जयपुर. राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत से बदलाव की राजनीति भाजपा और कांग्रेस के साथ जो शुरू हुई उसमें अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे दो ऐसे चेहरे हैं, जिन्होंने सत्ता चलाई है. कांग्रेस जीती है तो गहलोत को कमान मिली है और बीजेपी जीती है तो वसुंधरा को. जबकि इस बार राजनीतिक जानकार कुछ अलग मान रहे हैं, क्योंकि राजनीति ने इस बार थोड़ा बदलाव का रंग तो जरूर लिया है. उसमें गहलोत और पायलट वाली राजनीति हो या फिर मरुधरा में वसुंधरा की, नए नाम से बदलाव की चर्चा भी खूब है.
कांग्रेस में बदलाव का रंग : राजस्थान में अभी कांग्रेस के नेतृत्व में चली सरकार के मुखिया अशोक गहलोत रहे हैं. यह अलग बात है कि राज्य में मुख्यमंत्री बदलने की राजनीति 5 सालों तक विवादों में ही रही. अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की लड़ाई पूरे 5 सालों तक चलती रही. यह सिर्फ सरकार बनने से शुरू नहीं हुई, बल्कि यह लड़ाई 2018 के चुनाव परिणाम आने के बाद से ही शुरू हो गई थी. 2018 की सियासत में यह चर्चा भी तेजी से थी कि गद्दी चाहिए तो दिल्ली जाइए, विधायक को अपने पक्ष में लेना है तो दिल्ली जाइए, विधायक के लिए टिकट देना है तो दिल्ली जाइए, मंत्री बनवाना है तो दिल्ली जाइए, मुख्यमंत्री बनना है तो दिल्ली जाइए, मुख्यमंत्री की लड़ाई लड़ना है तो दिल्ली जाइए और यही वजह थी कि 2018 में बहुमत पाने के बाद भी कांग्रेस को सरकार बनाने में लंबी जद्दोजहद करनी पड़ी थी.
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2023 के चुनाव परिणाम को लेकर के जो चर्चा शुरू हुई है, उसमें राजनीतिक समीक्षकों का यह मानना है कि जिस तरीके से 2018 में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट रहा है. उसमें शीर्ष नेतृत्व भी इस हालत में नहीं है कि पहले कोई निर्णय ले सके. हालांकि, 2018 में सरकार बनाने के बाद अशोक गहलोत ने जरूर कहा था कि वह अगली बार मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, लेकिन गद्दी है, उससे अलग जा पाना बड़ा मुश्किल होता है.
वहीं, इस बार बदलाव वाली राजनीति पर वरिष्ठ पत्रकार दुर्गेश भटनागर ने बताया कि जो स्थिति अभी बनी हुई है, उसमें यह कह पान कि किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत आ रहा है. यह थोड़ा मुश्किल है, लेकिन अगर कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में आती है तो इसमें एक चीज जरूर देखना होगा. अगर 80 से 100 के बीच में सीट होती है तो अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन अगर कांग्रेस पूर्ण बहुमत पर आती है तो दिल्ली आलाकमान इसमें बड़ी हस्तक्षेप जरूर करेगा, क्योंकि 2018 वाली लड़ाई और 2018 से 2023 तक चली.
कांग्रेस की सरकार में जिस तरीके का अपनों में ही विभेद रहा है, वह कांग्रेस नहीं चाहेगी. दिल्ली इसे बिल्कुल तरजीह नहीं देगा, क्योंकि अगर बदलाव की इतनी बड़ी बात राजस्थान से आती है तो निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए बड़ी सौगात होगी. यह बदलाव 2024 की लड़ाई के लिए बीजेपी को बड़ी चुनौती होगी, जिसे कांग्रेस किसी भी स्थिति में दो नेताओं के लड़ाई की भेंट नहीं चढ़ने देगी. यह भी तय होगा कि गहलोत को बदलने से 2024 में क्या मिलेगा.
बीजेपी की बिसात: पिछले 33 सालों से राजस्थान में सत्ता बदलती रही है. भैरोंसिंह शेखावत बीजेपी के मुख्यमंत्री थे, उन्हें बदलकर अशोक गहलोत राजस्थान की गद्दी पर बैठे और बदलाव का यह सिलसिला लगातार चलता रहा. वरिष्ठ पत्रकार दुर्गेश भटनागर ने कहा कि बीजेपी को यह पूरा विश्वास है कि 2023 में बदलाव होगा. इसमें कहीं कोई शक नहीं है. बदलाव की यह कहानी जो पिछले 33 सालों से चली आ रही है और जनता उसी आधार पर जाती है तो निश्चित तौर पर बीजेपी को वह समर्थन जरूर मिल सकता है. राजस्थान में बदलाव वाली राजनीति से देखा जाय तो यह अभी सिर्फ कहा जा सकता है कि सरकार बीजेपी बनाएगी. ऐसी स्थिति में वसुंधरा राजे कहां होंगी, इस पर एक बड़ी चर्चा शुरू हो गई है.
