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क्या यूपी चुनाव के बाद 'हाथ' छोड़ 'उड़ान' भरने की तैयारी में हैं पायलट ? - punjab congress

पंजाब में सिद्धू और कैप्टन की लड़ाई का निपटारा हो चुका है. सिद्धू को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है. अब नजरें राजस्थान पर हैं जहां सचिन पायलट पिछले एक साल से आलाकमान के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. सवाल है कि आलाकमान किस बात का इंतजार कर रहा है और क्या पायलट को भी 5 राज्यों के चुनावी नतीजों का इंतज़ार है.

पायलट
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Published : Jul 22, 2021, 8:16 PM IST

हैदराबाद: पंजाब कांग्रेस की दिल्ली दौड़ और मैराथन बैठकों के बाद आखिरकार कांग्रेस आलाकमान ने सिद्दू बनाम कैप्टन की जंग का फैसला कर दिया. पेचीदा ही सही लेकिन पंजाब कांग्रेस में उठ रहे कांग्रेस के भंवर को दबाने के लिए रास्ता निकाल लिया है. अब सिद्धू पंजाब कांग्रेस के कैप्टन हैं और उनके साथ 4 कार्यकारी अध्यक्षों की टोली भी है.

लेकिन सवाल है कि राजस्थान में कांग्रेस के कुनबे में ही चल रही एक और पायलट बनाम गहलोत की जंग कब खत्म होगी. कब कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में भी पंजाब की तर्ज पर कोई पेचीदा ही सही बीच का रास्ता निकालेगा ? हालांकि बीते साल चरम पर पहुंची राजस्थान कांग्रेस की कलह गाथा का क्लाइमेक्स फिलहाल नजर नहीं आ रहा है.

राजस्थान में चुनाव नहीं तो हल नहीं !

पंजाब विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. वहां भी सरकार कांग्रेस की है और पार्टी जीत दोहराने का सपना देख रही है इसलिये कैप्टन बनाम सिद्धू की जंग का हल वक्त रहते निकाल दिया गया. जानकार मानते हैं कि राजस्थान में चुनावी समर बहुत दूर है, इसलिये पायलट और गहलोत की कलह पार्टी आलाकमान की प्राथमिकताओं में बहुत नीचे है. अगले साल होने वाले 5 राज्यों की चुनाव को लेकर आलाकमान ज्यादा फिक्रमंद होगा.

नवजोत सिद्धू और सचिन पायलट
नवजोत सिद्धू और सचिन पायलट

सिद्धू के 5 साल और पायलट के 17 साल

नवजोत सिद्धू ने साल 2017 में बीजेपी का कमल छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे. जबकि सचिन पायलट ने 26 साल की उम्र में साल 2004 में कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. यानि सिद्धू कांग्रेस में 5 साल से हैं और पायलट 17 साल हैं. सिद्धू और कैप्टन के मुकाबले पायलट और गहलोत का झगड़ा पुराना है लेकिन इसका हल निकलता नहीं दिख रहा है.

नवजोत सिद्धू भी चंद विधायकों के साथ कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोलकर दिल्ली पहुंचे थे और पिछले साल पायलट ने भी करीब 20 विधायकों के साथ गहलोत के खिलाफ मोर्च खोला. पार्टी आलाकमान ने दोनों बार मान मनौव्वल का दौर अपनाया लेकिन सिद्धू को पंजाब कांग्रेस की कप्तानी मिली और पायलट खाली हाथ रह गए. ऐसे में सवाल पार्टी आलाकमान पर उठना लाजमी है. जो पंजाब से लेकर राजस्थान और हरियाणा से लेकर हिमाचल तक पार्टी में कलह को बस दिल्ली से देखता रहता है लेकिन उसका हल नहीं निकालता.

5 राज्यों के नतीजों के बाद भरेंगे सिंधिया वाली 'उड़ान' ?

बीजेपी से लेकर कांग्रेस समेत तमाम सियासी दलों का ध्यान फिलहाल आने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों पर है. खासकर यूपी के लेकर सियासी दलों ने अपनी कमर कस ली है. क्या सचिन पायलट भी 5 राज्यों के चुनावी नतीजों का इंतज़ार कर रहे हैं ? क्या 5 राज्यों के चुनावी नतीजों की उड़ान के बाद पायलट अपनी 'उड़ान' तय करेंगे ?

