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होली के खुशियों में घुलेगा खट्टे-मीठे घेयर का स्वाद, जलेबी सा दिखने वाला यह व्यंजन सिंधी समाज की पहचान...विदेशों तक हैं चर्चे - Rajasthan news

अजमेर में बिकने वाले घेयर (Ajmer Ghair sweet) की मिठास होली के पर्व की खुशियों को और बढ़ा देते हैं. सिंधी समाज के लोगों की ओर से बनाया जाने वाला विशेष घेयर व्यंजन उनकी संस्कृति की पहचान भी है. होली में इसकी खासी डिमांड रहती है. देखने में यह जलेबी के बड़े रूप जैसा होता है लेकिन इसका खट्टा-मीठा स्वाद आपको दीवाना बना देगा. सिंधी समाज के इस व्यंजन की चर्चा विदेशों तक में है.

Ajmer Ghair sweet
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Published : Mar 13, 2022, 7:51 PM IST

अजमेर. धार्मिक और पर्यटन नगरी अजमेर में सभी धर्म के लोग रहते हैं. भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पाकिस्तान से सिंधी समाज के लोग अजमेर आकर बस गए. धीरे-धीरे सिंधी समाज और उनकी संस्कृति यहां रच बस गई है और सिंधी भाषा, सिंधी व्यंजन या यू कहें कि सिंधि कल्चर अजमेर की संस्कृति का हिस्सा बन गई. हर त्योहार पर सिंधी समाज भी उसी उल्लास के साथ शामिल होता है.

शहर में होली के त्योहार को लेकर खासी तैयारियां चल रही हैं. इन तैयारियों के बीच घेयर (Ajmer Ghair sweet) भी बनाए जा रहे हैं. होली पर घेयर की विशेष डिमांड रहती है. घेयर ऐसी मिठाई है जो केवल होली के पर्व पर ही बनाई जाती है. घेयर से जुड़ा एक खट्टा-मीठा इतिहास भी है. होली से पहले बनाए जाने वाला घेयर सिंधी समाज की पारंपराओं से जुड़ा हुआ है. विविधता में एकता, जी हां यही तो हमारे देश को अन्य देशों से अलग करता है. राजस्थान का दिल कहा जाने वाला अजमेर भी मिनी इंडिया से कम नहीं है.

होली पर घेयर की डिमांड

पढ़ें. Special : घेवर के बिना अधूरे हैं तीज-त्योहार, इसकी खुशबू से महक उठे बाजार

यहां हर प्रान्त की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. यूं तो विश्व पटल पर अजमेर धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में अलग पहचान रखता है लेकिन इनके अलावा भी अजमेर की कई खूबियां हैं. शहर में विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद अपना सब कुछ छोड़ पाकिस्तान से अजमेर आकर बसे सिंधी समाज के लोग भी यहां काफी संख्या में हैं. समय के साथ धीरे-धीरे सिंधी समाज ने अजमेर के ज्यादातर व्यापार पर अपनी पकड़ बना ली है. हाल ये है कि अजमेर के सिंधी समाज के लोग विदेशों तक अपने व्यापार का विस्तार कर चुके हैं.

Ajmer Ghair sweet
लोगों को खूब भा रहा घेयर

सिंधी समाज का स्वादिष्ट व्यंजन है घेयर
विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए सिंधी समाज के लोग अपनी संस्कृति भी लेकर आए और उसे जीवित रखा. सिंधी समाज की भाषा, भोजन, रहन-सहन, परंपराएं, साहित्य, संस्कृति आज भी अजमेर में समृद्ध है. सिंधी समाज की परंपराओं में से एक होली से पहले बनने वाली खास तरह की मिठाई भी है जिसे घेयर कहते हैं. यह दिखने में जलेबी की तरह दिखती है लेकिन आकार में बड़ी होती है. मगर इस पारंपरिक घेयर का स्वाद जलेबी से काफी अलग होता है. जलेबी मीठी होती है जबकि घेयर खट्टा-मीठा होता है. पहले सिंधी घेयर केवल उन चुनिंदा हलवाइयों के यहां बनाए जाते थे जो सिंधी बाहुल्य क्षेत्र थे, लेकिन बीते दो दशकों से घेयर शहर की अन्य मिठाई की दुकान पर भी बिकने लगे हैं.

