कोटा. शहर का नांता गढ़ एक मादा पैंथर का बसेरा हो गया है. बीते 5 दिनों से लगातार वह गढ़ व (Panther in Nanta Garh in Kota) इसके आस-पास शिकार कर रही है. इसकी साइटिंग होने के बाद वन विभाग की टीम भी पूरी तरह से मुस्तैद होकर उसकी मॉनिटरिंग में जुटी है. इस पूरे गढ़ परिसर में 8 कैमरा ट्रैप और तीन पिंजरे लगाए गए हैं. साथ ही 24 घंटे ड्यूटी के लिए स्टाफ भी लगा दिया गया है. हालांकि यह मादा बघेरा 17 नवंबर यानी 5 दिनों से नांता में चहल कदमी कर रहा है.
डीसीएफ फ्लाइंग स्क्वाड अनुराग भटनागर का कहना है कि यह मादा पैंथर है. पगमार्क और फोटो से यह साबित हो गया है. क्योंकि मादा के पैर छोटे होते हैं और अंगुलियों के बीच में जगह भी कम होती है. संभवतः इस ने हाल ही में बच्चों को भी जन्म दिया है. पैंथर का मेटिंग पीरियड बारिश के समय जून-जुलाई रहता है और प्रेगनेंसी भी 90 से 105 दिन की होती है. ऐसे में सितंबर व अक्टूबर में ही बच्चों को जन्म देती हैं. यह परिस्थिति समान हो रही है. इसलिए इस मादा पैंथर के साथ कुछ शावक होने की भी उम्मीद है.
मादा पैंथर को गढ़ सुरक्षित लगा : डीसीएफ भटनागर ने कहा कि प्रसव के लिए पैंथर सुरक्षित जगह तलाशते (Rescue of Panther in nanta Garh) हैं. ऐसे में हो सकता है कि नांता गढ़ सुरक्षित जगह होने से मादा पैंथर ने यहां पर आकर बच्चों को जन्म दे दिया है. हालांकि अभी बच्चे कैमरा ट्रैप में नहीं आए हैं. इसीलिए इसे कंफर्म नहीं कहा जा सकता है. यह भी हो सकता है कि यह मादा कुछ दिनों में बच्चों को जन्म दे सकती है. मादा पैंथर एक बार में करीब तीन से चार शावकों को जन्म देती है. साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई है कि यह अभी से नहीं करीब एक डेढ़ महीने से ही नांता महल में मौजूद है.
ट्रेंकुलाइज या पकड़ने से पैंथर को हो सकता है खतरा : एक्सपर्ट का कहना है कि मादा पैंथर को ट्रेंकुलाइज करना भी मुश्किल है. इंजेक्शन लगने से उसकी जान को खतरा भी हो सकता है. वह प्रेग्नेंट भी हो सकती है. ऐसे में भी उसको खतरा है. मादा पैंथर को ट्रेंकुलाइज करने के बाद पकड़ लिया जाता है तो पैंथर ने अपने शावकों को गढ़ के किस हिस्से में छुपाया है, वे नहीं मिल पाएंगे. उनकी मौत हो सकती है. दूसरी तरफ यह भी समस्या है कि अगर वह पिंजरे में कैद कर ली जाती है, तो बाद में अपने शावकों को एक्सेप्ट करें या नहीं यह भी समस्या है.
पिंजरे की तरफ नहीं गई पैंथर : मादा पैंथर को पकड़ने के लिए वन विभाग ने पिंजरे लगाए हैं, लेकिन उसने पिंजरे के 5 फीट नजदीक एक श्वान का रविवार रात को शिकार किया और उसे खींचकर गढ़ में ले गई. पिंजरे के नजदीक श्वान को खींचकर ले जाने के निशान भी हैं. इसके बाद ही इस पिंजरे से महज 200 फीट दूर एक दूसरे श्वान को भी उसने मार दिया. लेकिन लोग जाग गए, इसके चलते वह उस श्वान को वहीं छोड़कर गढ़ में चली गई. डीसीएफ भटनागर के अनुसार स्थानीय लोग उसे परेशान कर रहे हैं.
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पाली के गांव में साथ रह रहे हैं पैंथर : डीसीएम भटनागर का यह भी कहना है कि पाली गांव में पैंथर और आम व्यक्ति एक साथ रहते हैं, लेकिन रात के समय यह लोग जंगल में नहीं जाते हैं और बघेरों ने वहां किसी तरह का कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाया. साथ में उनका कहना है कि कोटा टेरिटोरियल के सकतपुरा एरिया से यह पैंथर यहां पर आया है. इस एरिया में काफी ज्यादा संख्या में पैंथर हैं. कोटा के मुकुंदरा में भी 86 लेपर्ड हैं, लेकिन अभी तक व्यक्ति पर हमले का किसी तरह का मामला नहीं आया है. कोटा थर्मल में भी कई बार पैंथर नजर आए हैं. यह भी संभवतः वहीं से आया है. स्थानीय लोगों को जागरूक करने के लिए हमने पैंपलेट भी छपवाएं हैं. इसका वितरण किया जाएगा कि पैंथर के साथ भी रहा जा सकता है.
हम डर के साए में जी रहे : इधर, नांता गढ़ के आसपास करीब पांच हजार से ज्यादा लोगों की आबादी रहती है. सभी डर के साए में जी रहे हैं. रात के समय कभी भी पैंथर बाहर आती है और शिकार के बाद वापस गढ़ में चली जाती है. पैंथर का पसंदीदा भोजन श्वान होता है, जो कि आसपास बड़ी मात्रा में मौजूद भी है. रवि प्रकाश तिवारी का कहना है कि सोमवार सुबह तड़के 4:30 बजे के आसपास पैंथर गढ़ से बाहर आई और उसने श्वान का शिकार उनके सामने ही किया. लेकिन आसपास के कुछ लोगों ने शोरगुल किया, जिससे वह श्वान को वहीं छोड़कर चली गई. जबकि इसके कुछ देर पहले ही उसने एक और श्वान का शिकार किया था. पैंथर के डर से बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं. ऐसे में बच्चों की पढ़ाई भी बाधित हो रही है.
स्कूल सामुदायिक भवन और मंदिर में शिफ्ट : नांता के गढ़ में दो स्कूल भी संचालित होते थे, लेकिन अब इन बच्चों के सामने पढ़ाई का संकट खड़ा हो गया है. जिन बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं हैं, केवल उन्हें ही इधर-उधर सामुदायिक भवन या मंदिर में ही पढ़ाया जा रहा है. लेकिन कक्षा 1 से लेकर 5वीं तक के विद्यार्थियों को तो छुट्टी कर दी गई है. इस पर डीसीएफ भटनागर का कहना है कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है. पैंथर कभी भी इंसानों पर अटैक नहीं करते हैं. उनकी फूड चेन में भी इंसान नहीं रहे हैं. साथ ही उनके जीन में भी इंसान को खाना सामने नहीं आया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह गढ़ बीते 100 साल से सुनसान है. जबकि इसमें दो विद्यालय चलते हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि बघेरे को पकड़ने के लिए वन विभाग किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं कर रहा है.