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उपराष्ट्रपति बोले, दूरदर्शी और समाज सुधारक थे सावरकर

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने सावरकर की जीवनी पर लिखी गई एक पुस्तक 'सावरकर: 'इकोस फ्रॉम ए फॉरगॉटेन पास्ट' का विमोचन करते हुए कहा कि सावरकर एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे .

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु
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Published : Nov 16, 2019, 10:02 AM IST

Updated : Nov 16, 2019, 10:59 AM IST

नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने वीर सावरकर पर लिखी गई एक पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि सावरकर एक बहुआयामी व्यक्तित्व और स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, लेखक, कवि, इतिहासकार, राजनीतिक नेता और एक दार्शनिक थे.

यहां एक कार्यक्रम में 'सावरकर: 'इकोस फ्रॉम ए फॉरगॉटेन पास्ट' पुस्तक का विमोचन करते हुए उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि वीर सावरकर के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं जो जिनकी सराहना कम हुई है.

भारत में बहुत कम लोग जानते हैं कि वीर सावरकर ने भारत में अस्पृश्यता के खिलाफ सबसे शक्तिशाली सामाजिक सुधार आंदोलनों में से एक की शुरुआत की थी.

नायडू ने कहा कि सावरकर ने दलितों सहित सभी हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति देने के लिए रत्नागिरी जिले में पतित पावन मंदिर का निर्माण किया.

उपराष्ट्रपति ने कहा,'वह एक जाति विहीन भारत की कल्पना करने वाले पहले व्यक्ति थे.'

उपराष्ट्रपति नायडु ने कहा कि वो सावरकर ही थे जिन्होंने 1857 के विद्रोह को स्वतंत्रता के पहले युद्ध का नाम दिया था, सावरकर द्वारा किया गया यह प्रयास इतिहास का एक सही अर्थ है जो भारतीय मूल्यों को दर्शाता है.

इस दौरान उपराष्ट्रपति ने सावरकर द्वारा बताई गई समाज की सात कुप्रथाओ पर भी चर्चा की.

  1. उन्होंने कहा कि पहली कुव्यवस्था कठोर जाति व्यवस्था थी, जो सावरकर के अनुसार, 'इतिहास के कूड़ेदान में फेंकने लायक है'.
  2. दूसरा सुधार वीर सावरकर चाहते थे कि वैदिक साहित्य को सभी में लोकप्रिय बनाया जाए, न कि किसी विशेष जाति के लिए.वेंकैया नायडू ने कहा कि सावरकर ने वैदिक साहित्य को सांस्कृतिक ज्ञान कहा और कहा कि यह ग्यान मानव जाति के लिए भारत का का उपहार है.
  3. उपराष्ट्रपति ने कहा कि तीसरा, जाति-आधारित व्यावसायिक कठोरता से दूर रहने और व्यक्तियों को योग्यता और क्षमता के आधार पर अपनी पसंद के किसी भी व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना था.

पढ़ें- केन्द्रीय मंत्री बोले- लोग शादी कर रहे हैं, ट्रेन-प्लेन फुल हैं, फिर कहां है मंदी

वेंकैया नायडू ने कहा कि सावरकर का मानना ​​था प्रतियोगिता की प्रेरणा के अभाव में, या योग्यता की कमी के कारण, एक व्यक्ति वही करेगा जो उसके पिता ने जो किया. जिससे वह न तो आत्मसंतुष्ट बन पाएगा न ही अच्छा काम कर पाएगा.

4. उन्होंने कहा कि सावरकर ने वैश्विक गतिशीलता और भारतीयों को विदेशी भूमि में व्यापार करने की आवश्यकता पर विश्वास करते थे ताकि 'दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बना जा सके और भारत और उसकी संस्कृति की सुगंध को दुनिया के हर कोने में फैले.'

5. पांचवां सुधार सावरकर चाहते थे कि अंतरजातीय भोजन पर कुव्यवस्था को दूर किया जा सके.एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, उपराष्ट्रपति ने कहा कि सावरकर ने कहा था कि धर्म दिल है, आत्मा है, हिम्मत है; लेकिन पेट नहीं है!'

