ETV Bharat / bharat

बाघों की सलामती पर हर महीने खर्च होते हैं लाखों रुपए , 24 घंटे होती है मॉनिटरिंग

बाघों की दहाड़ से गूंजने वाले सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों का संरक्षण (Tiger conservation) विभाग के लिए काफी चुनौती भरा है. यहां बाघों के संरक्षण और मॉनिटरिंग पर हर माह करीब 12 से 13 लाख रुपए खर्च होते हैं. बावजूद इसके शिकारियों की निगाह लगातार इस रिजर्व पर टिकी रहती है.

बाघ
बाघ
author img

By

Published : Oct 21, 2021, 9:09 PM IST

अलवर : राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व (Sariska Tiger Reserve) में शिकार के बढ़ते खतरे के बीच बाघों का कुनबा बचाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. हालांकि सरिस्का में बीते कुछ सालों के दौरान बाघों के कुनबे में बढ़ोतरी हुई है. एक बाघ की मॉनिटरिंग पर हर माह मोटी राशि खर्च होती है. 24 घंटे एक टीम बाघ कि हर मूवमेंट पर नजर रखती है. सरिस्का में कई सालों की विरानी के बाद जब वापस बाघों की दहाड़ गूंजी तो उसके साथ ही विभाग के सामने कई तरह की चुनौतियां भी खड़ी हो गई.

साल 2005 में सरिस्का बाघ विहीन हो गया था. सभी बाघों का शिकार हो गया था. शिकार का मामला सामने आने के बाद रणथंभौर और मध्य प्रदेश से बाघों को एअरलिफ्ट करके सरिस्का लाया गया. यहां पर बाघों को बसाया गया. उसके बाद लगातार यहां बाघों के कुनबे में बढ़ोतरी हो रही है. सरिस्का में इस समय 23 बाघ हैं. इसमें 10 बाघिन, 7 बाघ व 6 शावक हैं. प्रत्येक बाघ की मॉनिटरिंग एक टीम लगातार करती रहती है. इस टीम में एक वन कर्मी और एक स्थानीय ग्रामीण शामिल होता है.

बाघों की सलामती पर हर महीने खर्च होते हैं लाखों रुपए

प्रत्येक टीम को वन विभाग की तरफ से एक मोटरसाइकिल दी गई है, जो लगातार बाघ की मॉनिटरिंग में रहते हैं. प्रत्येक टीम में एक वन कर्मी और एक ग्रामीण शामिल होता है. वन कर्मी का वेतन 35 से 40 हजार रुपए रहता है. जबकि सरिस्का प्रशासन की तरफ से स्थानीय ग्रामीण को 10 हजार रुपए वेतन दिया जाता है. प्रत्येक बाघ की मॉनिटरिंग पर एक माह में 50 हजार खर्च होते हैं. सरिस्का में 20 टीमें बनी हुई है. इस हिसाब से हर महीने में करीब 10 लाख रुपए टाइगर की मॉनिटरिंग (Tiger monitoring in Sariska) पर खर्च होते हैं. इसके अलावा तीन अधिकारियों की टीम सरिस्का में गश्त पर रहती है. साथ ही डीएफओ व सीसीएफ सहित अन्य वन विभाग के उच्च अधिकारी भी लगातार दिन-रात मॉनिटरिंग में व्यस्त रहते हैं. इनके लिए अलग से जिप्सी व वाहन लगाई जाती है. इसे भी शामिल करें तो हर माह बाघों की मॉनिटरिंग पर करीब 12 से 13 लाख रुपए का खर्च होते हैं.

किस प्रकार वन विभाग को करनी होती है मॉनिटरिंग

बाघ की मॉनिटरिंग पर एक टीम होती है. यह टीम प्रतिदिन अलग-अलग समय बाघ की लोकेशन लेती है. यह लोकेशन वन विभाग के अधिकारियों को भेजी जाती है. बाघ की मूवमेंट पर भी हमेशा नजर रहती है. प्रत्येक बाघ का एरिया निर्धारित है. अगर बाघ उस एरिया को छोड़कर दूसरे क्षेत्र में जाता है तो वन विभाग की टीम भी उसके पीछे पीछे रहती है. पग मार्क, रेडियो कॉलर व कैमरा ट्रैप के माध्यम से बाघ पर नजर रखी जाती है.

