अजमेर. अजमेर में विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के उर्स के लिए कायड स्थित विश्राम स्थली में जायरीनों का गांव बसाया गया है, लेकिन इस बार यहां बहुत कम जायरीन आए हैं. कोरोना का असर उर्स के मेले पर भी पड़ा है. जबकि इसकी तैयारी हर वर्ष की तरह वृहद स्तर पर की गई है. उर्स को चार दिन बीत चुके हैं, लेकिन हर साल बड़ी संख्या में आने वाला जायरीनों का जत्था इस बार नजर नहीं आ रहा है. पहले जहां उर्स पर जायरीनों की भीड़ उमड़ती थी, वहीं इस बार कम ही लोग आ रहे हैं. उर्स के अंतिम 2 दिन ही अब शेष रह गए हैं. भीड़ कम होने से यहां दुकान लगाने वालों को भी खासा नुकसान हो रहा है.
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हर साल की तरह इस बार भी अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का आयोजन किया गया है. देश के कोने-कोने से जायरीन गरीब नवाज के दर पर हाजरी देने के लिए आते हैं. मगर अब तक के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब जायरीनों की संख्या काफी कम रही है. अजमेर में आने वाले जायरीनों के लिए कायड विश्राम स्थली में विशेष इंतजाम किए गए हैं. हर वर्ष उर्स के मौके पर कायड विश्राम स्थली में 50 से 75 हजार जायरीन रहते हैं, लेकिन इस बार महज 4 हजार जायरीन ही पहुंचे हैं. हालांकि उर्स के मद्देनजर प्रशासन और दरगाह कमेटी ने इंतजाम हर वर्ष की तरह जायरीन की आवक के अनुसार ही किये थे.
कायड विश्राम स्थली में है पूरा इंतजाम
उर्स को चार दिन बीत चुके हैं और अब दो दिन ही शेष हैं. उम्मीद की जा रही है कि जायरीन की संख्या में गुरुवार से बढ़ोतरी होगी. दरगाह कमेटी के नाज़िम अशफाक हुसैन बताते हैं कि सरकार की गाइड लाइन के अनुसार इस बार उर्स स्पेशल ट्रेनें नहीं चलाई गईं. वहीं जायरीन के आने से पहले पंजीयन करवाने और कोरोना जांच करवाकर आने की पाबंदियां भी जायरीनों के कम आने का कारण हैं. उन्होंने बताया कि विश्राम स्थली में जायरीन के ठहरने, खाने-पीने, चिकित्सा, परिवहन के साधन, सुरक्षा सहित तमाम इंतजाम किए गए हैं. जो जायरीन आए हैं उन्हें भी कोरोना के प्रति जागरूक किया जा रहा है.
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उर्स मेले में आने वाले जायरीनों में सबसे बड़ी संख्या गरीब तबके के लोगों की होती है. इनमें ज्यादात्तर लोग ट्रेनों से अजमेर आते हैं. वहीं इस बार किसान आंदोलन और उर्स मेले में आने के लिए पंजीयन और कोरोना जांच करवाने की अनिवार्यता से भी काफी फर्क पड़ा है. कोरोना का संकट टला नहीं है. लोग भीड़ भाड़ वाले स्थानों पर जाने से गुरेज कर रहे हैं. यह भी जायरीनों के कम आने की प्रमुख वजह है.
ढाई हजार बसें पहुंचती थीं, इस बार आईं सिर्फ 40
कायड विश्राम स्थली पर ठहरने के लिए जायरीन बड़ी संख्या में बसों के जरिए भी आते हैं. हर साल ढाई हजार बसें पहुंचा करती थीं लेकिन इस बार 40 से भी कम बसें विश्राम स्थाली पहुंची हैं. उर्स के चौथे दिन मेला परवान पर होता था. कायड विश्राम स्थली में जायरीन की चहल पहल रहती थी. पैदल चलना मुश्किल होता था लेकिन इस बार वे रास्ते सूनसान पड़े हैं. मेला स्थली पर लगाई गईं दुकानों पर भी सन्नाटा पसरा रहता है. जायरीनों की कम आवक से दुकानदारों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है. अच्छी कमाई की उम्मीद से राज्य के बाहर से भी कई व्यापारी दुकान लगाने आए हैं लेकिन उन्हें भी निराशा हाथ लगी. व्यापारियों का कहना है कि अब 2 दिन ही बचे हैं उम्मीद है कि छठी और जुम्मे पर जायरीनों की आवक बढ़ेगी और कुछ कारोबार होगा.
कायड स्थित विश्राम स्थली में 50 हजार से अधिक जायरीन के लिए व्यवस्थाए की गई थी. दरगाह कमेटी के सहायक नाज़िम डॉ. आदिल बताते हैं कि कोरोना का डर और माली हालात के अलावा मेले में आने को लेकर जो नियम जायरीनों के लिए बनाए गए हैं जैसे बच्चों और बुजुर्गों के लिए पाबंदी, कोरोना टेस्ट आदि के कारण इस बार उर्स में भीड़ कम है. हालांकि सरकार की ओर से बनाए गए नियम जायरीनों की हिफाजत के लिए ही हैं. नियमों की पालना कर लोगों ने सच्चे और अच्छे नागरिक होने का संदेश भी दिया है.