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दो बार विदिशा आए थे भगवान श्रीराम, बेतवा के तट पर किया था पिता का श्राद्ध - विदिशा का त्रिवेणी घाट

विदिशा में रामलला के चरण युगों पहले पड़ चुके थे. उनका यहां से एक खास नाता रहा है और वो धरती लोक में रहते हुए दो बार विदिशा आ चुके हैं, जानें कब और क्यों...

Lord Rama relation with Vidisha
दो बार विदिशा आए थे राम
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Published : Aug 5, 2020, 9:47 PM IST

विदिशा। आज अयोध्या में भगवान राम की मंदिर के लिए आधार शिला रखी गई, इस आयोजन की खुशी विदिशा में भी कम देखने को नहीं मिली, यहां रामशिला पूजन के मौके पर काफी उल्लास और खुशी का माहौल रहा. आइए राम जन्मभूमि पूजन के पावन अवसर पर जानते हैं श्री राम का विदिशा से क्या है नाता...

दो बार विदिशा आए थे राम

वनवास के दौरान यहां से गुजरे थे राम
राम की स्मृतियां विदिशा में आज भी जिंदा हैं, पहली बार वनवास के दौरान माता सीता की खोज करते हुए राम विदिशा से गुजरे थे, जहां उन्होंने बेतवा के तट पर पिता का श्राद्ध भी किया था, जो आज चरण तीरथ कुंड के नाम से जाना जाता है, उसी याद में त्रिवेणी घाट पर राम और लक्ष्मण का मंदिर है, जहां राम और लक्ष्मण बनवासी भेष में विराजमान हैं. इस स्थान पर प्रभु राम के चरण कमल आज भी अंकित हैं.

Lord Rama relation with Vidisha
राम तीर्थ

शत्रु घाटी के राज्य अभिषेक में आए थे श्रीराम
दूसरी बार राजा राम अपने अनुज शत्रुहन के पुत्र शत्रु घाटी को विदिशा का राजा बनाने के लिए यहां आए थे, जहां उन्होंने शत्रु घाटी का राज्य अभिषेक भी कराया था. विदिशा के रामस्वरूप शर्मा बताते हैं चरण तीरथ मंदिर के पास एक विशाल कुंड बना हुआ है, उस कुंड की मान्यता है इंसान किसी भी बीमारी से ग्रस्त हो यदि इस कुंड में एक बार स्नान कर लेता है तो उसकी सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं.

Lord Rama relation with Vidisha
प्रभू राम के चरण कमल

आधारशिला रखे जाने पर गर्व
नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश टंडन अयोध्या से विदिशा का एक अनूठा रिश्ता बताते हैं. उन्होंने बताया भगवान राम विदिशा से वनवास के दौरान निकले थे, आज तक उनके चरणों के निशान बेतवा घाट पर अंकित हैं, उस घाट को चरण तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. मुकेश टंडन ने कहा की ये गर्व का मौका है कि भगवान राम के मंदिर की आधारशिला रखी गई है.

अयोध्या की तर्ज पर बना कनक भवन
विदिशा 65 वर्ष पहले अयोध्या के कनक भवन की तर्ज पर राम सीता के प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी. सनी घाट के सामने मंगलदास के टीले पर एक कनक भवन बना है, जहां राम और सीता विराजमान हैं. मान्यता है कि राम वनवास के दौरान पिता का श्राध करके आगे की यात्रा के लिए पद्मेश्वर घाट से बेतवा पार किये थे, जिसके बाद चलकर एक गुफा में उन्होंने विश्राम किया था, जिसे आज राम छज्जा की गुफा के नाम से जाना जाता है.

विदिशा। आज अयोध्या में भगवान राम की मंदिर के लिए आधार शिला रखी गई, इस आयोजन की खुशी विदिशा में भी कम देखने को नहीं मिली, यहां रामशिला पूजन के मौके पर काफी उल्लास और खुशी का माहौल रहा. आइए राम जन्मभूमि पूजन के पावन अवसर पर जानते हैं श्री राम का विदिशा से क्या है नाता...

दो बार विदिशा आए थे राम

वनवास के दौरान यहां से गुजरे थे राम
राम की स्मृतियां विदिशा में आज भी जिंदा हैं, पहली बार वनवास के दौरान माता सीता की खोज करते हुए राम विदिशा से गुजरे थे, जहां उन्होंने बेतवा के तट पर पिता का श्राद्ध भी किया था, जो आज चरण तीरथ कुंड के नाम से जाना जाता है, उसी याद में त्रिवेणी घाट पर राम और लक्ष्मण का मंदिर है, जहां राम और लक्ष्मण बनवासी भेष में विराजमान हैं. इस स्थान पर प्रभु राम के चरण कमल आज भी अंकित हैं.

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राम तीर्थ

शत्रु घाटी के राज्य अभिषेक में आए थे श्रीराम
दूसरी बार राजा राम अपने अनुज शत्रुहन के पुत्र शत्रु घाटी को विदिशा का राजा बनाने के लिए यहां आए थे, जहां उन्होंने शत्रु घाटी का राज्य अभिषेक भी कराया था. विदिशा के रामस्वरूप शर्मा बताते हैं चरण तीरथ मंदिर के पास एक विशाल कुंड बना हुआ है, उस कुंड की मान्यता है इंसान किसी भी बीमारी से ग्रस्त हो यदि इस कुंड में एक बार स्नान कर लेता है तो उसकी सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं.

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प्रभू राम के चरण कमल

आधारशिला रखे जाने पर गर्व
नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश टंडन अयोध्या से विदिशा का एक अनूठा रिश्ता बताते हैं. उन्होंने बताया भगवान राम विदिशा से वनवास के दौरान निकले थे, आज तक उनके चरणों के निशान बेतवा घाट पर अंकित हैं, उस घाट को चरण तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. मुकेश टंडन ने कहा की ये गर्व का मौका है कि भगवान राम के मंदिर की आधारशिला रखी गई है.

अयोध्या की तर्ज पर बना कनक भवन
विदिशा 65 वर्ष पहले अयोध्या के कनक भवन की तर्ज पर राम सीता के प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी. सनी घाट के सामने मंगलदास के टीले पर एक कनक भवन बना है, जहां राम और सीता विराजमान हैं. मान्यता है कि राम वनवास के दौरान पिता का श्राध करके आगे की यात्रा के लिए पद्मेश्वर घाट से बेतवा पार किये थे, जिसके बाद चलकर एक गुफा में उन्होंने विश्राम किया था, जिसे आज राम छज्जा की गुफा के नाम से जाना जाता है.

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