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न सिर्फ अपराध बल्कि अपराधी, उसकी मानसिक स्थिति को ध्यान में रखना अदालतों का कर्तव्य है : SC

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Published : Dec 12, 2021, 3:55 PM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि कोर्ट का यह भी कर्तव्य है कि वे इस बात को भी ध्यान में रखें कि अपराधी की मानसिक और सामाजिक स्थिति क्या है. सिर्फ उसकी अपराधिक स्थिति के बारे में नहीं सोचना चाहिए.

Supreme Court
उच्चतम न्यायालय (फाइल फोटो)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि अदालतों का कर्तव्य है कि वे न सिर्फ अपराध बल्कि अपराधी, उसकी मानसिक स्थिति और उसकी सामाजिक आर्थिक स्थितियों को भी ध्यान में रखें.

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव (Justices L Nageswara Rao) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह अदालतों का कर्तव्य है कि वे आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना पर विचार करें. पीठ ने कहा, 'स्थापित कानूनी स्थिति को देखते हुए, आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना को ध्यान में रखना हमारा कर्तव्य है.'

पीठ में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई (Justices B R Gavai) और न्यायमूर्ति बी. आर. नागरत्ना (Justices B V Nagarathna) भी शामिल थे. पीठ ने कहा, 'न केवल अपराध बल्कि अपराधी, उसकी मानसिक स्थिति और उसकी सामाजिक आर्थिक स्थितियों को भी ध्यान में रखना हमारा कर्तव्य है.'

ये भी पढ़ें - BSF के क्षेत्रीय अधिकार बढ़ाने के केंद्र के फैसले को SC में चुनौती

शीर्ष अदालत ने संपत्ति विवाद में अपने दो भाई-बहनों और अपने भतीजे की हत्या के दोषी एक व्यक्ति की मौत की सजा को 30 साल की अवधि के लिए आजीवन कारावास में परिवर्तित करते हुए यह टिप्पणी की. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य (मध्य प्रदेश) ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया है, जिससे कि यह पता चले कि दोषी के सुधार या पुनर्वास के संबंध में कोई संभावना नहीं है.

पीठ ने कहा, 'याचिकाकर्ता एक ग्रामीण और आर्थिक रूप से गरीब पृष्ठभूमि से आता है. उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. इसलिए याचिकाकर्ता को कठोर अपराधी नहीं कहा जा सकता है. याचिकाकर्ता का यह पहला अपराध है, जो निस्संदेह एक जघन्य अपराध है. जेल अधीक्षक द्वारा जारी प्रमाण पत्र से पता चलता है कि कैद के दौरान उसका आचरण संतोषजनक रहा है.'

शीर्ष अदालत ने कहा कि इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के सुधार और पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि अदालतों का कर्तव्य है कि वे न सिर्फ अपराध बल्कि अपराधी, उसकी मानसिक स्थिति और उसकी सामाजिक आर्थिक स्थितियों को भी ध्यान में रखें.

न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव (Justices L Nageswara Rao) की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह अदालतों का कर्तव्य है कि वे आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना पर विचार करें. पीठ ने कहा, 'स्थापित कानूनी स्थिति को देखते हुए, आरोपी के सुधार और पुनर्वास की संभावना को ध्यान में रखना हमारा कर्तव्य है.'

पीठ में न्यायमूर्ति बी. आर. गवई (Justices B R Gavai) और न्यायमूर्ति बी. आर. नागरत्ना (Justices B V Nagarathna) भी शामिल थे. पीठ ने कहा, 'न केवल अपराध बल्कि अपराधी, उसकी मानसिक स्थिति और उसकी सामाजिक आर्थिक स्थितियों को भी ध्यान में रखना हमारा कर्तव्य है.'

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शीर्ष अदालत ने संपत्ति विवाद में अपने दो भाई-बहनों और अपने भतीजे की हत्या के दोषी एक व्यक्ति की मौत की सजा को 30 साल की अवधि के लिए आजीवन कारावास में परिवर्तित करते हुए यह टिप्पणी की. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य (मध्य प्रदेश) ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया है, जिससे कि यह पता चले कि दोषी के सुधार या पुनर्वास के संबंध में कोई संभावना नहीं है.

पीठ ने कहा, 'याचिकाकर्ता एक ग्रामीण और आर्थिक रूप से गरीब पृष्ठभूमि से आता है. उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. इसलिए याचिकाकर्ता को कठोर अपराधी नहीं कहा जा सकता है. याचिकाकर्ता का यह पहला अपराध है, जो निस्संदेह एक जघन्य अपराध है. जेल अधीक्षक द्वारा जारी प्रमाण पत्र से पता चलता है कि कैद के दौरान उसका आचरण संतोषजनक रहा है.'

शीर्ष अदालत ने कहा कि इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता के सुधार और पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है.

(पीटीआई-भाषा)

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