तोड़ने के लिए किसानों को लेबर नहीं मिल रहे हैं. जिन किसानों ने फूल तोड़कर सुखा लिए हैं. उनके खरीदार भी नहीं है.
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किसान बताते हैं कि गुलाब की सूखी पत्तियां 250 रुपए प्रतिकिलो बिकती थी. लेकिन लॉकडाउन में इनका कोई लॉकडाउन में गुलाब की खेती करने वाले किसानों को भारी नुकसान हुआ है. ऐसे समय में सरकार को बिजली के बिल माफ कर किसानों को राहत देनी चाहिए.
उन्होंने बताया कि कृषि की जिंसों में फूल की खेती शामिल नहीं होने के कारण नुकसान का आकलन सरकारी स्तर पर नहीं किया जाता. महावर ने सरकार से मांग की है कि फूलों की खेती को जिंसों में शामिल किया जाए और नुकसान झेल रहे किसानों को सरकार मुआवजा देकर राहत प्रदान करें.