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Dussehra 2023 : राजस्थान के जोधपुर में रावण के वंशज मनाते हैं शोक, नहीं देखते 'दहन' - Jodhpur Latest News

Burning of Ravana on Dussehra, राजस्थान के जोधपुर में एक तबका ऐसा हो जो रावण दहन नहीं, बल्कि रावण की पूचा-अर्चना करता है. दशहरे पर रावण दहन के दौरान शोक मनाता है. क्या है पूरी कहानी ? यहां जानिए...

Dussehra in Jodhpur
रावण के वंशज मनाएंगे शोक
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 24, 2023, 2:00 PM IST

Updated : Oct 24, 2023, 6:22 PM IST

जोधपुर में रावण के वंशज मनाते हैं शोक

जोधपुर. पूरे भारत में मंगलवार को दशहरे के अवसर पर लंकाधिपति रावण के पूतलों का दहन होगा, लेकिन जब जोधपुर में दहन होगा तो रावण के चबूतरे से करीब पांच किमी दूर चांदपोल के पास कुछ लोग शोक मना रहे होंगे. ऐसा इसलिए, क्योंकि वे रावण के वंशज के रूप में जाने जाते हैं. जोधपुर के श्रीमाली गोधा ब्राह्मण अपने आपको रावण का वंशज मानते हैं. इसलिए वे दशहरे के दिन शोक रखते हैं. यह रावण को महान ज्ञानी मानते हैं. रावण की स्मृति में मंदिर भी बनाया हुआ है. दशहरे के दिन रावण के मंदिर में पूजा-अर्चना भी होती है.

जोधपुर के किला रोड पर स्थित मंदिर में रावण और मंदोदरी की मूर्ति लगी है. इस मंदिर का निर्माण भी गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मणों द्वारा करवाया गया है. जब शहर में रावण के पुत्रों का दहन होगा तो उसके बाद यहां पर सभी लोग स्नान करेंगे. अपनी जनेऊ भी बदलते हैं. उसके बाद पूजा-अर्चना होती है. यहां आम दिनों में भी रोज पूजा होती है.

पढे़ं : Vijayadashami 2023 : 250 वर्ष पुरानी परंपरा आज भी कायम, अजमेर में शाही ठाठ-बाट से निकलती है श्री रघुनाथ जी की सवारी

नहीं देखते रावण दहन : पंडित कमलेश कुमार बताते हैं कि हम रावण के वंशज गोधा गोत्र के लोग कभी उनका दहन नहीं देखते हैं, क्योंकि वो हमारे पूर्वज हैं. अश्वनी मास की दशमी को राम द्वारा रावण का वध किया गया था. इस दिन हम शोक रखते हैं. यही कारण है कि कोरोना के दो साल में रावण के पुतले नहीं जलाए गए थे, लेकिन गोधा गोत्र में लोगों ने शोक रखा था.

दहन के बाद बदली जाती है जनेऊ : पंडित कमलेश कुमार के अनुसार पुतला जलाया जाता है. दहन के बाद स्नान करना अनिवार्य होता है. पूर्व में जलाशय होते थे तो हम सभी वहां स्नान करते थे, लेकिन आजकल घरों के बाहर स्नान किया जाता है. जनेऊ बदला जाता है. उसके बाद मंदिर में रावण व शिव की पूजा की जाती है. इस दौरान देवी मंदोदरी की भी पूजा होती है. इसके बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है. उनके अनुसार गोधा गोत्र वाले रावण का दहन कभी नहीं देखते हैं. पंडित कमलेश कुमार के अनुसार रावण बहुत ज्ञानी था. उनकी बहुत अच्छाई थी, जिन्हें हम निभाते हैं. शोक की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है.

पढ़ें : ...तो इसलिए विजयदशमी पर जोधपुर में रावण के वंशज मनाते हैं शोक

मंडोर में विवाह की मान्यता : मान्यता है कि मायासुर ने ब्रह्मा के आशीर्वाद से अप्सरा हेमा के लिए मंडोर शहर का निर्माण किया था. दोनों ने संतान का नाम मंदोदरी रखा. पौराणिक कथाओं के अनुसार मंडोर का नाम मंदोदरी के नाम पर रखा गया है. मंदोदरी बहुत सुंदर थीं, लेकिन मंदोदरी के योग्य वर नहीं मिला तो अंत में रावण पर मायासुर की खोज समाप्त हुई. लंका के राजा, लंकाधिपति रावण जो स्वयं एक प्रतापी राजा होने के साथ-साथ एक गुणी विद्वान भी था. जिसके साथ मंदोदरी का विवाह हुआ. कहा जाता है कि उस समय जब विवाह हुआ था, तब लंका से बाराती बन आए गोधा गोत्र के कुछ लोग यहीं रह गए थे. इन्होंने रावण के मंदिर में मंदोदरी की मूर्ति रावण के सामने लगाई है.

