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बिहार के मालवीय से महात्मा गांधी को मिला था सहयोग, जानें पूरी कहानी

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Published : Sep 16, 2019, 7:03 AM IST

Updated : Sep 30, 2019, 6:55 PM IST

आजादी के आंदोलन के दौरान गांधीजी ने देश के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया था. जहां-जहां भी बापू जाते थे, वे वहां के लोगों पर अमिट छाप छोड़ जाते थे. वहां के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना घर कर जाती थी. ईटीवी भारत ऐसे ही जगहों से गांधी से जुड़ी कई यादें आपको प्रस्तुत कर रहा है. पेश है आज 31वीं कड़ी.

उमाशंकर बाबू और गांधी की फाइल फोटो

सिवान : भारत जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तब असंख्य लोगों ने देश की आजादी में योगदान दिया. ऐसे ही एक शख्स रहे हैं, बिहार के सिवान जिला निवासी उमाशंकर प्रसाद. उन्होंने महाराजगंज में अपने निजी कोष से स्कूल स्थापित अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की आवाज बुलंद की.

1927-28 में पूरा भारत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लगा रहा था. इसी समय मात्र 28 वर्ष की उम्र में सिवान जिले के महाराजगंज में एक युवा, उमाशंकर प्रसाद भी अंग्रेजों के खिलाफ गुरू की भूमिका में सामने आया.

उमाशंकर प्रसाद ने अपनी निजी भूमि पर निजी कोष से उमाशंकर प्रसाद हाई स्कूल की स्थापना की. उन्होंने युवाओं को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का पाठ पढ़ाया. उमाशंकर प्रसाद ने अपनी बहादुरी और हिम्मत से अंग्रेजों के नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया.

गांधी के सिवान दौरे पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

समाजसेवी जगदीश प्रसाद बताते हैं कि सन 1928 में स्‍वतंत्रता के लिए पूरे देश में महात्‍मा गांधी घूम घूम कर लोगों को जागरुक कर रहे थे. इसी बीच बापू ने सिवान जिले के महाराजगंज में कदम रखा. महात्मा गांधी के पैर महाराजगंज आगमन पर आर्थिक अभाव में स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर न पड़ जाएं.

जगदीश प्रसाद ने बताया कि उन्होंने अपने पास से बापू को चांदी के 1001 रुपए के सिक्‍के भेंट कर कहा कि, 'बापू...देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई में पैसे रुपये की कोई कमी ना हो इसलिए आप मेरी तरफ से यह भेंट स्वीकार कीजिए.'

ये भी पढ़ें: बिहार के श्रीचंद मन्दिर से गांधी का है खास रिश्ता, जानें पूरी कहानी

उमाशंकर प्रसाद के पौत्र प्रमोद रंजन ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध उमाशंकर प्रसाद की बगावत और सेनानियों को आर्थिक मदद देने के कारण अंग्रेजी सरकार ने 1942 में इन्हें देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया. लेकिन जब रगों में देश भक्ति का खून दौड़ रहा हो उसे कौन रोक सकता है.

प्रमोद रंजन ने बताया कि उनके दादा उमाशंकर प्रसाद भूमिगत होकर आंदोलन को तेज गति देने लगे. इसके कारण टॉमी सैनिकों ने उमाशंकर प्रसाद हाई स्कूल में आग लगा दी और उनकी दुकान को लूट लिया.

ये भी पढ़ें: आजादी का एक अहम पड़ाव है पश्चिमी चंपारण, जानें गांधी और भितिहरवा आश्रम की कहानी

प्रमोद रंजन बताते हैं कि आजादी के बाद देशहित में उमाशंकर प्रसाद ने मुआवजा लेने से इंकार कर दिया. नमक आंदोलन, असहयोग आंदोलन, अंग्रेजों भारत छोड़ो सहित कई आंदोलन में उनकी भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता है. उन्होंने बताया कि उनके दादा उमाशंकर प्रसाद 1962 और 1967 में महाराजगंज क्षेत्र से दो बार विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया.

15 अगस्त 1985 ...उमाशंकर बाबू हम सबको छोड़कर चले गए. स्व. उमाशंकर बाबू को आज महाराजगंज का गांधी और मालवीय कहा जाता है.

सिवान : भारत जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तब असंख्य लोगों ने देश की आजादी में योगदान दिया. ऐसे ही एक शख्स रहे हैं, बिहार के सिवान जिला निवासी उमाशंकर प्रसाद. उन्होंने महाराजगंज में अपने निजी कोष से स्कूल स्थापित अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की आवाज बुलंद की.

1927-28 में पूरा भारत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे लगा रहा था. इसी समय मात्र 28 वर्ष की उम्र में सिवान जिले के महाराजगंज में एक युवा, उमाशंकर प्रसाद भी अंग्रेजों के खिलाफ गुरू की भूमिका में सामने आया.

उमाशंकर प्रसाद ने अपनी निजी भूमि पर निजी कोष से उमाशंकर प्रसाद हाई स्कूल की स्थापना की. उन्होंने युवाओं को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का पाठ पढ़ाया. उमाशंकर प्रसाद ने अपनी बहादुरी और हिम्मत से अंग्रेजों के नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया.

गांधी के सिवान दौरे पर ईटीवी भारत की रिपोर्ट

समाजसेवी जगदीश प्रसाद बताते हैं कि सन 1928 में स्‍वतंत्रता के लिए पूरे देश में महात्‍मा गांधी घूम घूम कर लोगों को जागरुक कर रहे थे. इसी बीच बापू ने सिवान जिले के महाराजगंज में कदम रखा. महात्मा गांधी के पैर महाराजगंज आगमन पर आर्थिक अभाव में स्वतंत्रता आंदोलन कमजोर न पड़ जाएं.

जगदीश प्रसाद ने बताया कि उन्होंने अपने पास से बापू को चांदी के 1001 रुपए के सिक्‍के भेंट कर कहा कि, 'बापू...देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ाई में पैसे रुपये की कोई कमी ना हो इसलिए आप मेरी तरफ से यह भेंट स्वीकार कीजिए.'

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उमाशंकर प्रसाद के पौत्र प्रमोद रंजन ने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध उमाशंकर प्रसाद की बगावत और सेनानियों को आर्थिक मदद देने के कारण अंग्रेजी सरकार ने 1942 में इन्हें देखते ही गोली मार देने का आदेश दिया. लेकिन जब रगों में देश भक्ति का खून दौड़ रहा हो उसे कौन रोक सकता है.

प्रमोद रंजन ने बताया कि उनके दादा उमाशंकर प्रसाद भूमिगत होकर आंदोलन को तेज गति देने लगे. इसके कारण टॉमी सैनिकों ने उमाशंकर प्रसाद हाई स्कूल में आग लगा दी और उनकी दुकान को लूट लिया.

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प्रमोद रंजन बताते हैं कि आजादी के बाद देशहित में उमाशंकर प्रसाद ने मुआवजा लेने से इंकार कर दिया. नमक आंदोलन, असहयोग आंदोलन, अंग्रेजों भारत छोड़ो सहित कई आंदोलन में उनकी भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता है. उन्होंने बताया कि उनके दादा उमाशंकर प्रसाद 1962 और 1967 में महाराजगंज क्षेत्र से दो बार विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया.

15 अगस्त 1985 ...उमाशंकर बाबू हम सबको छोड़कर चले गए. स्व. उमाशंकर बाबू को आज महाराजगंज का गांधी और मालवीय कहा जाता है.

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Last Updated : Sep 30, 2019, 6:55 PM IST
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