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यहां का नैसर्गिक सौन्दर्य देख गांधी भी हो गए थे मोहित - indian independence movement

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज दूसरी कड़ी.

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Published : Aug 17, 2019, 7:03 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 6:18 AM IST

बागेश्वर: देवभूमि का नैसर्गिक सौन्दर्य हमेशा से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. उन्हीं से महात्मा गांधी भी एक थे जिन्हें कौसानी की शांत वादियां काफी पसंद आई थी. कौसानी की सुंदरता और शांति ने गांधी जी को काफी प्रभावित किया. बापू ने 1929 में कौसानी के लाल बंगला में ही 2 हफ्ते का समय बिताया था. इसी दौरान, उन्होंने 'अनासक्ति योग' पर एक किताब लिखी थी. गांधी जी के वहां ठहरने से उसे अनासक्ति आश्रम के नाम से जाना जाता है. जहां आश्रम के एक हिस्से में म्यूजियम बना हुआ है.

हिमालय की गोद में बसे कौसानी के कण-कण में सौंदर्य बिखरा हुआ है. जहां दूर-दूर तक फैली मखमली हरियाली और शांत वादियां लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींचती हैं. सघन वन और प्रकृति की शोख अदाएं हर किसी को यहां दोबारा आने को लालायित करती हैं.

देवभूमि उत्तराखंड में गांधी जी

दुनिया भर में अहिंसा के पैरोकार रहे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत को आजादी दिलाने में बेहद अहम भूमिका निभाई. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कौसानी की खूबसूरती देखकर यहां 14 दिन तक रुके थे. इस दरम्यान उन्हें देव तुल्य मानी जानी वाली हिमालय की श्रृंखलाओं से नजदीकी से रूबरू होने का मौका मिला था. साथ ही उन्होंने यहीं अनासक्ति योग पुस्तक लिखी. जहां आज ही देश ही नहीं विदेशी सैलानियों का भी तांता लगा रहता है.
बताते हैं कि अपनी यात्रा के दौरान महात्मा गांधी को कौसानी के प्राकृतिक सौन्दर्य ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने इसे भारत का स्विटजरलैंड कहा था. आज भी दिलकश नजारों के चलते ही इस जगह को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है.

वहीं जिस बंगले में महात्मा गांधी रूके थे उसे स्मारक निधि को सौंप दिया गया. स्मारक निधि ने इसे गांधी की विश्राम स्थली के रूप में चिह्नित करते हुए इसे गांधी अनासक्ति आश्रम का नाम दिया.
जिसे गांधी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है. जहां बापू के जीवन से जुड़ी वस्तुओं को सहेज कर रखा गया है. वहीं कौसानी घूमने आने वाले सैलानी इस संग्रहालय में जाना नहीं भूलते हैं. जहां उन्हें बापू से जुड़ी वस्तुओं को देखने का मौका मिलता है.

बागेश्वर: देवभूमि का नैसर्गिक सौन्दर्य हमेशा से ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है. उन्हीं से महात्मा गांधी भी एक थे जिन्हें कौसानी की शांत वादियां काफी पसंद आई थी. कौसानी की सुंदरता और शांति ने गांधी जी को काफी प्रभावित किया. बापू ने 1929 में कौसानी के लाल बंगला में ही 2 हफ्ते का समय बिताया था. इसी दौरान, उन्होंने 'अनासक्ति योग' पर एक किताब लिखी थी. गांधी जी के वहां ठहरने से उसे अनासक्ति आश्रम के नाम से जाना जाता है. जहां आश्रम के एक हिस्से में म्यूजियम बना हुआ है.

हिमालय की गोद में बसे कौसानी के कण-कण में सौंदर्य बिखरा हुआ है. जहां दूर-दूर तक फैली मखमली हरियाली और शांत वादियां लोगों को बरबस ही अपनी ओर खींचती हैं. सघन वन और प्रकृति की शोख अदाएं हर किसी को यहां दोबारा आने को लालायित करती हैं.

देवभूमि उत्तराखंड में गांधी जी

दुनिया भर में अहिंसा के पैरोकार रहे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भारत को आजादी दिलाने में बेहद अहम भूमिका निभाई. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कौसानी की खूबसूरती देखकर यहां 14 दिन तक रुके थे. इस दरम्यान उन्हें देव तुल्य मानी जानी वाली हिमालय की श्रृंखलाओं से नजदीकी से रूबरू होने का मौका मिला था. साथ ही उन्होंने यहीं अनासक्ति योग पुस्तक लिखी. जहां आज ही देश ही नहीं विदेशी सैलानियों का भी तांता लगा रहता है.
बताते हैं कि अपनी यात्रा के दौरान महात्मा गांधी को कौसानी के प्राकृतिक सौन्दर्य ने इतना प्रभावित किया कि उन्होंने इसे भारत का स्विटजरलैंड कहा था. आज भी दिलकश नजारों के चलते ही इस जगह को भारत का स्विट्जरलैंड कहा जाता है.

वहीं जिस बंगले में महात्मा गांधी रूके थे उसे स्मारक निधि को सौंप दिया गया. स्मारक निधि ने इसे गांधी की विश्राम स्थली के रूप में चिह्नित करते हुए इसे गांधी अनासक्ति आश्रम का नाम दिया.
जिसे गांधी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है. जहां बापू के जीवन से जुड़ी वस्तुओं को सहेज कर रखा गया है. वहीं कौसानी घूमने आने वाले सैलानी इस संग्रहालय में जाना नहीं भूलते हैं. जहां उन्हें बापू से जुड़ी वस्तुओं को देखने का मौका मिलता है.

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Last Updated : Sep 27, 2019, 6:18 AM IST
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