ईटीवी भारत डेस्क: नवरात्रि में प्रत्येक दिन (Every day in Navratri) शक्तिदात्री के अलग-अलग अवतारों की पूजा की जाती है. चैत्र नवरात्र का चौथा दिवस मां कुष्मांडा की आराधना का दिन (day of worship of mother kushmanda) होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी कुष्मांडा ने ही इस संसार की रचना की थी. यही कारण है कि इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति भी कहा जाता है. मां के इस स्वरूप को सृष्टि के रचनाकार के रूप में भी जाना जाता है.
कहा जाता है कि जब दुनिया नहीं थी तब हर ओर अंधेरा व्याप्त था, तब देवी ने ही अपनी मंद-मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी. जिसके बाद से ही इन्हें देवी कुष्मांडा कहा गया. पंडित विष्णु राजोरिया ने बताया मां कुष्मांडा अत्यंत ही तेजस्वी देवी हैं. उनकी अष्ट भुजाएं हैं. कमंडल, धनुष बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र एवं गदा अपनी भुजाओं में धारण किए हुए हैं और सिंह पर सवार हैं. मां कुष्मांडा सात्विक बलि से अत्यंत प्रसन्न होती हैं. कुष्मांडा देवी को लाल रंग से सुसज्जित श्रृंगार किया जाता है.
रक्त पुष्पों की माला उन्हें प्रिय है. देवी की आराधना करने से समस्त कष्टों से निवृत्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है. सौरमंडल की अधिष्ठात्री देवी मां कुष्मांडा ही हैं. मां का ये रूप पूरे ब्रह्मांड में शक्तियों को जागृत करने वाला है. इन दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और मां कुष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, गंध, अक्षत, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा (कद्दू या सीताफल), फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें. इसके बाद मां कुष्मांडा को हलवा और दही का भोग लगाएं.
मां को मालपुआ बेहद पसंद है और संभव हो तो उन्हें मालपुए का भोग लगाएं. फिर उसे प्रसाद स्वरूप आप भी ग्रहण कर सकते हैं. इसके बाद उनके मुख्य मंत्र 'ॐ कुष्मांडा देव्यै नमः' का 108 बार जाप करें. पूजा के अंत में मां कुष्मांडा की आरती करें और अपनी मनोकामना उनसे व्यक्त कर दें.