भरतपुर. आज के समय में युवा बीटेक जैसी उच्च शिक्षा ग्रहण कर या तो सरकारी नौकरी तलाशता है या फिर कहीं एमएनसी में लाखों रुपए के पैकेज पर बड़े शहर में सेटल हो जाता है. इस बीच भरतपुर जिले के बयाना क्षेत्र के गांव नगला वल्लभ निवासी युवक गौरव पचौरी ने बीटेक करने के बाद पर्ल फार्मिंग (मोती की खेती) को चुना. शुरुआत में परिजनों का विरोध और ग्रामीणों का उपहास झेलना पड़ा, लेकिन अब मोती की खेती से किसानों के लिए अनूठा उदाहरण पेश कर रहे हैं. कुछ माह में ही गौरव के फार्म में सीपियों से डिजाइनर मोती बाहर आएंगे और युवा किसान की झोली भरेंगे.
यूट्यूब से मिली जानकारी - गौरव पचौरी ने बताया कि बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कई प्रतियोगी परीक्षाएं दीं. इसी दौरान यूट्यूब से पर्ल फार्मिंग के बारे में जानकारी मिली. साथ ही पता चला कि ओडिशा के भुवनेश्वर में पर्ल फार्मिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है. गौरव ने बताया कि उन्होंने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA) में रजिस्ट्रेशन कराया और वहां पर प्रशिक्षण लिया.
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शुरू में परिजन हुए परेशान - गौरव ने बताया कि बीटेक के बाद जब परिजनों को बताया कि वो मोती की खेती करना चाहता है तो एक बार को तो परिजन बहुत परेशान और नाराज हुए, लेकिन आखिर में मान गए. उसके बाद पश्चिम बंगाल की एक कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए संपर्क किया. कंपनी से बात फाइनल होने पर काम शुरू किया.
तैयार किया फार्मिंग सेटअप - गौरव ने बताया कि उन्हें बड़े स्तर पर काम करना था. इसके लिए एक बड़ी टीम की भी जरूरत थी, जो कि उनके पास नहीं थी. ऐसे में उन्होंने पश्चिम बंगाल की एक कंपनी के साथ एमओयू किया. कंपनी के साथ मिलकर करीब डेढ़ बीघा खेत में पॉन्ड तैयार करवाया गया और पूरा फार्मिंग सेटअप तैयार किया. कंपनी के लोगों ने ही यहां आकर पूरा सेट तैयार किया. उसके बाद पश्चिम बंगाल से ही सीप मंगाई गई और उनमें बीज डाला गया. इस पूरी प्रक्रिया में करीब 50 लख रुपए का खर्चा हो गया.
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खराब हो जाते हैं 50 फीसदी सीप - गौरव ने बताया कि एक सीप में दो मोती तयार होते हैं. करीब 50 फीसदी सीप खराब हो जाते हैं. फिर भी यदि 50 फ़ीसदी सीप में मोती तैयार होता है तो 50 लाख रुपए खर्च करने के बाद करीब 1 करोड़ रुपए से ऊपर तक की आय हो सकती है. कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर्ल फार्मिंग करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि कंपनी खुद हमारा माल खरीदती हैं. ऐसे में नुकसान होने की संभावना बहुत कम रहती है.
डेढ़ से दो साल में तैयार होता है मोती - गौरव ने बताया कि सीप में बीज डालने के करीब 18 से 24 महीने बाद मोती तैयार होता है. हमारी मोती की खेती की खास बात यह है कि हमने सीप के अंदर ही अलग-अलग आकार के सांचे फिट किए हैं. जिनमें स्टार, गणेश जी और अन्य आकार शामिल हैं. जब 18 से 24 महीने बाद सीप खोला जाएगा तो उसमें से उसी आकार का मोती तैयार होगा.
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करीब 90 से 150 रुपए में बिकता है एक मोती - गौरव ने बताया कि सीप और उसमें बीज का खर्च करीब 25 से 30 रुपए प्रति सीप आता है. इसके बाद प्रत्येक सीप में दो मोती तैयार होते हैं. प्रत्येक मोती करीब 90 से 150 रुपए तक में बिकता है, लेकिन कंपनी उनसे 110 रुपए में मोती खरीदेगी. गौरव ने कहा कि यदि किसान परंपरागत खेती के साथ प्रगतिशील तरीके से अलग-अलग खेती में किस्मत आजमाए तो अच्छा पैसा कमा सकता है.