इस टाइगर रिजर्व में एक बार हो चुका है बाघों का सफाया

सरिस्का में साल 2005 में बाघ समाप्त हो गए थे. सरिस्का बाघ विहीन हो गया था. उसके बाद रणथंभौर से बाघों को एअरलिफ्ट करके सरिस्का लाया गया व यहां फिर से बाघों का कुनबा बसाया गया. उसके बाद 5 बाघों की मौत हो चुकी है और तीन शावक मर चुके हैं.

पढ़ें - उत्तराखंड के विधायक और मंत्री अपनी निधि खर्च करने में फिसड्डी, जानिए सीएम का क्या है हाल

शिकारियों की है निगाह

सरिस्का के बीचो-बीच से अलवर जयपुर सड़क मार्ग गुजरती है. सरिस्का के चारों तरफ तारबंदी या चारदीवारी की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए आसानी से शिकारी सरिस्का के जंगल में घुस जाते हैं. साथ ही सरिस्का के कोर जंगल क्षेत्र में अभी 26 गांव बसे हुए हैं. सरिस्का पर हमेशा शिकारियों की नजर रहती है. शिकारियों ने साल 2005 में सरिस्का को बाघ विहीन कर दिया था. उसके बाद भी लगातार यहां शिकार के मामले सामने आते रहे हैं. कई बड़े शिकारियों को वन विभाग की टीम ने शिकार करते हुए पकड़ा है. टाइगर के अलावा पैंथर नीलगाय हिरण बारहसिंगा सहित अन्य जीवों के शिकार के मामले यहां सामने आते हैं.

लोगों का विस्थापन को लेकर नाराजगी वाला रुख

सरिस्का के कोर जंगल क्षेत्र में 26 गांव बसे हुए हैं. जिनमें से 3 गांव का पूरी तरह से विस्थापन हो चुका है. तीन गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है जो लगभग पूरी हो चुकी है. इस हिसाब से 6 गांव विस्थापित हो चुके हैं. जबकि 23 गांव अभी सरिस्का के घने जंगल क्षेत्र में बसे हुए हैं. इनमें लोगों की आवाजाही रहती है. बाघ व अन्य जानवरों को लोगों की आवाजाही से परेशानी होती है. ग्रामीणों के चलते आए दिन शिकार की घटनाएं भी सामने आती है. ग्रामीण अपने खेतों में तारबंदी भी करते हैं. जिनमें फसकर बाघ व अन्य जानवरों की मौत के मामले सामने आ चुके हैं. ग्रामीण सरकार की व्यवस्था व विस्थापन योजना पर हमेशा सवाल उठाते रहे हैं. जिसके चलते ग्रामीणों को किसी अन्य जगह पर विस्थापित करने में समय लगता है.

अलवर : राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिजर्व (Sariska Tiger Reserve) में शिकार के बढ़ते खतरे के बीच बाघों का कुनबा बचाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. हालांकि सरिस्का में बीते कुछ सालों के दौरान बाघों के कुनबे में बढ़ोतरी हुई है. एक बाघ की मॉनिटरिंग पर हर माह मोटी राशि खर्च होती है. 24 घंटे एक टीम बाघ कि हर मूवमेंट पर नजर रखती है. सरिस्का में कई सालों की विरानी के बाद जब वापस बाघों की दहाड़ गूंजी तो उसके साथ ही विभाग के सामने कई तरह की चुनौतियां भी खड़ी हो गई.

साल 2005 में सरिस्का बाघ विहीन हो गया था. सभी बाघों का शिकार हो गया था. शिकार का मामला सामने आने के बाद रणथंभौर और मध्य प्रदेश से बाघों को एअरलिफ्ट करके सरिस्का लाया गया. यहां पर बाघों को बसाया गया. उसके बाद लगातार यहां बाघों के कुनबे में बढ़ोतरी हो रही है. सरिस्का में इस समय 23 बाघ हैं. इसमें 10 बाघिन, 7 बाघ व 6 शावक हैं. प्रत्येक बाघ की मॉनिटरिंग एक टीम लगातार करती रहती है. इस टीम में एक वन कर्मी और एक स्थानीय ग्रामीण शामिल होता है.