पढ़ें.DIWALI 2021: कितने में बिक रही है सबसे महंगी मिठाई ? इन 10 मिठाइयों के दाम आपके होश उड़ा देंगे

ऐसे तैयार होता है घेयर
घेयर बनाने का तरीका बिल्कुल जलेबी की तरह ही है, लेकिन इसकी रेसिपी कुछ अलग है. घेयर बनाने के लिए मैदा का पेस्ट में खमीर मिलाया जाता है जिससे इसमें खटास आती है. घी, तेल में जलेबी की तरह ही इससे तलकर शक्कर की चाशनी में डुबोया जाता है. कुछ जगह जलेबी को घेयर की साइज में बनाया जाता है, यानी वह बड़ी साइज की जलेबी होती है. कैसरगंज के गोल चक्कर पर स्थित हलवाई जितेंद्र जैन बताते हैं कि यूं तो घेयर काफी पुराना मिष्ठान है और इसे सिंधी हलवाई ही बनाते थे, लेकिन कुछ दशक से सभी हलवाई बनाने लगे हैं. हलवाई नरेंद्र बताते हैं कि घेयर होली से पहले ही बनता है और इसकी डिमांड भी खूब रहती है.

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सिंधी समाज का पुश्तैनी हुनर

होली पर खास डिमांड
होली नजदीकी है लिहाजा घेयर की डिमांड बढ़ने लगी है. सिंधी समाज के विभिन्न संगठनों से जुड़े पदाधिकारी रमेश लालवानी बताते हैं कि घेयर मिष्ठान का होली पर विशेष महत्व है. समाज के लोग अपनी बहन, बेटियों को पर्व पर घेयर भिजवाते हैं. वहीं होलिका दहन के अवसर पर मीठी रोटी के साथ घेयर का भोग लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि पाकिस्तान से अजमेर आकर बसे सिंधी समाज के लोगों को अपनी संस्कृति से बहुत प्यार है. यही वजह है कि खास मौकों को पारंपरिक व्यंजनों के साथ ही सेलिब्रेट किया जाता है.

पढ़ें. Special: दूध फटा और बन गया कलाकंद, 1947 में बाबा ठाकुर दास ने की थी शुरुआत

मुलायम और खट्टे मीठे-घेयर
लालवानी बताते हैं कि जलेबी कुछ सख्त होती है जिसे बुजुर्ग लोग नहीं खा पाते लेकिन घेयर मुलायम और खट्टा-मीठा होता है जिसे हर उम्र के लोग खा सकते हैं. कवण्ड्सपूरा में हलवाई अर्जुन वतवानी ने बताया कि पाकिस्तान के हैदराबाद क्षेत्र में फुलेली कस्बे में उनके पूर्वजों की मिठाई की दुकान थी. सिंध क्षेत्र में घेयर काफी प्रचलित था. विभाजन के बाद उनके दादा मोहनदास वतवानी फुलेली में अपना घर, दुकान, जमीन छोड़कर परिवार के साथ अजमेर आकर बस गए. यहां आकर उन्होंने हलवाई का काम शुरू किया और सिंधी व्यंजन बनाने लगे. तब से लेकर आज तक उनकी दुकान पर पारंपरिक सिंधी व्यंजन मिल रहे हैं.

पढ़ें. Ajmer Ke Zaike Ka Safar: अकबर की Demand और शहर ने चखा एक नया स्वाद!

शिवरात्रि से ही बिकने लगता है बाजारों में
इनमें घेयर भी खास है जो शिवरात्रि के बाद से ही बनना और बिकना शुरू हो जाता है और होली पर इसकी मांग बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि देश के कई कोनों में अजमेर में रहने वाले सिंधी समाज के लोगों के रिश्तेदार रहते हैं जिन्हें वे होली पर मिष्ठान के रूप में घेयर भेजते हैं. इतना ही नहीं, कई लोग विदेशों में भी रहते हैं. मसलन दुबई, स्पेन, मस्कट, अफ्रीका सहित कई देशों में भी लोग अपने साथ घेयर ले जाते हैं. वतवानी बताते हैं कि घेयर 15 दिन तक खराब नहीं होता.

