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महिला दिवस विशेष : लोकसंगीत की 'मालिनी', जिनके स्वर से लोकगीत महक उठे

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Published : Mar 8, 2020, 8:09 AM IST

'भगवान के भरोसे मत बैठो क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो' इसी कहावत के साथ लोक गायिका मालिनी अवस्थी ने महिला दिवस के अवसर पर ईटीवी भारत के साथ खास बातचीत की.

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मालिनी अवस्थी

नई दिल्ली : मालिनी अवस्थी वो नाम है, जिसने अवधी, बुंदेली और भोजपुरी गीतों में नई मिठास भर दी. संगीत के 'सुरसंग्राम' में उतरकर समाज के उन लोगों को चुनौती दी, जो भोजपुरी गाने को गाने से शर्म करते थे. मालिनी जब भी ठुमरी और कजरी के साथ किसी भी विधा का लोकगीत प्रस्तुत करती हैं, कुछ वक्त के लिए कान कुछ और सुनने को राजी नहीं होते हैं.

11 फरवरी को कन्नौज के डॉक्टर परिवार में जन्मी मालिनी ने लोकगीत की दुनिया में ऐसा मुकाम बनाया कि लोग उनकी दीवाने होते गए. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ETV भारत से न सिर्फ उन्होंने अपने निजी जीवन के बारे में खुलकर बात की बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की सलाह दी.

इस वजह से लोकसंगीत की तरफ बढ़ीं मालिनी
'भगवान के भरोसे मत बैठो क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो' इसी कहावत के साथ उन्होंने कहा कि, 'मुकाम हासिल करने के लिए खुद को ही आगे बढ़ना होगा.' उन्होंने कहा कि, 'इंसान जिन संस्कारों के साथ पलता बढ़ता है, उसी पर चलता रहता है. लेकिन मुझे नहीं पता था लोक कलाकार बनूंगी.' मालिनी संगीत के सफर के बारे में बताती हैं कि, 'मुझे लगा के लोक कला, लोक संस्कृति पर लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं. इसी कारण मैंने लोक संगीत की ओर कदम बढ़ाया.'

ईटीवी भारत रिपोर्ट

संगीत की शुरुआत चिंता से हुई
मालनी कहती हैं कि, 'लोग किसी न किसी उद्देश्य के साथ लोक संगीत में आते हैं. मैंने लोक संगीत की शुरुआत चिंता के साथ शुरू की है.' उन्होंने पहले के जमाने का जिक्र करते हुए कहा कि, 'एक समय ऐसा आया कि ढोल-नगाड़े सब गायब हो गए और पुराने अच्छे गाने की जगह फुहड़ गानों ने ले ली. इस चिंता के साथ मैं इस क्षेत्र में आगे बढ़ी ताकि लोक संगीत को बचाया जा सके.'

संगीत जगत में बहुत है चुनौती: मालिनी
लोक गायिका अवस्थी कहती हैं कि, 'इस संगीत को लेकर मैंने जो बचपन से देखा था, सुना था, वहीं काम लोगों तक पहुंचाना शुरू कर दिया.' उन्होंने संगीत जगत से जुड़े लोगों के लिए कहा कि, 'गाने के बीच चुनौती बहुत आती है, इसलिए सबको बैलेंस करके चलना पड़ता है'. वे कहती हैं कि, 'सोशल मीडिया ने बहुत सहारा दिया है कि आप खुद को एक्सप्रेस कर सकते हैं.'

आलोचना को आशीर्वाद की तरह लें: मालिनी
उन्होंने कहा कि, 'संगीत गहरा समुद्र है, इसमें शॉर्टकट नहीं होता है.' वहीं चुनौतियों को लेकर कहा कि, 'लोग आपकी आलोचना करते हैं, उनकी आलोचना सुन लीजिए. लेकिन उसमें से अपने काम की चीजें निकाल लीजिए. आलोचना को आशीर्वाद की तरह लेना चाहिए.' उन्होंने कहा कि, 'रोकर आंखों से आंसू निकाल लो लेकिन लक्ष्य और सपने आंख से नहीं निकलने चाहिए.'

'स्त्री शक्ति' महिला
उन्होंने आज की स्त्री पर कहा कि, 'स्त्री वो है जो सबके बारे में सोचती है.' साथ ही यह भी कहा कि, 'आज के समय में बच्चे भी चाहते हैं कि उनकी मां के सपने पूरे हों. लेकिन इन सबके बीच एक समस्या भी है जो आज देखने मिलती है. हम मॉर्डन हो गए हैं स्त्री सिर्फ अपने बच्चे और पति के बारे में सोचती है लेकिन 'स्त्री शक्ति' महिला के पास ही इसलिए है, ताकि वे सबके बारे में सोच सके.'

15 साल की उम्र में घटी थी घटना
निर्भया केस में टल रही फांसी पर कहा कि ये दुर्भाग्य पूर्ण है. उन्होंने महिलाओं और युवतियों से अपील करते हुए कहा कि, 'अगर किसी भी व्यक्ति की तरफ से गलत संकेत की संभावना हो रही हो तो तुरंत एक्शन लें'. उन्होंने अपनी बचपन की कहानी बताते हुए कहा कि, '15 साल की उम्र में किसी अज्ञात ने उनका साइकिल का हैंडल रोका था और उन्होंने तुरंत उसके सिर पर घुंघरू से वार कर खुद को सुरक्षित किया.'

