विदिशा/सिंगरौली। विदिशा के सम्राट अशोक टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट (एसएटीआई) इंजीनियरिंग कॉलेज के पिछड़ा वर्ग के छात्र-छात्राओं ने कॉलेज गेट पर जबरदस्त प्रदर्शन कर चक्काजाम कर दिया. घटना की जानकारी लगते ही फौरन सिविल थाना पुलिस, अमला तहसीलदार सरोज अग्निवंशी सहित अनेक आला अधिकारी धरनास्थल पर पहुंचे. प्रदर्शनकारी स्टूडेंट्स का कहना है कि पिछले 2 सालों से उनकी छात्रवृत्ति नहींं आई है. जब आई तो पता चला कि 65 हजार रुपए प्रत्येक छात्र-छात्राओं के हिसाब से आने थे, लेकिन शासन स्तर से उन्हें मात्र 28 हजार छात्रवृत्ति ही प्रदान करने की जानकारी मिली. इससे सारे छात्र-छात्राएं आक्रोशित हो गए. उन्होंने कॉलेज गेट के सामने जाम लगा दिया.
बड़ी मुश्किल से शांत हुए स्टूडेंट्स : कॉलेज के गेट के बाहर ओबीसी छात्र-छात्राओं द्वारा धरना प्रदर्शन करते हुए गेट पर जाम लगा दिया गया, जिससे कोई अंदर और बाहर नहीं जा सकता था. अधिकारियों ने छात्र-छात्राओं को समझाने का प्रयास किया. छात्र-छात्राओं का कहना है कि 2 सालों से उनकी छात्रवृत्ति नहीं आई है. जो छात्रवृत्ति आना शुरू हुई है, वह बहुत कम है. इससे उनकी पढ़ाई बाधित हो रही है और आर्थिक बोझ भी उनके परिवार पर बढ़ रहा है. स्टूडेंड्स विदिशा-सागर मार्ग पर धरने पर बैठ गए. आनन-फानन में पहुंचे आला अधिकारियों ने उन्हें समझाइश दी. प्रशासन ने प्रदर्शनकारी छात्र छात्राओं के 5 सदस्यीय दल को सांसद से मिलवाने की बात रखी, तब कहीं जाकर चक्का जाम समाप्त किया गया. धरना प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं का कहना है कि एडमिशन के दौरान छात्रों को कहीं ज्यादा छात्रवृत्ति बताई गई थी. एक छात्र ने बताया कि फाइनल ईयर के विद्यार्थियों को पूरी छात्रवृत्ति आ रही है. जबकि फर्स्ट ईयर और सेकंड ईयर के विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति बहुत कम कर दी है.
सिंगरौली में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का धरना : सिंगरौली जिले के कलेक्टर कार्यालय के बाहर 300 से ज्यादा आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन कर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता लंबे समय से अपना मानदेय बढ़ाने के लिए सरकार से संघर्ष करती नजर आ रही हैं. लेकिन उनकी सुनवाई नही हो रही है. इसी के चलते नाराज कार्यकर्ताओं ने सोमवार से 6 दिवसीय तालाबंदी हड़ताल करने का निर्णय लिया है. आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का कहना है कि 11 सूत्रीय मांगों को लेकर वे सरकार से लंबे समय से गुहार लगा रही थीं, लेकिन सरकार ने जब उनकी बात नहीं सुनी तो उन्हें हड़ताल पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.