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खास रिपोर्ट: कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर में होता है देवताओं का वास, जानिए क्या है मान्यता

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Published : Nov 3, 2019, 3:20 PM IST

Updated : Nov 3, 2019, 4:53 PM IST

पुष्कर को सभी तीर्थों का गुरु माना जाता है. विश्व में पुष्कर जगत पिता ब्रह्मा का इकलौता स्थान है. यहां पुष्कर सरोवर की पूजा-अर्चना करने का अपना महत्व है. जबकि जगत पिता ब्रह्मा के मंदिर में श्रद्धालु केवल दर्शनों के लिए जाते हैं. क्या है तीर्थ गुरू पुष्कर का इतिहास, जानिए इस स्पेशल रिपोर्ट में...

Pushkar Sarovar, History of Pushkar Brahma,

अजमेर. तीर्थ नगरी पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. पुष्कर विश्व में जगत पिता ब्रह्मा का इकलौता स्थान है. मान्यता है कि पुष्कर सरोवर ब्रह्मा के कमंडल के जल के समान पवित्र माना जाता है. पुष्कर में आदिकाल से मंदिर में बिराजे जगत पिता ब्रह्मा की गृहस्थ पूजा नहीं करते. बल्कि सरोवर की पूजा का ही महत्व है.

जानिए स्पेशल रिपोर्ट में तीर्थ गुरु पुष्कर का इतिहास

जहां पर पुष्प गिरा वहां भर गया पानी और बना पुष्कर

बताया जाता है कि जगत पिता ब्रह्मा ने पृथ्वी पर अपना स्थान बनाने के लिए एक कमल का पुष्प धरती पर फेंका. जो पुष्कर में आकर गिरा. जहां पर पुष्प गिरा वहां पानी भर गया. यह भी बताया जाता है कि कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक जगत पिता ब्रह्मा ने यहीं पर सृष्टि यज्ञ किया था. इस यज्ञ में ब्रह्मा की पत्नी सावित्री शामिल होने में विलंब हो गई. इस दौरान ब्रह्मा ने गायत्री नाम की महिला से विवाह कर उसे यज्ञ में अपने साथ बैठा लिया. इससे रुष्ट होकर सावित्री ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि कोई भी गृहस्थ उनकी पूजा नहीं करेगा. तब से सरोवर के जल की ही पूजा अर्चना की जाती है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: पुष्कर पशु मेले में घटती ऊंटों की संख्या, संकट में मुख्य आकर्षण का केंद्र

ब्रह्माजी के यज्ञ में समस्त देवी-देवता मौजूद थे

यह भी मान्यता है कि ब्रह्माजी के यज्ञ में समस्त देवी-देवता मौजूद थे और यह रहकर सरोवर में स्नान किया करते थे. तब से हर कार्तिक माह में एकादशी से पूर्णिमा तक सरोवर में स्नान का धार्मिक महत्व है. तीर्थ पुरोहित पंडित सतीश चंद्र तिवारी बताते हैं कि पुष्कर सरोवर में स्नान करने एवं पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण करने से घर में सुख शांति और खुशहाली आती है. वहीं कार्तिक माह में पुष्कर सरोवर में स्नान करने से जन्म जन्मांतर के पापों का अंत होता है. स्नान के बाद गौ दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.

पवित्रता एवं आध्यात्मिकता के माहौल से विदेशी भी अछूते नहीं

पुष्कर की धार्मिक मान्यता के मद्देनजर श्रद्धालु सदियों से तीर्थ के लिए आ हैं और पुष्कर सरोवर की पूजा अर्चना कर जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करते हैं. पुष्कर की अध्यात्मिक खुशबू देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी फैल चुकी है. यही वजह है कि पुष्कर की पवित्रता एवं आध्यात्मिकता के माहौल से विदेशी भी अछूते नहीं रहे हैं. इजराइल निवासी शिरली 7 सालों से पुष्कर आ रही है. उनका कहना है कि पुष्कर में सतरंगी लोक संस्कृति और यह की पवित्र फिजा ने उन्हें प्रभावित किया है. उनकी नजर में पृथ्वी में पुष्कर जैसी जगह है और कहीं नहीं है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: समाज में सुधार लाने के लिए बेटी ने छोड़ा 9 लाख पैकेज... अब सिविल सर्विसेज के जरिए लोहार समाज को चाहती है बढ़ाना

देश के कोने-कोने से कार्तिक स्नान के लिए आ रहे श्रद्धालु

अंतरराष्ट्रीय श्री पुष्कर मेले में तीर्थ यात्रा के लिए बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पुष्कर में कार्तिक स्नान के लिए आ रहे हैं. श्रद्धालुओं को विश्वास है कि कार्तिक स्नान, पितरों को पिंडदान और तर्पण करने से उनके कष्ट दूर होंगे. वहीं उन्हें तीर्थ का पुण्य भी प्राप्त होगा. तीर्थ गुरु पुष्कर में लोगों की आस्था प्रगाढ़ है. यही वजह है कि सदियों से तीर्थ करने के लिए श्रद्धालु के आने का सिलसिला कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा है. लोग पुष्कर तीर्थ करते है. साथ ही यहां कि आध्यात्मिक और पवित्र वातावरण को अपनी यादों में बसा लेते हैं.