8 मार्च : एक शताब्दी से ज्यादा पुरानी हुई महिला दिवस मनाने की परंपरा

मिल चुके हैं ये पुरस्कार-

  • पद्म श्री (2016)
  • कालिदास सम्मान 2014
  • यश भारती (यूपी सरकार) 2006
  • सहारा अवध सम्मान (2003)
  • नारी गौरव 2000

नई दिल्ली : मालिनी अवस्थी वो नाम है, जिसने अवधी, बुंदेली और भोजपुरी गीतों में नई मिठास भर दी. संगीत के 'सुरसंग्राम' में उतरकर समाज के उन लोगों को चुनौती दी, जो भोजपुरी गाने को गाने से शर्म करते थे. मालिनी जब भी ठुमरी और कजरी के साथ किसी भी विधा का लोकगीत प्रस्तुत करती हैं, कुछ वक्त के लिए कान कुछ और सुनने को राजी नहीं होते हैं.

11 फरवरी को कन्नौज के डॉक्टर परिवार में जन्मी मालिनी ने लोकगीत की दुनिया में ऐसा मुकाम बनाया कि लोग उनकी दीवाने होते गए. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ETV भारत से न सिर्फ उन्होंने अपने निजी जीवन के बारे में खुलकर बात की बल्कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की सलाह दी.

इस वजह से लोकसंगीत की तरफ बढ़ीं मालिनी
'भगवान के भरोसे मत बैठो क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो' इसी कहावत के साथ उन्होंने कहा कि, 'मुकाम हासिल करने के लिए खुद को ही आगे बढ़ना होगा.' उन्होंने कहा कि, 'इंसान जिन संस्कारों के साथ पलता बढ़ता है, उसी पर चलता रहता है. लेकिन मुझे नहीं पता था लोक कलाकार बनूंगी.' मालिनी संगीत के सफर के बारे में बताती हैं कि, 'मुझे लगा के लोक कला, लोक संस्कृति पर लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं. इसी कारण मैंने लोक संगीत की ओर कदम बढ़ाया.'

ईटीवी भारत रिपोर्ट

संगीत की शुरुआत चिंता से हुई
मालनी कहती हैं कि, 'लोग किसी न किसी उद्देश्य के साथ लोक संगीत में आते हैं. मैंने लोक संगीत की शुरुआत चिंता के साथ शुरू की है.' उन्होंने पहले के जमाने का जिक्र करते हुए कहा कि, 'एक समय ऐसा आया कि ढोल-नगाड़े सब गायब हो गए और पुराने अच्छे गाने की जगह फुहड़ गानों ने ले ली. इस चिंता के साथ मैं इस क्षेत्र में आगे बढ़ी ताकि लोक संगीत को बचाया जा सके.'

संगीत जगत में बहुत है चुनौती: मालिनी
लोक गायिका अवस्थी कहती हैं कि, 'इस संगीत को लेकर मैंने जो बचपन से देखा था, सुना था, वहीं काम लोगों तक पहुंचाना शुरू कर दिया.' उन्होंने संगीत जगत से जुड़े लोगों के लिए कहा कि, 'गाने के बीच चुनौती बहुत आती है, इसलिए सबको बैलेंस करके चलना पड़ता है'. वे कहती हैं कि, 'सोशल मीडिया ने बहुत सहारा दिया है कि आप खुद को एक्सप्रेस कर सकते हैं.'

आलोचना को आशीर्वाद की तरह लें: मालिनी
उन्होंने कहा कि, 'संगीत गहरा समुद्र है, इसमें शॉर्टकट नहीं होता है.' वहीं चुनौतियों को लेकर कहा कि, 'लोग आपकी आलोचना करते हैं, उनकी आलोचना सुन लीजिए. लेकिन उसमें से अपने काम की चीजें निकाल लीजिए. आलोचना को आशीर्वाद की तरह लेना चाहिए.' उन्होंने कहा कि, 'रोकर आंखों से आंसू निकाल लो लेकिन लक्ष्य और सपने आंख से नहीं निकलने चाहिए.'

'स्त्री शक्ति' महिला
उन्होंने आज की स्त्री पर कहा कि, 'स्त्री वो है जो सबके बारे में सोचती है.' साथ ही यह भी कहा कि, 'आज के समय में बच्चे भी चाहते हैं कि उनकी मां के सपने पूरे हों. लेकिन इन सबके बीच एक समस्या भी है जो आज देखने मिलती है. हम मॉर्डन हो गए हैं स्त्री सिर्फ अपने बच्चे और पति के बारे में सोचती है लेकिन 'स्त्री शक्ति' महिला के पास ही इसलिए है, ताकि वे सबके बारे में सोच सके.'

15 साल की उम्र में घटी थी घटना
निर्भया केस में टल रही फांसी पर कहा कि ये दुर्भाग्य पूर्ण है. उन्होंने महिलाओं और युवतियों से अपील करते हुए कहा कि, 'अगर किसी भी व्यक्ति की तरफ से गलत संकेत की संभावना हो रही हो तो तुरंत एक्शन लें'. उन्होंने अपनी बचपन की कहानी बताते हुए कहा कि, '15 साल की उम्र में किसी अज्ञात ने उनका साइकिल का हैंडल रोका था और उन्होंने तुरंत उसके सिर पर घुंघरू से वार कर खुद को सुरक्षित किया.'

8 मार्च : एक शताब्दी से ज्यादा पुरानी हुई महिला दिवस मनाने की परंपरा

मिल चुके हैं ये पुरस्कार-

  • पद्म श्री (2016)
  • कालिदास सम्मान 2014
  • यश भारती (यूपी सरकार) 2006
  • सहारा अवध सम्मान (2003)
  • नारी गौरव 2000
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