अजमेर. राजस्थान की हृदयस्थली अजमेर कभी अंग्रेजों की पसंदीदा जगह थी. इसका कारण था यहां की भौगोलिक स्थिति और जलवायु. यही वजह थी की अंग्रेजों ने यहां सैन्य छावनी ही नहीं बनाई, बल्कि अपने व्यापार और आवागमन को सुगम बनाने के लिए रेल कारखाने भी लगाए. अंग्रेजों के वक्त की कई बेजोड़ इमारतें है, जो आज हैरिटेज में भी गिनी जाती हैं. इनमें अंग्रेजों के जमाने में बने ऐतिहासिक चर्च भी हैं जो मसीह समाज के लिए बड़े धार्मिक स्थल बन चुके हैं, लेकिन देश में फैले कोरोना संक्रमण के कारण ये सभी चर्च बंद हैं.
अजमेर में मौजूद 6 प्रसिद्ध चर्च
हर धर्म में कई मत हैं, वैसे ही ईसाई धर्म में भी अलग अलग मत हैं. इस आधार पर अलग अलग मत के धर्मावलंबियों के लिए अलग-अलग चर्च हैं. खास बात ये है कि अजमेर में विभिन्न चर्चों की मौजूदा स्थिति काफी अच्छी है. अपनी खूबसूरती से ये चर्च आज भी हर किसी का ध्यान आकर्षित करते हैं. अजमेर में यूं तो कई चर्च हैं, लेकिन शहर की बात की जाए तो करीब 6 चर्च काफी प्रचलित हैं. जहां लोग प्रार्थना और आराधना के लिए जाते हैं. बेशक मत अलग हो सकते हैं, लेकिन सभी का मकसद प्रेम, अमन और शांति है.
यह भी पढ़ें- अजमेर में 11 नए कोरोना केस, आंकड़ा पहुंचा 511
दुनिया में मानव जाति के ऊपर संकट बनी वैश्विक कोरोना महामारी का असर अजमेर के प्राचीन और ऐतिहासिक चर्चों पर भी पड़ा है. लॉकडाउन के पहले दिन से लेकर आज तक चर्च आगंतुकों के लिए बंद किए गए हैं. अजमेर में डायसिस ऑफ राजस्थान सीएनआई का कार्यालय मौजूद है. बता दें कि नॉर्थ इंडिया में 57 चर्च इसके आधीन है. इन सब पर एक बिशप भी हैं जो इन चर्चों का प्रबंधन और धार्मिक क्रिया कलापों को देखते हैं.
चर्च के प्रबंधनों ने की ईटीवी भारत से बातचीत
ईटीवी भारत ने बिशप दरबारा सिंह से कोरोना संक्रमण काल में चर्चों की स्थिति पर बातचीत की. उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से जो हिदायत दी गई है उसका पालन किया जा रहा है. जब तक सरकार निर्देश नहीं देती तब तक चर्च बंद रहेंगे. बिशप दरबारा सिंह ने बताया कि फिलहाल व्यक्तिगत यदि कोई प्रार्थना के लिए चर्च में आता है तो उसके लिए चर्च खोला जाता है. लेकिन, कम्युनिटी तौर पर चर्च नहीं खोले जा रहे हैं. सरकार के निर्देशों की पालना के लिए सभी चर्च के पादरियों को सोशल मीडिया के जरिए सूचित कर दिया गया है.
बिशप दरबारा सिंह ने बताया कि सभी पादरी साहिबान को वीडियो कॉल के जरिए लॉकडाउन के दौरान निर्देश दिए गए थे कि कोई भी व्यक्ति अपने आस-पास यदि भूखा है तो उसे राशन उपलब्ध करवाया जाए और यदि कोई बीमार है तो उसके इलाज के लिए मदद की जाए. चर्चों की ओर से ये मदद आज भी जारी है. उन्होंने बताया कि राजस्थान का सबसे प्राचीन चर्च ब्यावर में है. उसके बाद कई चर्च बने हैं जहां लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार प्रार्थनाएं और आराधना करते आए हैं.
सोशल मीडिया से लोगों तक पहुंचाई जा रही आराधना
आगरा गेट स्थित रोबसन मेमोरियल कैथेड्रिल चर्च के प्रभारी रेविन दीपक बैरिस्टर ने बताया कि लॉकडाउन में सभी को संघर्ष करना पड़ा है. चर्च भी इससे अछूते नहीं रहे हैं. सरकार ने अभी धार्मिक स्थलों को खोले जाने के निर्देश नहीं दिए हैं. लिहाजा लॉकडाउन से लेकर अभी तक चर्च में आराधना हो रही है जिन्हें सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि धार्मिक स्थल लोगों के दान पर चलते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से आर्थिक संकट की स्थिति बनी हुई है.
यह भी पढ़ें- अजमेर में पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे NSUI कार्यकर्ताओं का खदेड़ा
अजमेर में अग्रसेन चौराहे के समीप सेंट्रल मेथोडिस्ट चर्च के प्रभारी फादर एफडब्लू फ्लिप ने बताया कि लॉकडाउन में लोगों को समझाया गया कि वो चर्च ना आए और घरों में रहकर आराधना करें. चर्च में आराधना नहीं हो रही है. रविवार को चर्च में आराधना होती है जिसे ऑनलाइन लोगों तक पहुंचाया जाता है. उन्होंने बताया कि चर्च में सबसे पवित्र धार्मिक रस्म प्रभु भोज का आयोजन नहीं हो पा रहा है. इसका लोगों को जरूर मलाल है, लेकिन जब हालात ठीक हो जाएंगे तब ये रस्म भी फिर से होने लगेगी. फिलहाल लोगों की सुरक्षा ज्यादा जरूरी है.
लॉकडाउन के पहले दिन से चर्च आगंतुकों के लिए बंद है. भीतर जहां प्रार्थनाएं और आराधनाएं होती थी वो सुनी पड़ी है. लंबे लॉकडाउन के बाद भी धार्मिक स्थलों को नहीं खोलने के सरकार के निर्देश है. ऐसे में लंबे वक्त से चर्चों में आगंतुकों के नहीं आने से चर्चों के प्रबंधन को लेकर भी आर्थिक संकट खड़ा हो रहा है.