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दुर्गेश भटनागर ने बताया कि बीजेपी ने राजस्थान में जिस तरीके का बदलाव किया है, उसमें वसुंधरा राजे को लेकर के कई तरह की राजनीतिक चर्चाएं हैं. हालांकि, राजनीति में अंतिम समय में क्या होता है यह नहीं कहा जा सकता. चर्चा इस बात की भी है कि अगर पूर्ण बहुमत नहीं आता है तो भाजपा भी मजबूर होगी और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री पद की दावेदार होंगी. अगर बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिलता है तो संभव है कि बीजेपी इस बार राजस्थान में बदलाव करेगी. बीजेपी पूरे चुनाव में वसुंधरा राजे को जिस तरीके से लेकर चली है, उसे एक बात तो साफ है कि राजस्थान में सिर्फ वसुंधरा राजे ही बीजेपी के मुख्यमंत्री के नाम की चर्चा वाली लिस्ट में नहीं होंगी.
पहलू थर्ड फ्रंट और निर्दलीयों का: राजस्थान में बनने वाली सरकार के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार दुर्गेश भटनागर ने कहा कि एक पहलू थर्ड फ्रंट और निर्दलीय उम्मीदवारों का भी है. हनुमान बेनीवाल की पार्टी क्या कमाल करती है यह भी देखने की बात होगी. साथ ही निर्दलीय और आम आदमी पार्टी भी इसके पहलू हो सकते हैं. बहुत बड़ी लड़ाई में न तो निर्दलीय है न थर्ड फ्रंट है और न तो आम आदमी पार्टी है, लेकिन उसके बाद आंकड़ों का जो खेल है उसमें थर्ड फ्रंट और निर्दलीयों की भूमिका भी अहम हो सकती है. अब ऐसे में उनकी जरूरत अगर पड़ती है तो यहां अशोक गहलोत और वसुंधरा की भूमिका अहम हो जाएगी. यह भी साफ है कि गहलोत की कांग्रेस में और वसुंधरा की भाजपा में अपनी एक मजबूत धुरी है.
बदलाव तय, सरकार बदले या सिलसिला: राज्य की जनता ने सरकार बनाने के लिए अपना जनमत दे दिया है. राज्य में बदलाव होगा यह तय है. अब इस बदलाव में सरकार बदली की या राजनीतिक बदलाव का सिलसिला. अब जो भी होगा यह तो 3 दिसंबर को पता चलेगा, लेकिन बदलाव होगा यह बिल्कुल तय है. सरकार बदलती है तो बीजेपी के समीकरण और सियासत का नया फार्मूला तय होगा और सिलसिला बदलता है तो अशोक गहलोत, कांग्रेस और उसकी राजनीति का गुणा-भाग. अब देखना है की 3 दिसंबर को बदलाव का कौन सा रंग राजस्थान की सरजमीं पर देखने को मिलता है.
रिवाज से बदलाव वाली राजनीति का सफरनामा : राजस्थान के लोकतंत्र के महापर्व में लोगों ने अपने वोटों से अगले 5 सालों के लिए राजस्थान की नीतियां, राजस्थान का विकास करने वाली सरकार के लिए मतदान कर दिया है. दावों और वादों के विश्वास पर विकास की नई सरकार राजस्थान में बने इसके लिए राजस्थान के लोगों ने सरकार बनाने वाले लोगों के किस्मत का फैसला ईवीएम में बंद कर दिया है. अब 3 दिसंबर को यह फैसला होगा कि राजस्थान के लोगों के मतदान वाले मिजाज में क्या रिवाज सामने आता है.
वैसे तो राजस्थान में सरकारों को बदलने का रिवाज 1990 के दशक से शुरू हुआ जो अभी तक चल रहा है. आजादी के बाद से 1990 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राजस्थान में राज करती रही. 1977 से 1980 का सिर्फ एक दौर ऐसा रहा जब जनता पार्टी की सरकार बनी और भैरोंसिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन उसके बाद 1980 से 1990 तक फिर राजस्थान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हाथ में ही रही है.
रिवाज से पहले वाला राजस्थान : राजस्थान की राजनीति में यह कहा जाता है कि राजस्थान में सरकारें बदलती रहती हैं, लेकिन यह दौर 1990 से शुरू हुआ. अगर उसके पहले की राजस्थान की राजनीति पर नजर डालें तो पहली बार 7 अप्रैल 1949 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार बनी जो 5 जनवरी 1951 तक चली. हीरालाल शास्त्री पहले मुख्यमंत्री थे. उसके बाद 6 जनवरी 1951 से 25 अप्रैल 1951 तक जो सरकार चली वह भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की थी की वेंकटचारी मुख्यमंत्री थे.
26 अप्रैल 1951 से 3 मार्च 1952 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार चली जय नारायण व्यास मुख्यमंत्री थे. 3 मार्च 1952 से 31 अक्टूबर 1952 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार रही टीकाराम पालीवाल मुख्यमंत्री रहे. 1 नवंबर 1952 से 12 नवंबर 1954 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार बनी और एक बार फिर से जय नारायण व्यास मुख्यमंत्री बने. 13 नवंबर 1954 से 11 अप्रैल 1957 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार रही और मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री रहे. 11 अप्रैल 1957 से 11 मार्च 1962 तक फिर मोहनलाल सुखाड़िया ही मुख्यमंत्री रहे. 12 मार्च 1962 से 13 मार्च 1967 तक की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार में मोहनलाल सुखाड़िया ही मुख्यमंत्री रहे.
