अजमेर. मार्बल नगरी के नाम से विख्यात किशनगढ़ में बड़े पैमाने पर हस्तशिल्प कला का कार्य भी होता है. किशनगढ़ में 50 से ज्यादा फैक्ट्रियां हस्तशिल्प कला उद्योग की हैं. वहीं हाइवे पर 100 से अधिक दुकानें हैं, जहां हस्तशिल्प कला उद्योग में हाथों से मार्बल को तराश कर बनाए गए कहीं बेहद खूबसूरत नाना प्रकार के आइटम्स मिलते हैं. दिन में बड़े पैमाने पर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाने का काम होता है. वहीं कई लोग अपने पूर्वज की मूर्तियां भी बनवाते हैं.
पिलर, फाउंटेन, फ्लावर पॉट, तुलसी पोट, हर प्रकार के छोटे बड़े मंदिर समेत घरों में साज-सज्जा के लिए मार्बल पर की गई खूबसूरत नक्काशी के आइटम भी यहां मिलते हैं. ईटीवी भारत ने मुश्किल समय में गुजर रहे किशनगढ़ हस्तशिल्प कला उद्योग की हकीकत का जायजा लिया. इस दौरान हस्तशिल्प कला से जुड़े हुए लोगों से भी बातचीत की. कारोबारी राम सारस्वत ने बताया कि राज्य सरकार ने हस्तशिल्प कला उद्योग को राहत देते हुए छूट दी है, लेकिन इस छूट का लाभ उद्योग पर नहीं मिल पा रहा है.
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उन्होंने बताया कि फैक्ट्रियों पर काम करने वाले अधिकांश मजदूर भरतपुर-आगरा और मकराना के हैं, जो लॉकडाउन में अपने-अपने घरों को लौट चुके हैं. ऐसे में लेबर के अभाव में उद्योग को फिर से शुरू करना मुमकिन नहीं है. हस्तशिल्प कला उद्योग से जुड़े हुए लोगों ने अपनी दुकानें जरूर खोली हैं, लेकिन फैक्ट्रियों पर काम नहीं हो रहा है. हस्तशिल्प कला में करीब 500 से ज्यादा श्रमिक जुड़े हुए थे.
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उन्होंने बताया कि देश के कई राज्यों के अलावा ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका में हस्तशिल्प कला से जुड़े उत्पाद भेजे जाते हैं. किशनगढ़ में हस्तशिल्प कला के तहत हाथों से बनाए जाने वाले उत्पादों में मकराना का मार्बल, राजसंबन्द का मोर्वर्ड पत्थर, बिदासर के पत्थर के अलावा खाटू से सेंड स्टोन, जैसलमेर से लाल पत्थर एवं वियतनाम से भी पत्थर मंगाया जाता है. कारोबारी राम सारस्वत ने बताया कि हस्तशिल्प कला उद्योग को प्रतिमाह 6 करोड़ का नुकसान हो रहा है. वहीं इस पर 12 से 18 फीसदी जीएसटी का नुकसान सरकार को कर के रूप में हो रहा है. उन्होंने बताया कि हस्तशिल्प कला उद्योग को खड़ा होने में अब काफी वक्त लगेगा.