वाराणसी: देवी आराधना का पर्व नवरात्रि (Shardiya Navratri 2023) अलग-अलग रूप में मनाया जाता है. चैत्र नवरात्र गुप्त नवरात्र और शारदीय नवरात्र दीपावली से पहले नवरात्रि (Navratri 2023) का यह त्यौहार माता के आगमन की तैयारी के साथ धूमधाम से मनाया जाता है. कोलकाता से लेकर बनारस तक माता दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं आती हैं और पूजन पाठ के साथ दुर्गा मां का आगमन घर-घर में होता है. इन सबके बीच आज आप यह भी जान लीजिए कि इस बार नवरात्रि में कलश स्थापना (Kalash Sthapana Muhurta) के लिए सही वक्त क्या होगा, कब करना होगा कलश स्थापना और क्या होगा इसका सही तरीका.
इस बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा, 15 अक्टूबर को कलश स्थापन प्रात: काल नहीं किया जा सकेगा. धर्मशास्त्र में चित्रा तथा वैधृति काल में कलश स्थापन का निषेध बताया गया है. 'त्वाष्ट्र वैधृति युक्ता चेत्प्रतिपच्चण्डिकार्चने। तयोरन्ते विधातव्यं कलशारोपणं गृहे।।" अर्थात, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को सम्पूर्ण चित्रा नक्षत्र तथा वैधृति है. सम्पूर्ण चित्रा तथा वैधृति होने पर मध्याह्न में अभिजिन्न मुहूर्त में कलश स्थापन करना चाहिए. अत: इस वर्ष 15 अक्टूबर को कलश स्थापन के लिए अभिजिन्न मुहूर्त दिन में 11:38 बजे से 12:38 बजे तक किया जायेगा. महानिशा पूजन 21 अक्टूबर को निशिथकाल में बलि इत्यादि किया जायेगा, तो महाष्टमी व्रत 22 अक्टूबर को, महाअष्टमी व्रत की पारना 23 अक्टूबर को प्रात: किया जाएगा. सम्पूर्ण नवरात्र व्रत की पारना 24 अक्टूबर को प्रात: किया जाएगा.
नवरात्र पूजन का संकल्प
पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को तैलाभ्यांग, स्नानादि कर मन में संकल्प लेना चाहिए. संकल्प में 'तिथि, वार, नक्षत्र, गोत्र, नाम इत्यादि लेकर माता दुर्गा के प्रसन्नार्थ, पित्यर्थ, प्रसादस्वरूप, दीर्घायु, विपुलधन, पुत्र-पौत्र, स्थिर लक्ष्मी, कीर्ति लाभ, शत्रु पराजय, सभी तरह के सिद्धर्थ, शारदीय नवरात्र में कलश स्थापन, दुर्गा पूजा, कुंवारी पूजन करेंगे या करूंगी. इस प्रकार संकल्प करना चाहिए. इसके उपरांत गणपति पूजन, स्वस्तिवाचन, नांदीश्राद्ध, मातृका पूजन इत्यादि करना चाहिए. तदुपरांत मां दुर्गा का पूजन षोडशोपचार या पंचोपचार करना चाहिए.
शारदीय नवरात्र में कलश स्थापना करने का सही तरीका क्या है यह जानना बेहद जरूरी है. पंडित ऋषि द्विवेदी के मुताबिक कलश की स्थापना मंदिर के उत्तर पूर्व दिशा में करनी चाहिए. इसके लिए मां की चौकी लगाकर कलश को स्थापित करना चाहिए. सबसे पहले उसे जगह को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें. कलश में आम का पत्ता रखें और इसे गंगा जल या शुद्ध जल से भर दें. साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी एक गांठ कलश में डालकर कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेटकर रखें.
चावल से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी उड़ा दें. कलश स्थापना करने के बाद अखंड दीपक की स्थापना भी की जाती है. कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें. हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके मंत्र जाप करें और फूल और चावल मां के चरणों में अर्पित करें. मां शैलपुत्री के लिए जो भोग बनाया है. उसे मां के आगे अर्पित करें और हाथ जोड़कर देवी का ध्यान करके उनका आवाहन करें.
इस मंत्र से करें आव्हान
सर्व मंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी, नारायणी नमोस्तुते।।