क्या करेंगे सचिन पायलट ?
क्या करेंगे सचिन पायलट ?

दरअसल बीते साल कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया और इस साल जितिन प्रसाद 'हाथ' छोड़कर कमल थाम चुके हैं. सिंधिया, जितिन और पायलट तीनों ही राहुल गांधी के खास रहे हैं लेकिन कांग्रेस में अनदेखी का हवाला देकर साथ छोड़ चुके हैं. सिंधिया तो अपने बलबूते कांग्रेस की कमलनाथ सरकार तक गिरवा चुके हैं. उसके बाद से ही पायलट के कांग्रेस छोड़ने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म रहा है.

सचिन पायलट भले सार्वजनिक मंचों से कांग्रेस का हाथ छोड़ने की बात से किनारा करते रहे हों. लेकिन लंबे वक्त से अनदेखी झेल रहे पायलट के मन में क्या है कोई नहीं जानता. सियासी जानकार मानते हैं कि अगर कांग्रेस आलाकमान पायलट को लेकर कोई फैसला नहीं करते और 5 राज्यों के चुनावी नतीजों का रुझान बीजेपी की तरफ जाता है तो पायलट भी अपने भविष्य की उड़ान तय कर सकते हैं.

गहलोत बनाम पायलट
गहलोत बनाम पायलट

गलहोत बनाम पायलट की कलह गाथा

- 2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. मुख्यमंत्री के दो दावेदारों गहलोत और पायलट थे. मैराथन बैठकों और मान-मनौव्वल के दौर के बाद सत्ता का ताज गहलोत के सिर सजा और पायलट डिप्टी सीएम बनाए गए.

- बीते साल सचिन पायलट की अगुवाई में करीब 20 विधायकों ने सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया. पायलट समर्थित विधायक होटल के कमरों में बंद हो गए.

- सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों तक मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान की कांग्रेस सरकार गिरने की बातें होने लगी थी.

- कांग्रेस आलाकमान के मान मनौव्वल के बाद सचिन मान गए लेकिन इस पूरी सियासी जंग में नुकसान पायलट का ही हुआ.

- गहलोत ने पायलट की बगावत का फायदा उठाया और आलाकमान ने भी बगावत के दौरान पायलट के खिलाफ एक्शन लिया. पायलट की डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गई, और गहलोत कैबिनेट से करीबी विधायकों की छुट्टी बी हो गई.

- पायलट के लिए सांत्वना सिर्फ इतनी थी कि गहलोत बनाम पायलट की इस वर्चस्व की जंग में सुलह के लिए 3 सदस्यों की कमेटी गठित कर दी गई.

- पायलट की कुछ मांगे थी जो कमेटी के सामने रखी गई. लेकिन करीब एक साल बाद भी उन मांगों पर कोई बात नहीं बनी. इस दौरान कमेटी की अगुवाई करने वाले अहमद पटेल का निधन हो चुका है.

- इस दौरान 5 राज्यों के चुनाव हो चुके हैं, सिंधिया के बाद जितिन प्रसाद पार्टी छोड़ चुके हैं और पंजाब में सिद्धू और कैप्टन का झगड़ा भी सुलझ चुका है लेकिन पायलट का कुछ नहीं हुआ.

सचिन पायलट की मांग क्या है ?

दरअसल सचिन पायलट की मंशा तो ये है कि उनके और गहलोत के बीच हुए सीज़फायर से पहले की स्थिति जस की तस हो जाए. जिसमें वो डिप्टी सीएम भी थे और प्रदेश अध्यक्ष भी, उनके गुट के विधायक मंत्रिमंडल भी थे. लेकिन वो भी जानते हैं कि पिछले साल जो सियासी बवंडर उनकी वजह से राजस्थान में आया था ये मुमकिन नहीं है. इसलिये वो अपनी नहीं अपनों की बात कर रहे हैं. पायलट चाहते हैं कि उनके करीबी विधायक और नेताओं को कैबिनेट विस्तार से लेकर राजानीतिक नियुक्तियों में जगह मिले. उनके विधायकों के क्षेत्र में विकास कार्य हों और पार्टी से लेकर बोर्ड में भी उनके विधायकों और कार्यकर्ताओं की नियुक्ति हो.

