जोधपुर. आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने फल कितने पके हुए हैं, इसका पता लगाने के लिए एक सेंसर बेस्ड तकनीक विकसित की है. यह सस्ता और बहुत सेंसिटिव टेक्टाइल प्रेसर सेंसर का सफलतापूर्वक विकास और प्रदर्शन किया है. इस टेक्नोलाजी से महंगे फलों की सोर्टिंग (चुनने) का प्रचलित तरीका बदल सकता है. इस तकनीक का रिसर्च पेपर आईईईई सेंसर जर्नल में प्रकाशित हुआ है. इस रिसर्च के बारे आईआईटी के इलेक्ट्रिक विभाग के प्रोफेसर डॉ. अजय अग्रवाल ने बताया कि देश में कई जगहों पर महंगे फलों का उत्पादन होता है.
यह तकनीक उन उत्पादकों के लिए फायदेमंद होगी. फल पकने का सटीक आंकलन पता लगने से एक्सपोर्ट करने में आसानी होगी. फ्रूट्स की सेल्फ लाइफ भी बढ़ेगी. खराबा कम होगा. किसान समय रहते पहले पकने वाले फलों को बाजार में ले जाएगा, जिससे उसको नुकसान नहीं होगा. यह सेंसर चूंकि फलों का चुनाव (सार्टिंग) उनकी परिपक्वता के अनुसार करता है, इसलिए इसे रोबोटिक आर्म से जोड़ कर भारी मात्रा में फलों को उनकी परिपक्वता और गुणवत्ता के आधार पर चुनना आसान होगा.
बाजार में उपलब्ध अन्य तकनीक से फायदेमंद : आईआईटी जोधपुर, आईआईटी दिल्ली तथा सीएसआईआर-सीईईआरआई, पिलानी के शोधकर्ताओं के सहयोग तैयार यह सेंसर नैनोनीडल टेक्सचर वाला पीडीएमएस (पॉलीडिमिथाइलसिलोक्सेन) का बतौर डाइइलेक्ट्रिक लेयर उपयोग करता है. यह लिथोग्राफी-मुक्त है. यह लचीला है और इसका बड़े स्तर पर निर्माण करना भी आसान है. आईआईटी में एलास्टिक माड्युलस और कैपेसिटेंस को माप कर अलग-अलग किस्म के टमाटरों की परिपक्वता का सफलतापूर्वक आकलन किया.
बाजार में ऐसी बहुत तकनीक है जो फल के पकने की जानकारी देती है, लेकिन सब पर सटीक नहीं है. जैसे लिए कुछ ऐसे डिवाइस हैं जो फलों में मौजूद शर्करा और स्टार्च का रासायनिक विश्लेषण कर अपना काम करते हैं, जबकि कुछ अन्य इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसिंग, इमेज प्रोसेसिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्टाइल सेंसिंग का उपयोग करते हैं. लेकिन फलों का रासायनिक विश्लेषण नुकसानदायक है, जिसका उपयोग फल के पकने की सभी अवस्थाओं में यह नहीं किया जा सकता है. जहां तक इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसिंग की बात है, इसके लिए महंगे उपकरण चाहिए.
रिसर्च की विशिष्टताएं :
- सेंसर निर्माण के लिए नई कम लागत वाली प्रक्रिया का विकास.
- विभिन्न किस्मों के फलों के पकने का सटीक आकलन करेंगे.
- यह कैपेसिटिव सेंसर बहुत सेंसिटिव है.