घेयर को देखकर कोई भी धोखा खा सकता है. पहली बार देखने पर किसी को भी घेयर जलेबी का बड़ा रूप ही लगेगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल नही है क्योंकि दोनों के स्वाद में काफी अंतर होता है. अजमेर में 200 से 450 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से घेयर मिलते हैं. घेयर का पारंपरिक स्वाद यदि आपको चखना है तो फिर आपको हिंदी बाहुल्य क्षेत्र में ही जाना होगा जहां घेयर को उसी तरीके से बनाया जाता है जो कभी सिंध में बनाया जाता था. घेयर अब सिंधी समाज तकही सीमित नहीं रह गया है बल्कि अब अन्य समाज के लोग भी होली पर घेयर परोसकर मेहमाननवाजी करते हैं.

अजमेर. धार्मिक और पर्यटन नगरी अजमेर में सभी धर्म के लोग रहते हैं. भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद बड़ी संख्या में पाकिस्तान से सिंधी समाज के लोग अजमेर आकर बस गए. धीरे-धीरे सिंधी समाज और उनकी संस्कृति यहां रच बस गई है और सिंधी भाषा, सिंधी व्यंजन या यू कहें कि सिंधि कल्चर अजमेर की संस्कृति का हिस्सा बन गई. हर त्योहार पर सिंधी समाज भी उसी उल्लास के साथ शामिल होता है.

शहर में होली के त्योहार को लेकर खासी तैयारियां चल रही हैं. इन तैयारियों के बीच घेयर (Ajmer Ghair sweet) भी बनाए जा रहे हैं. होली पर घेयर की विशेष डिमांड रहती है. घेयर ऐसी मिठाई है जो केवल होली के पर्व पर ही बनाई जाती है. घेयर से जुड़ा एक खट्टा-मीठा इतिहास भी है. होली से पहले बनाए जाने वाला घेयर सिंधी समाज की पारंपराओं से जुड़ा हुआ है. विविधता में एकता, जी हां यही तो हमारे देश को अन्य देशों से अलग करता है. राजस्थान का दिल कहा जाने वाला अजमेर भी मिनी इंडिया से कम नहीं है.

होली पर घेयर की डिमांड

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यहां हर प्रान्त की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. यूं तो विश्व पटल पर अजमेर धार्मिक पर्यटन नगरी के रूप में अलग पहचान रखता है लेकिन इनके अलावा भी अजमेर की कई खूबियां हैं. शहर में विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते हैं. भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद अपना सब कुछ छोड़ पाकिस्तान से अजमेर आकर बसे सिंधी समाज के लोग भी यहां काफी संख्या में हैं. समय के साथ धीरे-धीरे सिंधी समाज ने अजमेर के ज्यादातर व्यापार पर अपनी पकड़ बना ली है. हाल ये है कि अजमेर के सिंधी समाज के लोग विदेशों तक अपने व्यापार का विस्तार कर चुके हैं.

Ajmer Ghair sweet
लोगों को खूब भा रहा घेयर

सिंधी समाज का स्वादिष्ट व्यंजन है घेयर
विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए सिंधी समाज के लोग अपनी संस्कृति भी लेकर आए और उसे जीवित रखा. सिंधी समाज की भाषा, भोजन, रहन-सहन, परंपराएं, साहित्य, संस्कृति आज भी अजमेर में समृद्ध है. सिंधी समाज की परंपराओं में से एक होली से पहले बनने वाली खास तरह की मिठाई भी है जिसे घेयर कहते हैं. यह दिखने में जलेबी की तरह दिखती है लेकिन आकार में बड़ी होती है. मगर इस पारंपरिक घेयर का स्वाद जलेबी से काफी अलग होता है. जलेबी मीठी होती है जबकि घेयर खट्टा-मीठा होता है. पहले सिंधी घेयर केवल उन चुनिंदा हलवाइयों के यहां बनाए जाते थे जो सिंधी बाहुल्य क्षेत्र थे, लेकिन बीते दो दशकों से घेयर शहर की अन्य मिठाई की दुकान पर भी बिकने लगे हैं.