अजमेर. तीर्थ नगरी पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है. पुष्कर विश्व में जगत पिता ब्रह्मा का इकलौता स्थान है. मान्यता है कि पुष्कर सरोवर ब्रह्मा के कमंडल के जल के समान पवित्र माना जाता है. पुष्कर में आदिकाल से मंदिर में बिराजे जगत पिता ब्रह्मा की गृहस्थ पूजा नहीं करते. बल्कि सरोवर की पूजा का ही महत्व है.

जानिए स्पेशल रिपोर्ट में तीर्थ गुरु पुष्कर का इतिहास

जहां पर पुष्प गिरा वहां भर गया पानी और बना पुष्कर

बताया जाता है कि जगत पिता ब्रह्मा ने पृथ्वी पर अपना स्थान बनाने के लिए एक कमल का पुष्प धरती पर फेंका. जो पुष्कर में आकर गिरा. जहां पर पुष्प गिरा वहां पानी भर गया. यह भी बताया जाता है कि कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक जगत पिता ब्रह्मा ने यहीं पर सृष्टि यज्ञ किया था. इस यज्ञ में ब्रह्मा की पत्नी सावित्री शामिल होने में विलंब हो गई. इस दौरान ब्रह्मा ने गायत्री नाम की महिला से विवाह कर उसे यज्ञ में अपने साथ बैठा लिया. इससे रुष्ट होकर सावित्री ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि कोई भी गृहस्थ उनकी पूजा नहीं करेगा. तब से सरोवर के जल की ही पूजा अर्चना की जाती है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: पुष्कर पशु मेले में घटती ऊंटों की संख्या, संकट में मुख्य आकर्षण का केंद्र

ब्रह्माजी के यज्ञ में समस्त देवी-देवता मौजूद थे

यह भी मान्यता है कि ब्रह्माजी के यज्ञ में समस्त देवी-देवता मौजूद थे और यह रहकर सरोवर में स्नान किया करते थे. तब से हर कार्तिक माह में एकादशी से पूर्णिमा तक सरोवर में स्नान का धार्मिक महत्व है. तीर्थ पुरोहित पंडित सतीश चंद्र तिवारी बताते हैं कि पुष्कर सरोवर में स्नान करने एवं पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण करने से घर में सुख शांति और खुशहाली आती है. वहीं कार्तिक माह में पुष्कर सरोवर में स्नान करने से जन्म जन्मांतर के पापों का अंत होता है. स्नान के बाद गौ दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.

पवित्रता एवं आध्यात्मिकता के माहौल से विदेशी भी अछूते नहीं

पुष्कर की धार्मिक मान्यता के मद्देनजर श्रद्धालु सदियों से तीर्थ के लिए आ हैं और पुष्कर सरोवर की पूजा अर्चना कर जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करते हैं. पुष्कर की अध्यात्मिक खुशबू देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी फैल चुकी है. यही वजह है कि पुष्कर की पवित्रता एवं आध्यात्मिकता के माहौल से विदेशी भी अछूते नहीं रहे हैं. इजराइल निवासी शिरली 7 सालों से पुष्कर आ रही है. उनका कहना है कि पुष्कर में सतरंगी लोक संस्कृति और यह की पवित्र फिजा ने उन्हें प्रभावित किया है. उनकी नजर में पृथ्वी में पुष्कर जैसी जगह है और कहीं नहीं है.

पढ़ें- स्पेशल रिपोर्ट: समाज में सुधार लाने के लिए बेटी ने छोड़ा 9 लाख पैकेज... अब सिविल सर्विसेज के जरिए लोहार समाज को चाहती है बढ़ाना

देश के कोने-कोने से कार्तिक स्नान के लिए आ रहे श्रद्धालु

अंतरराष्ट्रीय श्री पुष्कर मेले में तीर्थ यात्रा के लिए बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पुष्कर में कार्तिक स्नान के लिए आ रहे हैं. श्रद्धालुओं को विश्वास है कि कार्तिक स्नान, पितरों को पिंडदान और तर्पण करने से उनके कष्ट दूर होंगे. वहीं उन्हें तीर्थ का पुण्य भी प्राप्त होगा. तीर्थ गुरु पुष्कर में लोगों की आस्था प्रगाढ़ है. यही वजह है कि सदियों से तीर्थ करने के लिए श्रद्धालु के आने का सिलसिला कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा है. लोग पुष्कर तीर्थ करते है. साथ ही यहां कि आध्यात्मिक और पवित्र वातावरण को अपनी यादों में बसा लेते हैं.