बाघों की सलामती पर हर महीने खर्च होते हैं लाखों रुपए

प्रत्येक टीम को वन विभाग की तरफ से एक मोटरसाइकिल दी गई है, जो लगातार बाघ की मॉनिटरिंग में रहते हैं. प्रत्येक टीम में एक वन कर्मी और एक ग्रामीण शामिल होता है. वन कर्मी का वेतन 35 से 40 हजार रुपए रहता है. जबकि सरिस्का प्रशासन की तरफ से स्थानीय ग्रामीण को 10 हजार रुपए वेतन दिया जाता है. प्रत्येक बाघ की मॉनिटरिंग पर एक माह में 50 हजार खर्च होते हैं. सरिस्का में 20 टीमें बनी हुई है. इस हिसाब से हर महीने में करीब 10 लाख रुपए टाइगर की मॉनिटरिंग (Tiger monitoring in Sariska) पर खर्च होते हैं. इसके अलावा तीन अधिकारियों की टीम सरिस्का में गश्त पर रहती है. साथ ही डीएफओ व सीसीएफ सहित अन्य वन विभाग के उच्च अधिकारी भी लगातार दिन-रात मॉनिटरिंग में व्यस्त रहते हैं. इनके लिए अलग से जिप्सी व वाहन लगाई जाती है. इसे भी शामिल करें तो हर माह बाघों की मॉनिटरिंग पर करीब 12 से 13 लाख रुपए का खर्च होते हैं.

किस प्रकार वन विभाग को करनी होती है मॉनिटरिंग

बाघ की मॉनिटरिंग पर एक टीम होती है. यह टीम प्रतिदिन अलग-अलग समय बाघ की लोकेशन लेती है. यह लोकेशन वन विभाग के अधिकारियों को भेजी जाती है. बाघ की मूवमेंट पर भी हमेशा नजर रहती है. प्रत्येक बाघ का एरिया निर्धारित है. अगर बाघ उस एरिया को छोड़कर दूसरे क्षेत्र में जाता है तो वन विभाग की टीम भी उसके पीछे पीछे रहती है. पग मार्क, रेडियो कॉलर व कैमरा ट्रैप के माध्यम से बाघ पर नजर रखी जाती है.

इस टाइगर रिजर्व में एक बार हो चुका है बाघों का सफाया

सरिस्का में साल 2005 में बाघ समाप्त हो गए थे. सरिस्का बाघ विहीन हो गया था. उसके बाद रणथंभौर से बाघों को एअरलिफ्ट करके सरिस्का लाया गया व यहां फिर से बाघों का कुनबा बसाया गया. उसके बाद 5 बाघों की मौत हो चुकी है और तीन शावक मर चुके हैं.

पढ़ें - उत्तराखंड के विधायक और मंत्री अपनी निधि खर्च करने में फिसड्डी, जानिए सीएम का क्या है हाल

शिकारियों की है निगाह

सरिस्का के बीचो-बीच से अलवर जयपुर सड़क मार्ग गुजरती है. सरिस्का के चारों तरफ तारबंदी या चारदीवारी की कोई व्यवस्था नहीं है. इसलिए आसानी से शिकारी सरिस्का के जंगल में घुस जाते हैं. साथ ही सरिस्का के कोर जंगल क्षेत्र में अभी 26 गांव बसे हुए हैं. सरिस्का पर हमेशा शिकारियों की नजर रहती है. शिकारियों ने साल 2005 में सरिस्का को बाघ विहीन कर दिया था. उसके बाद भी लगातार यहां शिकार के मामले सामने आते रहे हैं. कई बड़े शिकारियों को वन विभाग की टीम ने शिकार करते हुए पकड़ा है. टाइगर के अलावा पैंथर नीलगाय हिरण बारहसिंगा सहित अन्य जीवों के शिकार के मामले यहां सामने आते हैं.

लोगों का विस्थापन को लेकर नाराजगी वाला रुख

सरिस्का के कोर जंगल क्षेत्र में 26 गांव बसे हुए हैं. जिनमें से 3 गांव का पूरी तरह से विस्थापन हो चुका है. तीन गांवों के विस्थापन की प्रक्रिया चल रही है जो लगभग पूरी हो चुकी है. इस हिसाब से 6 गांव विस्थापित हो चुके हैं. जबकि 23 गांव अभी सरिस्का के घने जंगल क्षेत्र में बसे हुए हैं. इनमें लोगों की आवाजाही रहती है. बाघ व अन्य जानवरों को लोगों की आवाजाही से परेशानी होती है. ग्रामीणों के चलते आए दिन शिकार की घटनाएं भी सामने आती है. ग्रामीण अपने खेतों में तारबंदी भी करते हैं. जिनमें फसकर बाघ व अन्य जानवरों की मौत के मामले सामने आ चुके हैं. ग्रामीण सरकार की व्यवस्था व विस्थापन योजना पर हमेशा सवाल उठाते रहे हैं. जिसके चलते ग्रामीणों को किसी अन्य जगह पर विस्थापित करने में समय लगता है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.