अजमेर. हमारे देश में बाल श्रम और बाल भिक्षा (Child Labour in India) एक ऐसी समस्या है, जिससे निपटना बेहद मुश्किल है. ऐसी समस्या से तभी निपटा जा सकता है, जब समाज में से सुनील जोस जैसे लोग (Sunil Jose Became Angel of Poor Children) आगे आएंगे. आखिर 13 वर्ष पहले ऐसा क्या हुआ, जिसने एक शिक्षक के जीवन को बदल कर रख दिया और फिर भारत के 'भविष्य' को संवारने का सिलसिला शुरू हुआ.
समाज में ऐसा अति गरीब तबका भी है, जिसके लिए पढ़ाई-लिखाई तो दूर की बात दो जून की रोटी पाना भी मुश्किल होता है. ऐसे कई लोग नशा और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं, जिससे उनका जीवन ही नहीं उनके बच्चों का जीवन भी बर्बाद हो जाता है. अजमेर में गणित विषय के टीचर सुनील जोस ने इंसानियत की ऐसी ईबारत लिखी है, जिससे सैकडों अति गरीब बच्चों के जीवन को सकारात्मक दिशा मिल रही है.
सुनील जोस (Sunil Jose Teacher of Humanity) अपने घर पर गरीब बच्चों को न केवल बढ़ाते हैं, बल्कि उन्हें रोज खाना भी खिलाते हैं. इतना ही नहीं, किताबें, नोटबुक, स्टेशनरी के अलावा बच्चों को कपड़े, जूते भी देते हैं. सबसे खास बात यह है कि बच्चों को सुबह सरकारी स्कूल में छोड़ने, स्कूल से अपने घर लाने और देर शाम बच्चों को वापस उनके घर छोड़ने के लिए वैन की व्यवस्था भी कर रखी है. सुनील जोस बताते हैं कि उनके पास ज्यादातर वो बच्चें हैं जो काफी गरीब परिवार से आते हैं.
वो दृश्य जिसने आत्मा को झकझोर दिया...
सुनील जोस आगे बताते हैं कि 13 वर्ष पहले एक घटना ने उनके जीवन को बदल कर रख दिया. उन्होंने बताया कि वह (Sunil Jose Ajmer) अपनी पत्नी के साथ 5 स्टार होटल में खाना खाने गए थे. खाना खाकर होटल से बाहर निकले तब होटल के पीछे की ओर से कुछ बच्चों की आवाजें आ रही थी. यह वो जगह थी जहां होटल का वेस्ट रखा जाता था. वहां जो उन्होंने दृश्य देखा उसने उनकी आत्मा को झकझोर कर रख दिया.
आवारा पशुओं के बीच कुछ बच्चे वेस्ट में से खाना तलाश रहे थे. बच्चों को पास बुलाकर सुनील ने उन्हें अपने साथ गाड़ी में बैठाया और बच्चों के घर पहुच गए. झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के परिवार की काफी दयनीय हालत थी. मां-बाप को समझाइश कर बच्चों को पढ़ाने के लिए राजी किया. बच्चों को समीप ही सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया, जहां पढ़ाई के साथ मिड-डे मील बच्चों को मिलने लगा. स्कूल के बाद बच्चों को सुनील जोस अपने (Ajmer Teacher Adopts Child Beggars) घर लाने लगे, जहां बच्चों को पहले खाना खिलाया और उन्हें शिक्षा देने लगे.
अपनी सैलेरी से उठाते हैं बच्चों का खर्च...
शिक्षक सुनील जोस बताते हैं कि वह अपनी पूरी सैलरी और ट्यूशन फीस के पैसे अति गरीब बच्चों को शिक्षित और उनकी बेहतरी के लिए खर्च कर देते हैं. उनकी पत्नी सरकारी शिक्षक हैं, जिनकी सैलरी से उनका घर-परिवार चलता है. उन्होंने बताया कि उनके प्रयासों से तीन बच्चे आईआईटी, इंजीनियरिंग और नीट की शिक्षा ले रहे हैं. उन्होंने बताया कि वर्तमान में प्राइमरी स्तर के 55 बच्चे उनके पास आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनका खर्च उठा पाना काफी मुश्किल हो रहा है. कुछ लोग कभी कबार बर्थ-डे पार्टी या कोई एनिवर्सरी पर बच्चों के लिए खाना दे जाते हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है.
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बच्चों के लिए शिक्षा से संबंधित सामग्री, खाना और वैन में इंधन रोज चाहिए. सुनील जोस लोगों से अपील करते हैं कि शादी व अन्य समारोह में बचने वाले खाने को फेंकें नहीं, बल्कि इन मासूम बच्चों के लिए दे दें. वह चाहे तो उन्हें कॉल भी कर सकते हैं. वैन के जरिए भोजन बताए हुए स्थान से ले लिया जाएगा. सुनील ने बताया कि खर्च बढ़ रहा है, लेकिन कोई सरकारी मदद या भामाशाह की ओर से सहयोग नहीं मिल रहा है.
सफलता की उड़ान भरने का आगाज...
हर व्यक्ति के जीवन में बेहतरीन के लिए शिक्षा महत्वपूर्ण होती है. शिक्षक सुनील जोस अपने प्रयासों से भैरूवाडा, कायड़ क्षेत्र में रहने वाले अति गरीब बच्चों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैल रहा है. ऐसे बच्चों के जीवन से निराशा भी खत्म हो रही है और वो अपने जीवन में सफलता की उड़ान भरने का आगाज कर चुके हैं. स्कूल और ट्यूशन में बच्चों की सुबह और शाम होती है. देर शाम बच्चे खुशी से घर घर लौटते हैं और अगली सुबह उनके लिए नई आशा लेकर आती है. इन बच्चों के चेहरे पर आई खुशी से सुनील जोस को आत्मिक संतोष मिलता है. बच्चों को शिक्षा देने के लिए दो कॉलेज छात्राएं पार्ट टाइम ट्यूशन करती हैं.
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शिक्षक सुनील जोस के 'पुनीत हवन' में उनकी पत्नी का सहयोग है, तभी सुनील अपने कार्य को भली भांति अंजाम दे पा रहे हैं. सुनील चाहते हैं कि कुछ भामाशाह उनके 'हवन में आहुति' देकर ज्ञान के प्रकाश को और ज्यादा प्रज्वलित करने में उनका सहयोग करें.