अजमेर. लॉकडाउन में आपने कहीं भी बैंड की आवाज नहीं सुनी होगी. इस खामोशी के साथ बैंड वालों की खुशियां भी गुम हो गई हैं. लॉकडाउन के पहले तक दूसरों की खुशियों में मधुर स्वर लहरियों से उल्लास और उमंग भरने वाले बैंड वालों की जिंदगी निराशा में बीत रही है. ईटीवी भारत ने लॉकडाउन में बैंड वालों के जीवन पर पड़ने वाले असर को जाना तो पता चला कि संकट ने बहुत कुछ बदल दिया है.
कामगारों के हाथों से काम छीन गया और अब जब छूट मिली तो कई कामगार ऐसे हैं, जिनके वर्तमान रोजगार पर ही नहीं भविष्य पर भी कोरोना का ग्रहण लग गया है. हालात यह है कि पीढ़ी दर पीढ़ी बैंड वादन के व्यवसाय में जुटे इन कामगारों के सामने रोटी के लाले पड़ रहे हैं. ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन में शादियां नहीं हो रही हैं. मगर अब इन शादियों में बैंड की मधुर स्वर लहरियां सुनाई नहीं देती. सरकार ने शादी में 50 लोगों को जुटने की इजाजत दी है. मगर इनमें बैंड वालों का जिक्र तक नहीं है. ऐसे में पूरे लॉकडाउन हाथ पर हाथ रखे निराश बैठे बैंड वालों को सरकार से मिली छूट का भी कोई फायदा नहीं मिल रहा.
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शादियों में बैंड नहीं बजेंगे तो इनके परिवारजन का पेट कैसे भरेगा. ऐसी स्थित में बैंड वाले क्या करें? पीढ़ी दर पीढ़ी बैंड वादन का काम करते आए इन कामगारों को दूसरा अन्य काम भी नहीं आता तो क्या यह कामगार बैंड वादन कला को छोड़ दे? वर्तमान ही नहीं भविष्य की चिंता को लेकर भी बैंड वालों के जीवन में कोरोना गौण निराशा लेकर आया है.
अजमेर की बात करें तो यहां के ब्रास बैंड की लोकप्रियता देश भर में मशहूर है. सालों से बैंड वादन शादी और अन्य बड़े आयोजनों में बैंड वादन की परंपरा रही है. बावजूद इसे कला की श्रेणी में नहीं रखा गया. बैंड मालिक भागचंद बताते हैं कि लॉकडाउन में बैंड मालिकों और कामगारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. हालात यह है कि 2 जून की रोटी के भी लाले पड़ रहे हैं.
बता दें कि जिले में 290 छोटे बड़े बैंड हैं, इनमें 1 हजार 300 से अधिक कामगार काम करते हैं. सभी के जीवन में निराशा के बादल छाए हुए है. बैंड वालों ने बताया कि लॉकडाउन से पहले शादियों के सीजन के लिए उन्होंने लोगों से एडवांस ले रखा था. लॉकडाउन में हो रही शादियों में बैंड पर पाबंदी लगी रही. लोग अब अपना एडवांस मांग रहे हैं. हालात यह है कि पेट भरने के लाले पड़े हुए हैं, ऐसे में लोगों का एडवांस कैसे लौटाएं. अजमेर ब्रास बैंड एसोसिएशन के अध्यक्ष निर्मल नैन ने बताया कि बैंड वालों की हालत बहुत ही खराब हो गई है. बैंड वाले सरकार से आर्थिक मदद की उम्मीद लगाए बैठे हैं. वहीं शादियों और अन्य धार्मिक सामाजिक आयोजनों में 11 सदस्य बैंड की स्वीकृति देने की मांग एसोसिएशन के माध्यम से की गई है.
सरकार पर टिकी उम्मीद के साथ बैंड वालों ने अपने वादन यंत्र संभालना शुरू तो कर दिया है, लेकिन उन्हें नहीं मालूम की कब उनके रोजगार से सरकारी पाबंदी हटाएगी. कोरोना ने बैंड वालों की जिंदगी में तूफान ला दिया है, यह तूफान कब थमेगा और कब फिर से बैंड की मधुर स्वर लहरी धुनें सुनने को मिलेंगी. फिलहाल इसको लेकर कोई दिशा-निर्देश सरकार की ओर से नहीं है. बैंड वाले मांग कर रहे है कि उन्हें भी अपना रोजगार संचालित करने की अनुमति दी जाए.
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शादियों का सीजन लगभग निकल चुका है, बीते लॉकडाउन में अग्रसेन जयंती, महावीर जयंती, हनुमान जयंती, गणगौर चेटीचंड रामनवमी, बादशाह की सवारी और राजस्थान दिवस सहित अबूझ सावे निकल चुके हैं. सालों से बैंड वादन की परंपरा जन्म मरण और परण में रही है.