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रेल की पटरियों और सड़कों पर पैदल चल रहे मजदूर, एक ही आस पहुंच जाएं घर

लॉकडाउन में मजदूरों पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा है. कोई साधन नहीं मिलने पर मजदूरों पैदल ही अपने घरों तक निकल पड़े हैं. ताजा मामला उमरिया जिले के बिरसिंहपुर पाली तहसील में सामने आया है. जहां मजदूर पैदल चलते सड़कों और पटरियों पर चलते नजर आए.

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मजदूरों की मजबूरी
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Published : May 10, 2020, 10:14 PM IST

उमरिया। औरंगाबाद हादसे की दर्दनाक तस्वीरें अभी लोगों के जहन से मिटी भी नहीं थी कि, बिरसिंहपुर पाली से हादसे को न्यौता देते कुछ तस्वीरें सामने आई हैं. पूरे देश में मजदूरों का पलायन जारी है. दूसरे राज्यों के मजदूर अपने-अपने घरों की तरफ निकल रहे हैं. जिन्हें सरकारी मदद मिली तो ठीक नहीं तो मजदूर पैदल या साइकिल से अपने घर जा रहे हैं.

मजदूरों की मजबूरी

कोई सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल कर रहा है, तो कोई एक बाइक पर ही बीवी-बच्चों को लेकर चला आ रहा है. मजदूरों के मुताबिक संकट के इस दौर में उनका रोजगार छिन गया है. बिना पैसे गुजारा कैसे होगा. ऐसे में एक ही विकल्प है कि वो अपने गांव चले जाएं, वहां कम से कम दो वक्त की रोटी तो नसीब होगी.

यूपी के कुछ मजदूरों को तो घर जाने का रास्ता ही नहीं पता लिहाजा ट्रेन की पटरियों से ही घर की मंजिल तय कर रहे हैं. इन पटरियों को देखकर औरंगाबाद में हादसे का मंजर आंखों के सामने आ जाता है. लेकिन इनकी भी मजबूरी है, करें तो क्या करें.

वहीं नेताओं को अपनी नेतागिरी से ही फुर्सत नहीं. कोरोना के इस काल में इन्हें इसमें भी सियासत दिखती है. बीजेपी ने मजदूरों के पलायन को वामपंथियों की साजिश बताई है.

सियासत की बातें तो होती रहेंगी. लेकिन इस वक्त जरूरत है तो बस इस बात की, कि ये मजदूर अपनी मंजिल तक सुरक्षित पहुंच जाएं. सरकार की मदद इन तक कब पहुंचेगी और इन्हें फायदा कितना मिलेगा ये तो बाद की बात है.

उमरिया। औरंगाबाद हादसे की दर्दनाक तस्वीरें अभी लोगों के जहन से मिटी भी नहीं थी कि, बिरसिंहपुर पाली से हादसे को न्यौता देते कुछ तस्वीरें सामने आई हैं. पूरे देश में मजदूरों का पलायन जारी है. दूसरे राज्यों के मजदूर अपने-अपने घरों की तरफ निकल रहे हैं. जिन्हें सरकारी मदद मिली तो ठीक नहीं तो मजदूर पैदल या साइकिल से अपने घर जा रहे हैं.

मजदूरों की मजबूरी

कोई सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल कर रहा है, तो कोई एक बाइक पर ही बीवी-बच्चों को लेकर चला आ रहा है. मजदूरों के मुताबिक संकट के इस दौर में उनका रोजगार छिन गया है. बिना पैसे गुजारा कैसे होगा. ऐसे में एक ही विकल्प है कि वो अपने गांव चले जाएं, वहां कम से कम दो वक्त की रोटी तो नसीब होगी.

यूपी के कुछ मजदूरों को तो घर जाने का रास्ता ही नहीं पता लिहाजा ट्रेन की पटरियों से ही घर की मंजिल तय कर रहे हैं. इन पटरियों को देखकर औरंगाबाद में हादसे का मंजर आंखों के सामने आ जाता है. लेकिन इनकी भी मजबूरी है, करें तो क्या करें.

वहीं नेताओं को अपनी नेतागिरी से ही फुर्सत नहीं. कोरोना के इस काल में इन्हें इसमें भी सियासत दिखती है. बीजेपी ने मजदूरों के पलायन को वामपंथियों की साजिश बताई है.

सियासत की बातें तो होती रहेंगी. लेकिन इस वक्त जरूरत है तो बस इस बात की, कि ये मजदूर अपनी मंजिल तक सुरक्षित पहुंच जाएं. सरकार की मदद इन तक कब पहुंचेगी और इन्हें फायदा कितना मिलेगा ये तो बाद की बात है.

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