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ऐसे तैयार होता है घेयर
घेयर बनाने का तरीका बिल्कुल जलेबी की तरह ही है, लेकिन इसकी रेसिपी कुछ अलग है. घेयर बनाने के लिए मैदा का पेस्ट में खमीर मिलाया जाता है जिससे इसमें खटास आती है. घी, तेल में जलेबी की तरह ही इससे तलकर शक्कर की चाशनी में डुबोया जाता है. कुछ जगह जलेबी को घेयर की साइज में बनाया जाता है, यानी वह बड़ी साइज की जलेबी होती है. कैसरगंज के गोल चक्कर पर स्थित हलवाई जितेंद्र जैन बताते हैं कि यूं तो घेयर काफी पुराना मिष्ठान है और इसे सिंधी हलवाई ही बनाते थे, लेकिन कुछ दशक से सभी हलवाई बनाने लगे हैं. हलवाई नरेंद्र बताते हैं कि घेयर होली से पहले ही बनता है और इसकी डिमांड भी खूब रहती है.

Ajmer Ghair sweet
सिंधी समाज का पुश्तैनी हुनर

होली पर खास डिमांड
होली नजदीकी है लिहाजा घेयर की डिमांड बढ़ने लगी है. सिंधी समाज के विभिन्न संगठनों से जुड़े पदाधिकारी रमेश लालवानी बताते हैं कि घेयर मिष्ठान का होली पर विशेष महत्व है. समाज के लोग अपनी बहन, बेटियों को पर्व पर घेयर भिजवाते हैं. वहीं होलिका दहन के अवसर पर मीठी रोटी के साथ घेयर का भोग लगाया जाता है. उन्होंने बताया कि पाकिस्तान से अजमेर आकर बसे सिंधी समाज के लोगों को अपनी संस्कृति से बहुत प्यार है. यही वजह है कि खास मौकों को पारंपरिक व्यंजनों के साथ ही सेलिब्रेट किया जाता है.

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मुलायम और खट्टे मीठे-घेयर
लालवानी बताते हैं कि जलेबी कुछ सख्त होती है जिसे बुजुर्ग लोग नहीं खा पाते लेकिन घेयर मुलायम और खट्टा-मीठा होता है जिसे हर उम्र के लोग खा सकते हैं. कवण्ड्सपूरा में हलवाई अर्जुन वतवानी ने बताया कि पाकिस्तान के हैदराबाद क्षेत्र में फुलेली कस्बे में उनके पूर्वजों की मिठाई की दुकान थी. सिंध क्षेत्र में घेयर काफी प्रचलित था. विभाजन के बाद उनके दादा मोहनदास वतवानी फुलेली में अपना घर, दुकान, जमीन छोड़कर परिवार के साथ अजमेर आकर बस गए. यहां आकर उन्होंने हलवाई का काम शुरू किया और सिंधी व्यंजन बनाने लगे. तब से लेकर आज तक उनकी दुकान पर पारंपरिक सिंधी व्यंजन मिल रहे हैं.

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शिवरात्रि से ही बिकने लगता है बाजारों में
इनमें घेयर भी खास है जो शिवरात्रि के बाद से ही बनना और बिकना शुरू हो जाता है और होली पर इसकी मांग बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि देश के कई कोनों में अजमेर में रहने वाले सिंधी समाज के लोगों के रिश्तेदार रहते हैं जिन्हें वे होली पर मिष्ठान के रूप में घेयर भेजते हैं. इतना ही नहीं, कई लोग विदेशों में भी रहते हैं. मसलन दुबई, स्पेन, मस्कट, अफ्रीका सहित कई देशों में भी लोग अपने साथ घेयर ले जाते हैं. वतवानी बताते हैं कि घेयर 15 दिन तक खराब नहीं होता.

घेयर को देखकर कोई भी धोखा खा सकता है. पहली बार देखने पर किसी को भी घेयर जलेबी का बड़ा रूप ही लगेगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल नही है क्योंकि दोनों के स्वाद में काफी अंतर होता है. अजमेर में 200 से 450 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से घेयर मिलते हैं. घेयर का पारंपरिक स्वाद यदि आपको चखना है तो फिर आपको हिंदी बाहुल्य क्षेत्र में ही जाना होगा जहां घेयर को उसी तरीके से बनाया जाता है जो कभी सिंध में बनाया जाता था. घेयर अब सिंधी समाज तकही सीमित नहीं रह गया है बल्कि अब अन्य समाज के लोग भी होली पर घेयर परोसकर मेहमाननवाजी करते हैं.

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