ये भी पढ़ें: पायलट का इशारों में गहलोत पर हमला, कहा- सरकार तो बना लेते हैं, पर दोबारा नहीं आ पाते

हैदराबाद: पंजाब कांग्रेस की दिल्ली दौड़ और मैराथन बैठकों के बाद आखिरकार कांग्रेस आलाकमान ने सिद्दू बनाम कैप्टन की जंग का फैसला कर दिया. पेचीदा ही सही लेकिन पंजाब कांग्रेस में उठ रहे कांग्रेस के भंवर को दबाने के लिए रास्ता निकाल लिया है. अब सिद्धू पंजाब कांग्रेस के कैप्टन हैं और उनके साथ 4 कार्यकारी अध्यक्षों की टोली भी है.

लेकिन सवाल है कि राजस्थान में कांग्रेस के कुनबे में ही चल रही एक और पायलट बनाम गहलोत की जंग कब खत्म होगी. कब कांग्रेस आलाकमान राजस्थान में भी पंजाब की तर्ज पर कोई पेचीदा ही सही बीच का रास्ता निकालेगा ? हालांकि बीते साल चरम पर पहुंची राजस्थान कांग्रेस की कलह गाथा का क्लाइमेक्स फिलहाल नजर नहीं आ रहा है.

राजस्थान में चुनाव नहीं तो हल नहीं !

पंजाब विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. वहां भी सरकार कांग्रेस की है और पार्टी जीत दोहराने का सपना देख रही है इसलिये कैप्टन बनाम सिद्धू की जंग का हल वक्त रहते निकाल दिया गया. जानकार मानते हैं कि राजस्थान में चुनावी समर बहुत दूर है, इसलिये पायलट और गहलोत की कलह पार्टी आलाकमान की प्राथमिकताओं में बहुत नीचे है. अगले साल होने वाले 5 राज्यों की चुनाव को लेकर आलाकमान ज्यादा फिक्रमंद होगा.

नवजोत सिद्धू और सचिन पायलट
नवजोत सिद्धू और सचिन पायलट

सिद्धू के 5 साल और पायलट के 17 साल

नवजोत सिद्धू ने साल 2017 में बीजेपी का कमल छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे. जबकि सचिन पायलट ने 26 साल की उम्र में साल 2004 में कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. यानि सिद्धू कांग्रेस में 5 साल से हैं और पायलट 17 साल हैं. सिद्धू और कैप्टन के मुकाबले पायलट और गहलोत का झगड़ा पुराना है लेकिन इसका हल निकलता नहीं दिख रहा है.

नवजोत सिद्धू भी चंद विधायकों के साथ कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोलकर दिल्ली पहुंचे थे और पिछले साल पायलट ने भी करीब 20 विधायकों के साथ गहलोत के खिलाफ मोर्च खोला. पार्टी आलाकमान ने दोनों बार मान मनौव्वल का दौर अपनाया लेकिन सिद्धू को पंजाब कांग्रेस की कप्तानी मिली और पायलट खाली हाथ रह गए. ऐसे में सवाल पार्टी आलाकमान पर उठना लाजमी है. जो पंजाब से लेकर राजस्थान और हरियाणा से लेकर हिमाचल तक पार्टी में कलह को बस दिल्ली से देखता रहता है लेकिन उसका हल नहीं निकालता.

5 राज्यों के नतीजों के बाद भरेंगे सिंधिया वाली 'उड़ान' ?

बीजेपी से लेकर कांग्रेस समेत तमाम सियासी दलों का ध्यान फिलहाल आने वाले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों पर है. खासकर यूपी के लेकर सियासी दलों ने अपनी कमर कस ली है. क्या सचिन पायलट भी 5 राज्यों के चुनावी नतीजों का इंतज़ार कर रहे हैं ? क्या 5 राज्यों के चुनावी नतीजों की उड़ान के बाद पायलट अपनी 'उड़ान' तय करेंगे ?

क्या करेंगे सचिन पायलट ?
क्या करेंगे सचिन पायलट ?