6.सावरकर का छठा बिंदु अंतर-जातीय विवाह का प्रचार था.

7. सावरकर के सातवां बिंदु समाज में एक वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करने की आवश्यकता का था.

उपराष्ट्रपति ने सावरकर के हवाले से कहा 'हम यूरोप से 200 साल पीछे हैं'. उपराष्ट्रपति ने कहा सावरकर की भारत के भविष्य के विकास की दूरदर्शी दृष्टि 'वास्तव में उल्लेखनीय' थी.

भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा सामना किए गए असंख्य कष्टों को देखते हुए, उन्होंने सभी से उनके जीवनकाल में कम से कम एक बार सेलुलर जेल जाने की अपील की.

उपराष्ट्रपति ने पुस्तक के लिए लेखक विक्रम संपत की सराहना करते हुए कहा कि विवादास्पद रहे सावरकर की जीवनी लिखना कोई आसान काम नहीं है.

नई दिल्ली : उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने वीर सावरकर पर लिखी गई एक पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि सावरकर एक बहुआयामी व्यक्तित्व और स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, लेखक, कवि, इतिहासकार, राजनीतिक नेता और एक दार्शनिक थे.

यहां एक कार्यक्रम में 'सावरकर: 'इकोस फ्रॉम ए फॉरगॉटेन पास्ट' पुस्तक का विमोचन करते हुए उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा कि वीर सावरकर के व्यक्तित्व के कई पहलू हैं जो जिनकी सराहना कम हुई है.

भारत में बहुत कम लोग जानते हैं कि वीर सावरकर ने भारत में अस्पृश्यता के खिलाफ सबसे शक्तिशाली सामाजिक सुधार आंदोलनों में से एक की शुरुआत की थी.

नायडू ने कहा कि सावरकर ने दलितों सहित सभी हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति देने के लिए रत्नागिरी जिले में पतित पावन मंदिर का निर्माण किया.

उपराष्ट्रपति ने कहा,'वह एक जाति विहीन भारत की कल्पना करने वाले पहले व्यक्ति थे.'

उपराष्ट्रपति नायडु ने कहा कि वो सावरकर ही थे जिन्होंने 1857 के विद्रोह को स्वतंत्रता के पहले युद्ध का नाम दिया था, सावरकर द्वारा किया गया यह प्रयास इतिहास का एक सही अर्थ है जो भारतीय मूल्यों को दर्शाता है.

इस दौरान उपराष्ट्रपति ने सावरकर द्वारा बताई गई समाज की सात कुप्रथाओ पर भी चर्चा की.

  1. उन्होंने कहा कि पहली कुव्यवस्था कठोर जाति व्यवस्था थी, जो सावरकर के अनुसार, 'इतिहास के कूड़ेदान में फेंकने लायक है'.
  2. दूसरा सुधार वीर सावरकर चाहते थे कि वैदिक साहित्य को सभी में लोकप्रिय बनाया जाए, न कि किसी विशेष जाति के लिए.वेंकैया नायडू ने कहा कि सावरकर ने वैदिक साहित्य को सांस्कृतिक ज्ञान कहा और कहा कि यह ग्यान मानव जाति के लिए भारत का का उपहार है.
  3. उपराष्ट्रपति ने कहा कि तीसरा, जाति-आधारित व्यावसायिक कठोरता से दूर रहने और व्यक्तियों को योग्यता और क्षमता के आधार पर अपनी पसंद के किसी भी व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना था.

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वेंकैया नायडू ने कहा कि सावरकर का मानना ​​था प्रतियोगिता की प्रेरणा के अभाव में, या योग्यता की कमी के कारण, एक व्यक्ति वही करेगा जो उसके पिता ने जो किया. जिससे वह न तो आत्मसंतुष्ट बन पाएगा न ही अच्छा काम कर पाएगा.