Intro:ब्रह्मा मंदिर के विजुअल राजस्थान वॉरियर्स व्हाट्सएप ग्रुप में भी डाले गए हैं। कृपया यह विजुअल स्टोरी के साथ जोड़ें।

अजमेर। पुष्कर को सभी तीर्थों का गुरु माना जाता है। विश्व में पुष्कर जगतपिता ब्रह्मा का इकलौता स्थान है। लेकिन यहां श्रद्धालू जगतपिता ब्रह्मा के रूप में पुष्कर सरोवर की पूजा अर्चना करने का महत्व है। जबकि जगतपिता ब्रह्मा के मंदिर में श्रद्धालु केवल दर्शनों के लिए जाते हैं। क्या है पीठ गुरु पुष्कर का इतिहास जानिए ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट में -:

तीर्थ नगरी पुष्कर करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। वही पुष्कर विश्व में जगतपिता ब्रह्मा का इकलौता स्थान है। मान्यता है कि पुष्कर सरोवर काजल ब्रह्मा के कमंडल के जल के समान पवित्र माना जाता है। क्या आपको पता है कि पुष्कर में आदिकाल से मंदिर में बिराजे जगतपिता ब्रह्मा की गृहस्थ पूजा नहीं करते। बल्कि सरोवर की पूजा का ही महत्व है। जी हां जगतपिता ब्रह्मा की पहली पत्नी सावित्री मिले उन्हें श्राप की वजह से आज भी श्रद्धालु जगतपिता ब्रह्मा की पूजा नहीं करते। बताया जाता है कि जगतपिता ब्रह्मा ने पृथ्वी पर अपना स्थान बनाने के लिए एक कमल का पुष्प धरती पर फेंका जो पुष्कर में आकर गिरा। जहां पर पुष्प गिरा वहां पानी भर गया यह भी बताया जाता है कि कार्तिक माह की एकादशी से पूर्णिमा तक जगतपिता ब्रह्मा ने यहीं पर सृष्टि यज्ञ किया था। इस यज्ञ में ब्रह्मा की पत्नी सावित्री शामिल होने में विलंब हो गई इस दौरान ब्रह्मा ने गायत्री नाम की महिला से विवाह कर उसे यज्ञ में अपने साथ बैठा लिया। इससे रुष्ट होकर सावित्री ने ब्रह्मा को श्राप दिया कि कोई भी गृहस्थ उनकी पूजा नहीं करेगा। तब से सरोवर के जल की ही पूजा अर्चना की जाती है...
बाइट- पंडित अनिल शर्मा तीर्थ पुरोहित

यह भी मान्यता है कि ब्रह्मा की यज्ञ में समस्त देवी-देवता मौजूद थे और यह रहकर सरोवर में स्नान किया करते थे। तब से हर कार्तिक माह में एकादशी से पूर्णिमा तक सरोवर में स्नान का धार्मिक महत्व है। तीर्थ पुरोहित पंडित सतीश चंद्र तिवारी बताते हैं कि पुष्कर सरोवर में स्नान करने एवं पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण करने से घर में सुख शांति और खुशहाली आती है वही कार्तिक माह में पुष्कर सरोवर में स्नान करने से जन्म जन्मांतर के पापों का अंत होता है। वही स्नान के बाद गौ दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है ....
बाइट पंडित सतीश चंद्र तिवारी तीर्थ पुरोहित

पुष्कर की धार्मिक मान्यता के मद्देनजर श्रद्धालु सदियों से तीर्थ के लिए आ हैं और पुष्कर सरोवर की पूजा अर्चना कर जगतपिता ब्रह्मा के दर्शन करते हैं। पुष्कर की अध्यात्मिक खुशबू देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक भी फैल चुकी है। यही वजह है कि पुष्कर की पवित्रता एवं आध्यात्मिकता के माहौल से विदेशी भी अछूते नहीं रहे हैं। इजराइल निवासी शिरली 7 वर्षो से पुष्कर आ रही है। उनका कहना है कि पुष्कर में सतरंगी लोक संस्कृति और यह की पवित्र फिजा ने उन्हें प्रभावित किया है उनकी नजर में पृथ्वी में पुष्कर जैसी जगह है और कहीं नहीं है....
बाइट शिरली- विदेशी पर्यटक -इजराइल

अंतरराष्ट्रीय श्री पुष्कर मेले में तीर्थ यात्रा के लिए बड़ी संख्या में देश के कोने-कोने से श्रद्धालु पुष्कर में कार्तिक स्नान के लिए आ रहे हैं। श्रद्धालुओं को विश्वास है कि कार्तिक स्नान, पितरों को पीड़दान एवं तर्पण करने से उनके कष्ट दूर होंगे वहीं उन्हें तीर्थ का पुण्य भी प्राप्त होगा....
बाइट चंदा समदानी श्रद्धालु- चित्तौड़
बाइट- सुशीला सोनी श्रद्धालु - जयपुर
बाइट- प्रणव मधुसुधन श्रद्धालु मुंबई ( सबसे पहली बाइट )

तीर्थ गुरु पुष्कर में लोगों की आस्था प्रगाढ़ है। यही वजह है कि सदियों से तीर्थ करने के लिए श्रद्धालु के आने का सिलसिला कम नही हुआ बल्कि बढ़ा है। लोग पुष्कर तीर्थ करते है। साथ ही यहां कि आध्यात्मिक और पवित्र वातावरण को अपनी यादों में बसा लेते है।




Body:प्रियांक शर्मा
अजमेर


Conclusion:
Last Updated : Nov 3, 2019, 4:53 PM IST
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