दरअसल बीते साल कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया और इस साल जितिन प्रसाद 'हाथ' छोड़कर कमल थाम चुके हैं. सिंधिया, जितिन और पायलट तीनों ही राहुल गांधी के खास रहे हैं लेकिन कांग्रेस में अनदेखी का हवाला देकर साथ छोड़ चुके हैं. सिंधिया तो अपने बलबूते कांग्रेस की कमलनाथ सरकार तक गिरवा चुके हैं. उसके बाद से ही पायलट के कांग्रेस छोड़ने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म रहा है.

सचिन पायलट भले सार्वजनिक मंचों से कांग्रेस का हाथ छोड़ने की बात से किनारा करते रहे हों. लेकिन लंबे वक्त से अनदेखी झेल रहे पायलट के मन में क्या है कोई नहीं जानता. सियासी जानकार मानते हैं कि अगर कांग्रेस आलाकमान पायलट को लेकर कोई फैसला नहीं करते और 5 राज्यों के चुनावी नतीजों का रुझान बीजेपी की तरफ जाता है तो पायलट भी अपने भविष्य की उड़ान तय कर सकते हैं.

गहलोत बनाम पायलट
गहलोत बनाम पायलट

गलहोत बनाम पायलट की कलह गाथा

- 2018 में हुए राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई. मुख्यमंत्री के दो दावेदारों गहलोत और पायलट थे. मैराथन बैठकों और मान-मनौव्वल के दौर के बाद सत्ता का ताज गहलोत के सिर सजा और पायलट डिप्टी सीएम बनाए गए.

- बीते साल सचिन पायलट की अगुवाई में करीब 20 विधायकों ने सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया. पायलट समर्थित विधायक होटल के कमरों में बंद हो गए.

- सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों तक मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान की कांग्रेस सरकार गिरने की बातें होने लगी थी.

- कांग्रेस आलाकमान के मान मनौव्वल के बाद सचिन मान गए लेकिन इस पूरी सियासी जंग में नुकसान पायलट का ही हुआ.

- गहलोत ने पायलट की बगावत का फायदा उठाया और आलाकमान ने भी बगावत के दौरान पायलट के खिलाफ एक्शन लिया. पायलट की डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गई, और गहलोत कैबिनेट से करीबी विधायकों की छुट्टी बी हो गई.

- पायलट के लिए सांत्वना सिर्फ इतनी थी कि गहलोत बनाम पायलट की इस वर्चस्व की जंग में सुलह के लिए 3 सदस्यों की कमेटी गठित कर दी गई.

- पायलट की कुछ मांगे थी जो कमेटी के सामने रखी गई. लेकिन करीब एक साल बाद भी उन मांगों पर कोई बात नहीं बनी. इस दौरान कमेटी की अगुवाई करने वाले अहमद पटेल का निधन हो चुका है.

- इस दौरान 5 राज्यों के चुनाव हो चुके हैं, सिंधिया के बाद जितिन प्रसाद पार्टी छोड़ चुके हैं और पंजाब में सिद्धू और कैप्टन का झगड़ा भी सुलझ चुका है लेकिन पायलट का कुछ नहीं हुआ.

सचिन पायलट की मांग क्या है ?

दरअसल सचिन पायलट की मंशा तो ये है कि उनके और गहलोत के बीच हुए सीज़फायर से पहले की स्थिति जस की तस हो जाए. जिसमें वो डिप्टी सीएम भी थे और प्रदेश अध्यक्ष भी, उनके गुट के विधायक मंत्रिमंडल भी थे. लेकिन वो भी जानते हैं कि पिछले साल जो सियासी बवंडर उनकी वजह से राजस्थान में आया था ये मुमकिन नहीं है. इसलिये वो अपनी नहीं अपनों की बात कर रहे हैं. पायलट चाहते हैं कि उनके करीबी विधायक और नेताओं को कैबिनेट विस्तार से लेकर राजानीतिक नियुक्तियों में जगह मिले. उनके विधायकों के क्षेत्र में विकास कार्य हों और पार्टी से लेकर बोर्ड में भी उनके विधायकों और कार्यकर्ताओं की नियुक्ति हो.

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