नागौर. बुरडी गांव के तीन भाइयों व पिता ने बुधवार को अब तक का सबसे बड़ा मायरा भरकर इतिहास रचा. भाइयों ने झाड़ेली गांव में भांजी की शादी में अपनी बहन के 3 करोड़ 21 लाख का मायरा (भात) भरा है. जिसमें 16 बीघा खेत और नागौर स्थित रिंग रोड पर 30 लाख का भूखंड शामिल है.
जानकारी के अनुसार झाड़ेली में बुरड़ी निवासी भंवरलाल गरवा की दोहिती (Grand Daughter) अनुष्का की शादी ढींगसरी निवासी कैलाश के साथ होनी है. बुधवार को भंवरलाल गरवा और उनके तीन पुत्र हरेन्द्र, रामेश्वर और राजेंद्र ने ये मायरा भरा. भंवरलाल का परिवार खेती करता है. समृद्ध खेतिहर परिवार के पास करीब साढ़े 300 बीघा जमीन है.
यह भरा गया मायरा में
मायरे में 81 लाख रुपए कैश, 16 बीघा खेत, 30 लाख का भूखंड, 41 तोला सोना, 3 किलो चांदी दी गई. साथ ही एक नया ट्रैक्टर, धान से भरी ट्रॉली और एक स्कूटी भी भेंट की. इतना ही नहीं गांव के प्रत्येक परिवार को एक चांदी का सिक्का भी दिया. जमीन-जेवर और वाहन की कीमत व नकदी मिलाकर करीब 3 करोड़ 21 लाख बैठा.
500-500 रुपए के नोट से सजी चुनरी
मायरा में ननिहाल पक्ष की ओर से जमीन से जुड़े सारे डाक्यूमेंट्स बेटी के परिवार को सौंपे गए. पूरे गांव के लिए चांदी के सिक्के थाल में सजाकर रखे गए थे. इसके साथ ही भाइयों ने अपनी बहन को 500-500 के नोटों से सजी चुनरी भी ओढ़ाई.
नागौर अनूठे मायरे की मिसाल
नागौर जिले में हर साल कोई ना कोई ऐसा मायरा भरा जाता है जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है. पिछले एक महीने में आधा दर्जन मायरे ऐसे भरे गए हैं, जो एक-एक करोड़ तक के रहे. फरवरी में ही राजोद गांव के दो भाइयों सतीश गोदारा और मुकेश गोदारा ने सोनेली गांव में अपनी बहन संतोष का मायरा भरा था. भाइयों ने 71 लाख का कैश, डॉलर की चुनरी और 41 तोला सोना भेंट किया था.
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मायरा आखिर क्या?
राजस्थान में बहन के बच्चों की शादी पर ननिहाल पक्ष की ओर से मायरा भरने की प्रथा है. इसे हिंदी पट्टी में सामान्य तौर पर भात भरना भी कहा जाता है. इस रस्म में ननिहाल पक्ष की ओर बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपए और कई तरह के सामान सौंपे जाते हैं. अपनी श्रद्धा और शक्ति के मुताबिक मामा पक्ष बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े, जेवरात आदि भेंट स्वरूप देते हैं.
मान्यता ये है!
मायरे से जुड़ी एक कहानी है. जो नरसी भगत के जीवन से जुड़ी है. कहते हैं नरसी का जन्म गुजरात स्थित जूनागढ़ में लगभग 600 साल पहले हुमायूं के शासनकाल में हुआ था. नरसी जन्म से ही सुन और बोल नहीं सकते थे. दादी के पास ही रहते थे, भाई-भाभी भी थे लेकिन भाभी स्वभाव से अक्खड़ थी. जीवन दुख भरा था. एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई और उनके सुनने की शक्ति भी वापस आ गई. विवाह हुआ लेकिन छोटी उम्र में पत्नी का भी देहांत हो गया. फिर नरसी जी का दूसरा विवाह कराया गया.
नरसी की बेटी नानीबाई थीं. उनका विवाह अंजार नगर में हुआ. इस बीच भाभी ने नरसी को घर से निकाल दिया. वो श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे. भगवान भोलेनाथ की कृपा से उन्हें ठाकुर जी के दर्शन हुए. जिसके बाद नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत जीवन अपना लिए.
उनकी बेटी नानीबाई ने बेटी को जन्म दिया. वो विवाह लायक हुई लेकिन नरसी को कोई खबर नहीं थी. विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया. नरसी के पास कुछ भी नहीं था. उसने भाई-बंधु से मदद मांगी लेकिन मदद किसी ने नहीं की. आखिर में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही बिटिया के ससुराल निकल पड़े. बताया जाता है कि उनकी भक्ति से प्रसन्न हो भगवान श्रीकृष्ण खुद भात भरने पहुंचे थे.