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Bulli Bai App Controversy: दिल्ली HC की महिला वकीलों के फोरम ने CJI को लिखा पत्र

दिल्ली हाईकोर्ट की महिला वकीलों के एक निकाय (A body of women lawyers of the Delhi High Court) ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice of India) एनवी रमना को पत्र लिखकर केंद्र और राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया कि अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को सम्मान के साथ जीवन का अधिकार मिले और सुली डील्स व बुली बाई ऐप विवाद मामले की समयबद्ध जांच का आदेश दिया जाए.

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फाइल फोटो
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Published : Jan 8, 2022, 5:50 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली HC की महिला वकीलों के फोरम (A body of women lawyers of the Delhi High Court) ने CJI को पत्र लिखकर मामले की समयबद्ध जांच की मांग उठाई है. दरअसल, सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं को बुली बाई ऐप पर नीलामी के लिए सूचीबद्ध किया गया था, जिसमें तस्वीरें बिना अनुमति के डाली गई थीं और उनसे छेड़छाड़ की गई थी. यह एक साल से भी कम समय में दूसरी बार हुआ है.

एक पत्र में दिल्ली उच्च न्यायालय महिला वकील फोरम (DHCWLF) की सदस्यों ने भारत में अल्पसंख्यक समुदायों को सम्मान और सुरक्षा के साथ जीवन के मौलिक अधिकार को सुरक्षित करने में केंद्र और राज्य सरकारों की विफलता पर प्रकाश डाला और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए निवारक उपाय करने का अनुरोध किया.

यह भी पढ़ें- पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव, 10 फरवरी से सात चरण में मतदान, 10 मार्च को नतीजे

इसमें कहा गया कि ऐप के अस्तित्व से अधिक अपमानजनक कुछ कायर दिमागों की इस तरह की कोशिश है. जिन्होंने दो बार सार्वजनिक रूप से आम जनता के बीच खुले तौर पर कट्टरता को व्यक्त किया है. पुलिस और न्यायपालिका द्वारा कार्रवाई की कमी से उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है.

नई दिल्ली : दिल्ली HC की महिला वकीलों के फोरम (A body of women lawyers of the Delhi High Court) ने CJI को पत्र लिखकर मामले की समयबद्ध जांच की मांग उठाई है. दरअसल, सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं को बुली बाई ऐप पर नीलामी के लिए सूचीबद्ध किया गया था, जिसमें तस्वीरें बिना अनुमति के डाली गई थीं और उनसे छेड़छाड़ की गई थी. यह एक साल से भी कम समय में दूसरी बार हुआ है.

एक पत्र में दिल्ली उच्च न्यायालय महिला वकील फोरम (DHCWLF) की सदस्यों ने भारत में अल्पसंख्यक समुदायों को सम्मान और सुरक्षा के साथ जीवन के मौलिक अधिकार को सुरक्षित करने में केंद्र और राज्य सरकारों की विफलता पर प्रकाश डाला और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए निवारक उपाय करने का अनुरोध किया.

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इसमें कहा गया कि ऐप के अस्तित्व से अधिक अपमानजनक कुछ कायर दिमागों की इस तरह की कोशिश है. जिन्होंने दो बार सार्वजनिक रूप से आम जनता के बीच खुले तौर पर कट्टरता को व्यक्त किया है. पुलिस और न्यायपालिका द्वारा कार्रवाई की कमी से उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है.

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