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Special : कोरोना काल में कमजोर हुई 'स्नेह की डोर'...अंतिम संस्कार से अपनों ने फेरा मुंह

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Published : Aug 10, 2020, 1:54 PM IST

कोरोना संक्रमण की दहशत में लोग मानवीय संवेदनाओं को भूल गए हैं. हर व्यक्ति की ख्वाहिश होती है कि मरने के बाद उसका अंतिम संस्कार परिवार वाले पूरे विधि-विधान से करें, लेकिन कोरोना की वजह से अब स्नेह की डोर कमजोर पड़ गई है. स्वास्थ्य विभाग की मानें तो शव के अंतिम संस्कार से संक्रमण नहीं फैलता. बावजूद इसके, लोग अपनों से दूरी बना रहे हैं. पढ़ें पूरी खबर...

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रिश्तों पर भारी कोरोना का डर

अजमेर. कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में जारी है. भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 21 लाख से ऊपर हो चुकी है. राजस्थान में यह आंकड़ा 50 हजार से भी ज्यादा हो चुका है. जबकि मरने वालों की संख्या भी 700 के पार है. अकेले अजमेर जिले में ही अब तक 85 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन सवाल यह है कि जिस वायरस की वजह से लोग जीते जी एक दूसरे को छूने से कतरा रहे हैं, तो मरने के बाद लोगों का अंतिम संस्कार कैसे हो ?

रिश्तों पर भारी कोरोना का डर

अजमेर को राजस्थान का ह्रदय कहा जाता है. यही वजह है कि अजमेर के चारों ओर राजमार्ग हैं. वहीं, विश्व विख्यात जगतपिता ब्रह्मा का मंदिर और ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह भी अजमेर में होने से यहां बड़ी संख्या में लोगों का आना-जाना लगा रहता है. मृत्यु एक सच है. दुनिया में जो आया है, उसे जाना ही पड़ता है. लेकिन हर कोई चाहता है कि उसकी अंत्येष्टि सम्मानजनक और धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार हो. समाज में ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें अपनों का कंधा भी नसीब नहीं होता है.

ETV भारत ने अजमेर में कोरोना संक्रमण काल में शवों की अंत्येष्टि को लेकर पड़ताल की. देश में विविध धर्मों के लोग हैं, जिनकी अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं. ऐसे में अंतिम क्रिया कर्मों की भी अलग-अलग विधियां हैं. धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी अजमेर में सभी धर्मों के लोग रहते हैं. सभी के अपने-अपने धर्म के मुताबिक जिले में श्मशान, कब्रिस्तान और ग्रेव्यार्ड हैं. जहां हर अमीर-गरीब व्यक्ति का अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार किया जाता है.

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मशीन में शवदाह करते कर्मचारी

जिन शवों की शिनाख्त नहीं हो पाती उनका क्या ?

अजमेर से कई राजमार्ग होकर गुजरते हैं. वहीं, धार्मिक नगरी होने की वजह से कई लोगों का यहां आना-जाना लगा रहता है. कई लोग ऐसे होते हैं जिनकी विभिन्न परिस्थितियों में मौत हो जाती है और उनकी शिनाख्त हो जाती है तो उसके अपने अंतिम संस्कार कर देते हैं. लेकिन जिन शवों की शिनाख्त नहीं हो पाती उनका क्या?

ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पता चला कि ऐसे शवों को शिनाख्त के लिए अस्पताल की मोर्चरी में रखा जाता है. अजमेर जेएलएन अस्पताल की मोर्चरी में दो डिफिज्रर है. ऐसे शवों को 3 दिन तक रखने के बाद नगर निगम या धार्मिक संस्थाओं के माध्यम से उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. आपकों बता दें कि दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग ने यह दावा किया कि शव के अंतिम संस्कार से कोरोना वायरस नहीं फैलता है, लेकिन फिर भी लोग अपनों से दूरी बना रहे हैं.

