अजमेर. कोरोना के पिछले सीजन में लोगों ने सहयोग की भावना दिखाई थी. राजनीतिक दल हों, समाजसेवी हों, उद्योगपति हों, फिल्मी हस्तियां हों या भामाशाह. हर कोई मदद के लिए सामने आ रहा था. इस बार कोरोना की घातक लहर दिखाई दे रही है. लेकिन दानदाताओं का टोटा पड़ गया है.
कोरोना की इस दूसरी लहर में न तो मदद के लिए हाथ उठ रहे हैं और न ही कोई मसीहा बनने को तैयार है. इस बार कोई भी दानदाता जरूरतमंदों की मदद करने के लिए सामने नहीं आ रहा है. दानदाताओं का अचानक गायब हो जाना सभी के लिए चौंकाने वाली बात है. हमने इस बारे में अजमेर शहर के लोगों से बात की.
अजमेर संभाग के 3 बड़े हॉस्पिटल भी व्यवस्थाएं करने में सक्षम साबित नहीं हो रहे हैं. ऐसे में दानदाताओं से उम्मीदें बढ़ जाती हैं. शहर के कुछ युवाओं ने कहा कि पिछले साल चुनावों की वजह से हर कोई दानदाता के रूप में अपनी पहचान जनता के सामने रखने को उतावला था. लेकिन इस साल कोई चुनाव नहीं है. इसीलिए न तो चिकित्सा क्षेत्र में और न ही खाद्य सामग्री के संबंध में कोई दानदाता सामने आ रहा है.
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शहर के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व महानगर सह मंत्री मोहित तूनवाल सैनी ने बताया कि पिछली बार हर कोई मीडिया का सहारा लेकर समाज सेवा करते हुए नाम कमाना चाह रहा था. कई लोगों ने समाज सेवा करते हुए अपनी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर शेयर किये. उन्होंने कहा कि चुनाव के वक्त नेता और विधायक वोट लेने घर-घर पहुंचे, छात्र संघ चुनाव की उम्मीद में छात्र नेता भी सक्रिय रहे. लेकिन छात्र चुनाव टलने और निकाय चुनाव होने के बाद कोई नजर नहीं आ रहा.
एक युवा अमित वैष्णव ने कहा कि पिछली लहर में करीब-करीब सभी विधायकों, पार्षदों और जनप्रतिनिधियों ने अपने घर पर हलवाई बैठा कर खाने के पैकेट और मास्क आदि का वितरण किया था. लेकिन दूसरी लहर में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आ रहा. पिछली लहर के बाद चुनाव होने की वजह से यह सभी सेवा कार्य जोर-शोर से किए जा रहे थे. हर कोई गरीबों का हितैषी बना हुआ था. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं है.
शहर के युवा मोहित का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर में लोगों की आर्थिक स्थिति पर भी फर्क पड़ा है. साथ ही कोरोना की दूसरी लहर ज्यादा खतरनाक होने के चलते लोग घरों से निकलने में कतरा रहे हैं. कारोबार ठप पड़ने से लोग खुद मोहताज हो गए हैं. उन्होंने कहा कि जब हमारे जनप्रतिनिधि हमारी जरूरत के समय में हमारा साथ देने के लिए हर एक व्यक्ति तक नहीं पहुंच सकते तो क्या यह जनप्रतिनिधि वोट मांगने के लिए हर एक व्यक्ति से संपर्क करने का हक रखते हैं. यदि प्रशासन लोगों की इस मुसीबत की घड़ी में सहायता नहीं कर सकता तो क्या वह अपने आप को जिम्मेदार कहलाने का हक रखता है.
सवाल कई हैं लेकिन हम सभी के सेवा भाव पर उंगली नहीं उठा सकते. क्योंकि हर काम स्वार्थ के वशीभूत होकर नहीं किया जाता. फिलहाल हम यह उम्मीद करते हैं कि इस कठिन समय में हम सभी शहरवासी एक दूसरे की हिम्मत और संबल बनकर एक दूसरे का साथ देंगे.