4. उन्होंने कहा कि सावरकर ने वैश्विक गतिशीलता और भारतीयों को विदेशी भूमि में व्यापार करने की आवश्यकता पर विश्वास करते थे ताकि 'दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बना जा सके और भारत और उसकी संस्कृति की सुगंध को दुनिया के हर कोने में फैले.'

5. पांचवां सुधार सावरकर चाहते थे कि अंतरजातीय भोजन पर कुव्यवस्था को दूर किया जा सके.एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, उपराष्ट्रपति ने कहा कि सावरकर ने कहा था कि धर्म दिल है, आत्मा है, हिम्मत है; लेकिन पेट नहीं है!'

6.सावरकर का छठा बिंदु अंतर-जातीय विवाह का प्रचार था.

7. सावरकर के सातवां बिंदु समाज में एक वैज्ञानिक स्वभाव विकसित करने की आवश्यकता का था.

उपराष्ट्रपति ने सावरकर के हवाले से कहा 'हम यूरोप से 200 साल पीछे हैं'. उपराष्ट्रपति ने कहा सावरकर की भारत के भविष्य के विकास की दूरदर्शी दृष्टि 'वास्तव में उल्लेखनीय' थी.

भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा सामना किए गए असंख्य कष्टों को देखते हुए, उन्होंने सभी से उनके जीवनकाल में कम से कम एक बार सेलुलर जेल जाने की अपील की.

उपराष्ट्रपति ने पुस्तक के लिए लेखक विक्रम संपत की सराहना करते हुए कहा कि विवादास्पद रहे सावरकर की जीवनी लिखना कोई आसान काम नहीं है.

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vice President M Venkaiah Naidu said on Friday that Veer Savarkar was a multidimensional personality and a freedom fighter, social reformer, writer, poet, historian, political leader and a philosopher.



Releasing the book 'Savarkar: Echoes from a Forgotten Past' at an event here, Vice President M Venkaiah Naidu said there are many facets of Veer Savarkar's personality that remain underappreciated.



"Very few in India know that Veer Savarkar started one of the most powerful social reform movements against untouchability in India", Naidu said adding that Savarkar built Patit Pavan Mandir in the Ratnagiri district to allow entry to all Hindus, including Dalits.



"He was the first to envision a casteless India", the Vice President said.



Noting that it was Veer Savarkar who named the 1857 rebellion as the first war of independence, Naidu called for a right sense of history that is reflective of Indian values.



Venkaiah Naidu also listed what Veer Savarkar called as seven shackles of the society.



He said the first was the rigid caste system which, according to Savarkar, "deserves to be thrown into the dustbins of history".



The second reform Veer Savarkar wanted was to popularize Vedic literature to everyone, not only to a particular caste.



Venkaiah Naidu said Savarkar called Vedic literature civilizational knowledge for the entire human race and India's unique gift to mankind.



The Vice President said that the third was to break away from caste-based vocational rigidity and encourage persons to pursue any vocation of their choice based on aptitude and ability.



In the absence of motivation of competition, or lack of aptitude, Savarkar believed, "merely following what one's father did, will make one both complacent and unproductive," Venkaiah Naidu said



He said Savarkar believed in global mobility and the need for Indians to venture out into foreign lands so as to "bring back the best of the world and carry the fragrance of India and her culture to every corner of the globe."



The fifth reform Savarkar wanted was to break away from the taboo on inter-caste dining.



"He had said Religion is in the heart, the soul, the spirit; not the stomach!'", the Vice-President said, according to an official release.



The sixth, he said, was the promotion of inter-caste marriage



Venkaiah Naidu said the seventh aspect Veer Savarkar underscored was the need to develop a scientific temper.



"We are 200 years behind Europe", he quoted Savarkar as saying.



The Vice President called Savarkar's far-sighted vision of India's future development as "truly remarkable".



Recounting the innumerable sufferings faced by Indian freedom fighters, he appealed to everyone to visit the Cellular Jail at least once in their lifetime.



Noting that it is not easy to write a biography, sepecially of a person as illustrious and as controversial as Savarkar, the Vice President complimented the author Vikram Sampath for the book.


Conclusion:
Last Updated : Nov 16, 2019, 10:59 AM IST
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