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अजमेर का मोक्षधाम

यह भी पढे़ं : Special: कोरोना के डर से रिश्तों में आई खटास, बुजुर्ग माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने को मजबूर हुए बच्चे

अजमेर में हर बड़े क्षेत्र में श्मशान हैं. वहीं, कब्रिस्तान और ग्रेव्यार्ड भी मौजूद हैं, जिनका संचालन क्षेत्र की समितियां, नगर निगम या विभिन्न धर्म से जुड़ी संस्थाए करती हैं. कोरोना संक्रमण काल में सरकार के नियमों के अनुसार कोरोना संक्रमित मृत व्यक्ति को अस्पताल से सबसे नजदीक श्मशान, कब्रिस्तान और ग्रेव्यार्ड में शवों की अंत्येष्टि करने का प्रावधान है.

परिजन खुद हट रहे पीछे...

जेएलएन मेडिकल कॉलेज के सहायक प्राचार्य डॉक्टर संजीव महेश्वरी बताते हैं कि अस्पताल में कोरोना से मरने वाले व्यक्ति की बॉडी को दो बार सैनिटाइज किया जाता है. उन्होंने बताया कि कोरोना को लेकर लोगों में इतना डर है कि मरने वाले शख्स के परिजन खुद लिख कर देते हैं कि शव का निस्तारण सरकारी प्रावधानों के अनुसार ही कर दिया जाए. जबकि अंतिम क्रिया में 5 परिजनों को शामिल होने की छूट कलेक्टर के आदेश से मिल चुकी है. ऐसे में परिजन पीपीई कीट पहनकर श्मशान कब्रिस्तान या ग्रेव्यार्ड में अंतिम संस्कार कर सकते हैं.

डॉ. माहेश्वरी ने बताया कि अजमेर में कोरोना से 85 लोगों की अस्पताल में मौत हो चुकी है, लेकिन इनमें से चंद मृतकों के परिजन ही हैं, जिन्होंने अंतिम संस्कार खुद करवाया हो. ज्यादातर लोग तो शव को छूने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं. उन्होंने कहा कि कोरोना मरीजों के बीच चिकित्सक नर्सिंग कर्मी रहते हैं. कोरोना से मरने वाले व्यक्ति को नगर निगम के कर्मचारी श्मशान तक पहुंचाते हैं. वह क्या इंसान नहीं हैं? उन्होंने कहा कि ऐसे विषम परिस्थिति में लोगों को मानवीय संवेदना छोड़नी नहीं चाहिए.

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अलग-अलग धर्मों के अनुसार निगम कर रहा अंतिम संस्कार

कोरोना वॉरियर बन रहे अंतिम यात्रा के साथी...

नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी रुपाराम चौधरी बताते हैं कि शव को अस्पताल से श्मशान तक पहुंचाने और उनका अंतिम क्रिया कर्म करने में नगर निगम के कर्मचारियों की अहम भूमिका है. उन्होंने बताया कि पुष्कर रोड पर कोरोना मरीजों का अंतिम संस्कार शव दाह मशीन से किया जाता है. वहीं, नागफणी में गोरा गरीबा कब्रिस्तान एवं क्रिश्चियन गंज स्थित ग्रेव्यार्ड में शवों को दफनाने के लिए अलग से व्यवस्था की गई है.

यह भी पढे़ं : SPECIAL : बाजारों में विटामिन C की बढ़ी डिमांड, जानें क्या है इसके फायदे...

उन्होंने बताया कि शवों के दहन के लिए इस्तेमाल होने वाली गैस से संचालित शवदाह मशीन पिछले 5 दिनों से खराब खराब पड़ी थी. जिसकी वजह से शवों का अंतिम संस्कार लकड़ियों की चिता पर किया जा रहा था. जिस कारण समीप की बस्तियों में रहने वाले लोगों ने भी आपत्ति भी जताई थी. हालांकि, अब मशीन ठीक हो चुकी है. अजमेर में शवों के अंतिम संस्कार और उन्हें दफनाने के लिए श्मशान और कब्रिस्तान में पर्याप्त जगह है, लेकिन इलेक्ट्रिक शवदाह की कमी फिर भी खल रही है.