13 मार्च 1967 से 26 अप्रैल 1967 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा. 26 अप्रैल 1967 से 9 जुलाई 1971 तक मोहनलाल सुखाड़िया चौथी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. 9 जुलाई 1971 से 11 अगस्त 1973 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार रही और बरकतुल्लाह खान मुख्यमंत्री थे. 11 अगस्त 1973 से 29 अप्रैल 1977 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार रही और हरदेव जोशी मुख्यमंत्री रहे. 29 अगस्त 1973 से 22 जून 1977 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा जो राजस्थान की राजनीति में सबसे लंबे समय तक का राष्ट्रपति शासन कहा जा सकता है.
22 जून 1977 को भैरोंसिंह शेखावत राज्य के मुख्यमंत्री बने और यह सरकार 16 फरवरी 1980 तक चली जो जनता पार्टी की सरकार थी. इसमें आपातकाल के बाद कई राज्यों में जो बदलाव हुए थे. राजस्थान में भी यह बदलाव हुआ. हालांकि 16 मार्च 1980 को राज्य में फिर राष्ट्रपति शासन लगा जो 6 जून 1980 तक चला. राष्ट्रपति शासन हटाने के बाद 6 जून 1980 को जगन्नाथ पहाड़िया ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 13 जुलाई 1981 तक मुख्यमंत्री रहे.
14 जुलाई 1981 को शिवचरण माथुर ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली 23 फरवरी 1985 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे. हीरालाल देवपुरा 23 फरवरी 1985 को मुख्यमंत्री बने 10 मार्च 1985 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे. 10 मार्च 1985 को हरदेव जोशी ने फिर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कमान संभाली और 20 जनवरी 1988 तक मुख्यमंत्री रहे. 20 जनवरी 1988 को शिवचरण माथुर ने फिर से एक बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्यमंत्री बने. 4 दिसंबर 1989 तक वह मुख्यमंत्री रहे 4 दिसंबर 1989 को फिर से वहां बदलाव हुआ हरदेव जोशी तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और 4 मार्च 1990 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे.
बदलाव और बदलने वाला दशक: 1990 का दशक राजस्थान में सरकार बदलने वाला साल माना जाता है. 4 मार्च 1990 को भाजपा की सरकार बनी और भैरोंसिंह शेखावत ने राज्य में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि, पहली बार भैरोंसिंह शेखावत जनता पार्टी के तहत मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन 1990 में भाजपा ने यहां सरकार बनाई थी. हालांकि, यह सरकार 5 साल नहीं पूरा कर पाई और 15 दिसंबर 1992 से 4 दिसंबर 1993 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा. 4 दिसंबर 1993 को फिर से भैरोंसिंह शेखावत ने तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री की शपथ ली और 29 दिसंबर 1998 तक भाजपा के मुख्यमंत्री रहे.
यहीं से राजस्थान में राजनीति के बदलाव का दौर शुरू हुआ और सरकारी बदलना शुरू हो गई. 1 दिसंबर 1998 को अशोक गहलोत पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और 8 दिसंबर 2003 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार रही. 8 दिसंबर 2003 से 11 दिसंबर 2008 के बीच भाजपा की सरकार राज्य में रही और वसुंधरा राजे सिंधिया राज्य की मुख्यमंत्री रहीं. उसके बाद 2008 के हुए विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत फिर से एक बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. 12 दिसंबर 2008 से 13 दिसंबर 2013 तक अशोक गहलोत राज्य के मुख्यमंत्री रहे. 2013 की विधानसभा चुनाव में फिर से वसुंधरा राजे को कमान मिली भाजपा की सरकार बनी. 13 दिसंबर 2013 से 16 दिसंबर 2018 तक वसुंधरा राजे राज्य के मुख्यमंत्री रही. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत राज्य में तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की कमान संभाले 17 दिसंबर 2018 से चल रही सरकार के निवर्तमान मुख्यमंत्री के तौर पर अशोक गहलोत कार्यभार देख रहे हैं.
1990 के बाद से राजस्थान में सरकार बदलने का रिवाज चल रहा है. कांग्रेस-भाजपा, भाजपा फिर कांग्रेस. 1990 के बाद से हुए विधानसभा चुनाव का पैटर्न यही रहा है, लेकिन इस बार यह बात कही जा रही है कि शायद 1990 से चली आ रही परंपरा को तोड़कर राजस्थान एक बार फिर से उसे परंपरा को अख्तियार करेगा जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजस्थान में दबदबे की राजनीति वाला रहा है. अब देखना होगा कि राजस्थान की जनता ने राजस्थान को बदलने के लिए बदलाव के किस मिजाज को मतदान किया है.