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नवरात्रि स्पेशल: बड़ा प्राचीन है परमारकालीन मंगला देवी मंदिर, सिर्फ नवरात्रि पर दर्शन के लिए खुलते हैं पट - परमारकालीन मंगला देवी मंदिर विदिशा

विदिशा के कागपुर कस्बे में एक ऐसा प्राचीन देवी मंदिर है, जो परमारकालीन विरासत का सबसे बड़ा उदाहरण है. इस मंदिर के पट सिर्फ नवरात्रि में ही खुलते हैं. माना जाता है कि परमारकालीन मंगलादेवी मंदिर में मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है.

मंगला देवी मंदिर
मंगला देवी मंदिर
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Published : Oct 14, 2021, 10:09 PM IST

विदिशा। जिले के कागपुर कस्बे में एक ऐसा प्राचीन देवी मंदिर है, जो परमारकालीन विरासत का सबसे बड़ा उदाहरण है. इस प्राचीन मंदिर को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं. यहां के मंगला देवी मंदिर, अठखंबी और खेड़ापति माता मंदिर के स्मारक दर्शनीय होने के साथ-साथ शिल्प के अद्भुद नमूने भी हैं. खेड़ापति मंदिर तो कागपुर के आसपास की कई प्रतिमाओं को एकत्रित कर दिए जाने से एक परमारकालीन देवालय के रूप में नजर आता है.

मंगला देवी मंदिर ऊंचा और खंडित है, लेकिन इसके मुख्य द्वार के दोनों ओर अत्यंत कलात्मक प्रतिमाओं को उत्कीर्ण किया गया है. मंदिर के दोनों ओर नाग कन्याओं की प्रतिमाएं हैं. पास ही बारहखंबों पर टिका छत वाला एक मंडप भी है. ऐसे माना जाता है कि पूर्व में मंदिर में होने वाले अनुष्ठानों के वक्त इस बारहखंबी मंडप का उपयोग होता होगा.

सिर्फ नवरात्रि पर दर्शन के लिए खुलते हैं पट
सिर्फ नवरात्रि पर दर्शन के लिए खुलते हैं पट

आस्था का केंद्र है खेड़ापति मंदिर

गांव के बीचो-बीच खेड़ापति माता का मंदिर अभी भी ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है. माना जाता है कि 10वी-11वीं सदी का यह परमारकालीन मंदिर देवी का था, जो ध्वस्त होने के बाद क्षेत्र के लोगों द्वारा एक बार फिर बनवाया गया होगा. यह मंदिर अभी भी शिखर विहीन है. गर्भग्रह में अभी भी खेड़ापति माता की प्रतिमा है, जो अब सिंदूर पूजित है. यहां ग्रामीण उत्सव, त्यौहारों पर पूजा करने आते हैं. खेड़ापति की मूल प्रतिमा के ठीक पीछे वाले हिस्से में एक पाषाण की छोटी लेकिन सुंदर प्रतिमा मौजूद है. देवी की यह प्रतिमा दुर्गा और पार्वती के रूप को दर्शाती है.

प्रतिमा के एक ओर सिंह तो दूसरी ओर बैल दिखाई देता है. देवी के एक हाथ में कमंडल भी मौजूद है. मंदिर परिसर काफी बड़ा है और इसमें परमारकालीन ब्रम्हा, शिव-पार्वती, विष्णु और चंवरधारिणी सहित अनेक प्रतिमाएं मौजूद हैं. लेकिन यह धरोहर देखरेख के अभाव में नष्ट हो रही है.

देखरेख के आभाव से जूझ रहा मंदिर
देखरेख के आभाव से जूझ रहा मंदिर

Dussehra Special: सभी बुराईयों को जला दीजिए, लेकिन अपना लीजिए रावण की ये 7 अच्छाईयां

देखरेख के आभाव से जूझ रहा मंदिर

कागपुर में रहने वाले रामदयाल प्रजापति ने बताया, 'यह मंदिर हजारों साल पुराना है, हम इसे बचपन से ही ऐसा देखते आ रहे हैं, लेकिन दिनों दिन यह मंदिर टूट फूट रहा है. यहां काफी लोग दर्शन करने आते हैं, लेकिन बाहर के लोग यहां अतिक्रमण और गंदगी के कारण नहीं आ पाते. शासन प्रशासन को इस मंदिर की देखरेख कर यहां से अतिक्रमण हटाना चाहिए ताकि लोग सड़क से ही मंदिर देखकर रुके और साफ-सफाई भी होना चाहिए'.