जोधपुर में रावण के वंशज मनाते हैं शोक

जोधपुर. पूरे भारत में मंगलवार को दशहरे के अवसर पर लंकाधिपति रावण के पूतलों का दहन होगा, लेकिन जब जोधपुर में दहन होगा तो रावण के चबूतरे से करीब पांच किमी दूर चांदपोल के पास कुछ लोग शोक मना रहे होंगे. ऐसा इसलिए, क्योंकि वे रावण के वंशज के रूप में जाने जाते हैं. जोधपुर के श्रीमाली गोधा ब्राह्मण अपने आपको रावण का वंशज मानते हैं. इसलिए वे दशहरे के दिन शोक रखते हैं. यह रावण को महान ज्ञानी मानते हैं. रावण की स्मृति में मंदिर भी बनाया हुआ है. दशहरे के दिन रावण के मंदिर में पूजा-अर्चना भी होती है.

जोधपुर के किला रोड पर स्थित मंदिर में रावण और मंदोदरी की मूर्ति लगी है. इस मंदिर का निर्माण भी गोधा गोत्र के श्रीमाली ब्राह्मणों द्वारा करवाया गया है. जब शहर में रावण के पुत्रों का दहन होगा तो उसके बाद यहां पर सभी लोग स्नान करेंगे. अपनी जनेऊ भी बदलते हैं. उसके बाद पूजा-अर्चना होती है. यहां आम दिनों में भी रोज पूजा होती है.

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नहीं देखते रावण दहन : पंडित कमलेश कुमार बताते हैं कि हम रावण के वंशज गोधा गोत्र के लोग कभी उनका दहन नहीं देखते हैं, क्योंकि वो हमारे पूर्वज हैं. अश्वनी मास की दशमी को राम द्वारा रावण का वध किया गया था. इस दिन हम शोक रखते हैं. यही कारण है कि कोरोना के दो साल में रावण के पुतले नहीं जलाए गए थे, लेकिन गोधा गोत्र में लोगों ने शोक रखा था.

दहन के बाद बदली जाती है जनेऊ : पंडित कमलेश कुमार के अनुसार पुतला जलाया जाता है. दहन के बाद स्नान करना अनिवार्य होता है. पूर्व में जलाशय होते थे तो हम सभी वहां स्नान करते थे, लेकिन आजकल घरों के बाहर स्नान किया जाता है. जनेऊ बदला जाता है. उसके बाद मंदिर में रावण व शिव की पूजा की जाती है. इस दौरान देवी मंदोदरी की भी पूजा होती है. इसके बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है. उनके अनुसार गोधा गोत्र वाले रावण का दहन कभी नहीं देखते हैं. पंडित कमलेश कुमार के अनुसार रावण बहुत ज्ञानी था. उनकी बहुत अच्छाई थी, जिन्हें हम निभाते हैं. शोक की प्रथा लंबे समय से चली आ रही है.

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मंडोर में विवाह की मान्यता : मान्यता है कि मायासुर ने ब्रह्मा के आशीर्वाद से अप्सरा हेमा के लिए मंडोर शहर का निर्माण किया था. दोनों ने संतान का नाम मंदोदरी रखा. पौराणिक कथाओं के अनुसार मंडोर का नाम मंदोदरी के नाम पर रखा गया है. मंदोदरी बहुत सुंदर थीं, लेकिन मंदोदरी के योग्य वर नहीं मिला तो अंत में रावण पर मायासुर की खोज समाप्त हुई. लंका के राजा, लंकाधिपति रावण जो स्वयं एक प्रतापी राजा होने के साथ-साथ एक गुणी विद्वान भी था. जिसके साथ मंदोदरी का विवाह हुआ. कहा जाता है कि उस समय जब विवाह हुआ था, तब लंका से बाराती बन आए गोधा गोत्र के कुछ लोग यहीं रह गए थे. इन्होंने रावण के मंदिर में मंदोदरी की मूर्ति रावण के सामने लगाई है.

Last Updated : Oct 24, 2023, 6:22 PM IST
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