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कोरोना काल में अंतिम यात्रा से दूर परिवार

अजमेर में शवों को उनके धर्म के अनुसार क्रिया कर्म करने के पर्याप्त इंतजामात हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण की दहशत में लोग मानवीय संवेदनाओं को भूल गए हैं. अनुमति मिलने के बाद अपने ही परिवार के व्यक्ति के शव को छूने और उसका अंतिम संस्कार करवाने से लोग कतरा रहे हैं. जैसे मृतक का उसके परिवार से कोई नाता ही ना रहा हो.

अजमेर. कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में जारी है. भारत में कोरोना मरीजों की संख्या 21 लाख से ऊपर हो चुकी है. राजस्थान में यह आंकड़ा 50 हजार से भी ज्यादा हो चुका है. जबकि मरने वालों की संख्या भी 700 के पार है. अकेले अजमेर जिले में ही अब तक 85 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन सवाल यह है कि जिस वायरस की वजह से लोग जीते जी एक दूसरे को छूने से कतरा रहे हैं, तो मरने के बाद लोगों का अंतिम संस्कार कैसे हो ?

रिश्तों पर भारी कोरोना का डर

अजमेर को राजस्थान का ह्रदय कहा जाता है. यही वजह है कि अजमेर के चारों ओर राजमार्ग हैं. वहीं, विश्व विख्यात जगतपिता ब्रह्मा का मंदिर और ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह भी अजमेर में होने से यहां बड़ी संख्या में लोगों का आना-जाना लगा रहता है. मृत्यु एक सच है. दुनिया में जो आया है, उसे जाना ही पड़ता है. लेकिन हर कोई चाहता है कि उसकी अंत्येष्टि सम्मानजनक और धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार हो. समाज में ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें अपनों का कंधा भी नसीब नहीं होता है.

ETV भारत ने अजमेर में कोरोना संक्रमण काल में शवों की अंत्येष्टि को लेकर पड़ताल की. देश में विविध धर्मों के लोग हैं, जिनकी अपनी संस्कृति और परंपराएं हैं. ऐसे में अंतिम क्रिया कर्मों की भी अलग-अलग विधियां हैं. धार्मिक और ऐतिहासिक नगरी अजमेर में सभी धर्मों के लोग रहते हैं. सभी के अपने-अपने धर्म के मुताबिक जिले में श्मशान, कब्रिस्तान और ग्रेव्यार्ड हैं. जहां हर अमीर-गरीब व्यक्ति का अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार किया जाता है.

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मशीन में शवदाह करते कर्मचारी

जिन शवों की शिनाख्त नहीं हो पाती उनका क्या ?

अजमेर से कई राजमार्ग होकर गुजरते हैं. वहीं, धार्मिक नगरी होने की वजह से कई लोगों का यहां आना-जाना लगा रहता है. कई लोग ऐसे होते हैं जिनकी विभिन्न परिस्थितियों में मौत हो जाती है और उनकी शिनाख्त हो जाती है तो उसके अपने अंतिम संस्कार कर देते हैं. लेकिन जिन शवों की शिनाख्त नहीं हो पाती उनका क्या?

ईटीवी भारत ने पड़ताल की तो पता चला कि ऐसे शवों को शिनाख्त के लिए अस्पताल की मोर्चरी में रखा जाता है. अजमेर जेएलएन अस्पताल की मोर्चरी में दो डिफिज्रर है. ऐसे शवों को 3 दिन तक रखने के बाद नगर निगम या धार्मिक संस्थाओं के माध्यम से उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. आपकों बता दें कि दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग ने यह दावा किया कि शव के अंतिम संस्कार से कोरोना वायरस नहीं फैलता है, लेकिन फिर भी लोग अपनों से दूरी बना रहे हैं.

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अजमेर का मोक्षधाम

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अजमेर में हर बड़े क्षेत्र में श्मशान हैं. वहीं, कब्रिस्तान और ग्रेव्यार्ड भी मौजूद हैं, जिनका संचालन क्षेत्र की समितियां, नगर निगम या विभिन्न धर्म से जुड़ी संस्थाए करती हैं. कोरोना संक्रमण काल में सरकार के नियमों के अनुसार कोरोना संक्रमित मृत व्यक्ति को अस्पताल से सबसे नजदीक श्मशान, कब्रिस्तान और ग्रेव्यार्ड में शवों की अंत्येष्टि करने का प्रावधान है.