श्रद्धालू

कानपुर निवासी, शुभम यादव का कहना है कि यह मंदिर 10वीं सदी का है. हमारे बुजुर्ग हमें बताते थे कि पहले यह ध्वस्त हो गया था, इसके बाद यह दोबारा से बनाया गया है. हम बचपन से मंदिर को ऐसी स्थिति में देखते आ रहे हैं, नवरात्रि में हम लोग यहां पर पूजन करते हैं और साल भर में यहां पूजन नहीं होती. नवरात्रि में ही यह मंदिर खुलता है.

विदिशा। जिले के कागपुर कस्बे में एक ऐसा प्राचीन देवी मंदिर है, जो परमारकालीन विरासत का सबसे बड़ा उदाहरण है. इस प्राचीन मंदिर को देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं. यहां के मंगला देवी मंदिर, अठखंबी और खेड़ापति माता मंदिर के स्मारक दर्शनीय होने के साथ-साथ शिल्प के अद्भुद नमूने भी हैं. खेड़ापति मंदिर तो कागपुर के आसपास की कई प्रतिमाओं को एकत्रित कर दिए जाने से एक परमारकालीन देवालय के रूप में नजर आता है.

मंगला देवी मंदिर ऊंचा और खंडित है, लेकिन इसके मुख्य द्वार के दोनों ओर अत्यंत कलात्मक प्रतिमाओं को उत्कीर्ण किया गया है. मंदिर के दोनों ओर नाग कन्याओं की प्रतिमाएं हैं. पास ही बारहखंबों पर टिका छत वाला एक मंडप भी है. ऐसे माना जाता है कि पूर्व में मंदिर में होने वाले अनुष्ठानों के वक्त इस बारहखंबी मंडप का उपयोग होता होगा.

सिर्फ नवरात्रि पर दर्शन के लिए खुलते हैं पट
सिर्फ नवरात्रि पर दर्शन के लिए खुलते हैं पट

आस्था का केंद्र है खेड़ापति मंदिर

गांव के बीचो-बीच खेड़ापति माता का मंदिर अभी भी ग्रामीणों की आस्था का केंद्र है. माना जाता है कि 10वी-11वीं सदी का यह परमारकालीन मंदिर देवी का था, जो ध्वस्त होने के बाद क्षेत्र के लोगों द्वारा एक बार फिर बनवाया गया होगा. यह मंदिर अभी भी शिखर विहीन है. गर्भग्रह में अभी भी खेड़ापति माता की प्रतिमा है, जो अब सिंदूर पूजित है. यहां ग्रामीण उत्सव, त्यौहारों पर पूजा करने आते हैं. खेड़ापति की मूल प्रतिमा के ठीक पीछे वाले हिस्से में एक पाषाण की छोटी लेकिन सुंदर प्रतिमा मौजूद है. देवी की यह प्रतिमा दुर्गा और पार्वती के रूप को दर्शाती है.

प्रतिमा के एक ओर सिंह तो दूसरी ओर बैल दिखाई देता है. देवी के एक हाथ में कमंडल भी मौजूद है. मंदिर परिसर काफी बड़ा है और इसमें परमारकालीन ब्रम्हा, शिव-पार्वती, विष्णु और चंवरधारिणी सहित अनेक प्रतिमाएं मौजूद हैं. लेकिन यह धरोहर देखरेख के अभाव में नष्ट हो रही है.

देखरेख के आभाव से जूझ रहा मंदिर
देखरेख के आभाव से जूझ रहा मंदिर

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देखरेख के आभाव से जूझ रहा मंदिर

कागपुर में रहने वाले रामदयाल प्रजापति ने बताया, 'यह मंदिर हजारों साल पुराना है, हम इसे बचपन से ही ऐसा देखते आ रहे हैं, लेकिन दिनों दिन यह मंदिर टूट फूट रहा है. यहां काफी लोग दर्शन करने आते हैं, लेकिन बाहर के लोग यहां अतिक्रमण और गंदगी के कारण नहीं आ पाते. शासन प्रशासन को इस मंदिर की देखरेख कर यहां से अतिक्रमण हटाना चाहिए ताकि लोग सड़क से ही मंदिर देखकर रुके और साफ-सफाई भी होना चाहिए'.

श्रद्धालू

कानपुर निवासी, शुभम यादव का कहना है कि यह मंदिर 10वीं सदी का है. हमारे बुजुर्ग हमें बताते थे कि पहले यह ध्वस्त हो गया था, इसके बाद यह दोबारा से बनाया गया है. हम बचपन से मंदिर को ऐसी स्थिति में देखते आ रहे हैं, नवरात्रि में हम लोग यहां पर पूजन करते हैं और साल भर में यहां पूजन नहीं होती. नवरात्रि में ही यह मंदिर खुलता है.

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