परिजन खुद हट रहे पीछे...

जेएलएन मेडिकल कॉलेज के सहायक प्राचार्य डॉक्टर संजीव महेश्वरी बताते हैं कि अस्पताल में कोरोना से मरने वाले व्यक्ति की बॉडी को दो बार सैनिटाइज किया जाता है. उन्होंने बताया कि कोरोना को लेकर लोगों में इतना डर है कि मरने वाले शख्स के परिजन खुद लिख कर देते हैं कि शव का निस्तारण सरकारी प्रावधानों के अनुसार ही कर दिया जाए. जबकि अंतिम क्रिया में 5 परिजनों को शामिल होने की छूट कलेक्टर के आदेश से मिल चुकी है. ऐसे में परिजन पीपीई कीट पहनकर श्मशान कब्रिस्तान या ग्रेव्यार्ड में अंतिम संस्कार कर सकते हैं.

डॉ. माहेश्वरी ने बताया कि अजमेर में कोरोना से 85 लोगों की अस्पताल में मौत हो चुकी है, लेकिन इनमें से चंद मृतकों के परिजन ही हैं, जिन्होंने अंतिम संस्कार खुद करवाया हो. ज्यादातर लोग तो शव को छूने के लिए भी तैयार नहीं होते हैं. उन्होंने कहा कि कोरोना मरीजों के बीच चिकित्सक नर्सिंग कर्मी रहते हैं. कोरोना से मरने वाले व्यक्ति को नगर निगम के कर्मचारी श्मशान तक पहुंचाते हैं. वह क्या इंसान नहीं हैं? उन्होंने कहा कि ऐसे विषम परिस्थिति में लोगों को मानवीय संवेदना छोड़नी नहीं चाहिए.

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अलग-अलग धर्मों के अनुसार निगम कर रहा अंतिम संस्कार

कोरोना वॉरियर बन रहे अंतिम यात्रा के साथी...

नगर निगम के स्वास्थ्य अधिकारी रुपाराम चौधरी बताते हैं कि शव को अस्पताल से श्मशान तक पहुंचाने और उनका अंतिम क्रिया कर्म करने में नगर निगम के कर्मचारियों की अहम भूमिका है. उन्होंने बताया कि पुष्कर रोड पर कोरोना मरीजों का अंतिम संस्कार शव दाह मशीन से किया जाता है. वहीं, नागफणी में गोरा गरीबा कब्रिस्तान एवं क्रिश्चियन गंज स्थित ग्रेव्यार्ड में शवों को दफनाने के लिए अलग से व्यवस्था की गई है.

यह भी पढे़ं : SPECIAL : बाजारों में विटामिन C की बढ़ी डिमांड, जानें क्या है इसके फायदे...

उन्होंने बताया कि शवों के दहन के लिए इस्तेमाल होने वाली गैस से संचालित शवदाह मशीन पिछले 5 दिनों से खराब खराब पड़ी थी. जिसकी वजह से शवों का अंतिम संस्कार लकड़ियों की चिता पर किया जा रहा था. जिस कारण समीप की बस्तियों में रहने वाले लोगों ने भी आपत्ति भी जताई थी. हालांकि, अब मशीन ठीक हो चुकी है. अजमेर में शवों के अंतिम संस्कार और उन्हें दफनाने के लिए श्मशान और कब्रिस्तान में पर्याप्त जगह है, लेकिन इलेक्ट्रिक शवदाह की कमी फिर भी खल रही है.

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कोरोना काल में अंतिम यात्रा से दूर परिवार

अजमेर में शवों को उनके धर्म के अनुसार क्रिया कर्म करने के पर्याप्त इंतजामात हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण की दहशत में लोग मानवीय संवेदनाओं को भूल गए हैं. अनुमति मिलने के बाद अपने ही परिवार के व्यक्ति के शव को छूने और उसका अंतिम संस्कार करवाने से लोग कतरा रहे हैं. जैसे मृतक का उसके परिवार से कोई नाता ही ना रहा हो.

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