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विश्व दिव्यांग दिवस: उमरिया में 15 हजार दिव्यांग मूलभूत सुविधाओं से महरूम, कब जागेगी सरकार

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Published : Dec 3, 2020, 3:33 PM IST

Updated : Dec 3, 2020, 4:05 PM IST

मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में 15 हजार से ज्यादा दिव्यांग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. देश में हुए एक सर्वे से सामने आया है कि अधिकांश सार्वजनिक स्थलों पर सुविधाओं के लिहाज से दिव्यांगों का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है.

World Disability Day 2020
विश्व दिव्यांग दिवस

उमरिया। भले ही केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार दिव्यांगों के लिए कई योजनाएं चला रही हो लेकिन आज भी मध्यप्रदेश के उमिरया जिले में दिव्यांगों को मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हो पाई है. जिले में 15 हजार से ज्यादा दिव्यांग आज भी परेशानियों से जूझ रहे हैं. इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इनकी परेशानी को समझने और उन्हें जरूरी सहयोग देने में सरकार और समाज दोनों नाकाम दिखाई दे रही हैं. देश में हुए एक सर्वे से सामने आया है कि अधिकांश सार्वजनिक स्थलों पर सुविधाओं के लिहाज से दिव्यांगों का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है.

दिव्यांगों की सुनो सरकार

प्रमाण पत्र बनवाने में छूट जाते हैं पसीने

दिव्यांग पूरन चौधरी बताते हैं कि विकलांगता प्रमाण पत्र बनाने के लिए उन्हें कई महीने तक कार्यालय के चक्कर काटने पड़े थे. तब जाकर प्रमाण पत्र हासिल हुआ था. इस दौरान उन्हे कई दर्द से भी गुजरना पड़ा.

दृष्टि बाधित, श्रवण बाधितों के लिए नहीं है कोई व्यवस्था
मेडिकल बोर्ड मे सिर्फ हाथ पैर से संबंधित दिव्यांगों का प्रमाण पत्र देने वाले स्पेशलिस्ट ही उपलब्ध हैं. दृष्टि और श्रवण बाधित दिव्यांगों के लिए जिले में कोई व्यवस्था नहीं हैं. बोर्ड उन्हे संभागीय मुख्यालय से स्थित चिकित्सालय में रेफर कर कर देता है. ऐसे में आर्थिक तंगी झेल रहे दिव्यांगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. क्योंकि एक बार में जाने से काम नहीं होता. जिस वजह से उन्हें दो से तीन बार जाना पड़ता है.

ये भी पढे़ं : दिव्यांग दिवस: सत्येंद्र बना पहला एशियाई दिव्यांग पैरा स्वीमर, कई अवॉर्ड किए अपने नाम

शारीरिक रूप से दिव्यांगों को साधनों का आभाव
दिव्यांग पूरन चौधरी ने बताया की साधन के अभाव में वह कही जाकर मेहनत मजदूरी भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में अगर सरकार की तरफ से स्वचालित वाहन मिल जाये तो वह मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण सकते है.


आत्मनिर्भर बनाने पर हो जोर
जिला मुखालय उमरिया की खलेसर बस्ती में रहने वाले दिव्यांगों ने मांग की है कि उन्हें शासन की तरफ से रोजगार मूलक व्यवस्थों दी जाएं ताकि ये लोग आत्म सम्मान के साथ गुजर बसर कर सकें.


पेंशन में नहीं हो पता गुजारा

जिले में राजू बर्मन जैसे हजारों दिव्यांग हैं जो अभी भी शत प्रतिशत अक्षम होने के कारण परिवार पर आश्रित हैं. बूढ़े मां बाप के सहारे रहने वाले राजू बर्मन ने कहना है कि सरकार हमे कुछ काम दे और यदि काम की व्यवस्था नहीं हो पाती हैं तो महीने में मिलने वाली पेंशन राशि को 600 से बढ़ाकर पांच हजार कर दें, ताकि गुजर बसर ठीक से हो सके.

ये भी पढ़ें: अंधे होने के बावजूद ओडिशा के सुरेश खेती से जुड़कर पेश कर रहे मिसाल


विकलांगो के लिए उठाई आवाज

सोहन चौधरी जब चार साल के थे, तब सिर से पिता का साया उठ चुका था. उसके 6 माह बाद बस दुर्घटना में अपना पैर गवा चुके सोहन चौधरी जिले भर के दिव्यंगों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं है. सोहन जिले के सभी दिव्यांगों की काउंसलिंग कर उन्हे प्रमाण पत्र बनवाने सहित हमेशा लोगों की मदद करते हैं. अभी हाल ही में उमरिया के दौरे पर आए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विकलांग संघ के बैनर तले सोहन चौधरी ने ज्ञापन सौपा था.

उमरिया। भले ही केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार दिव्यांगों के लिए कई योजनाएं चला रही हो लेकिन आज भी मध्यप्रदेश के उमिरया जिले में दिव्यांगों को मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हो पाई है. जिले में 15 हजार से ज्यादा दिव्यांग आज भी परेशानियों से जूझ रहे हैं. इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद इनकी परेशानी को समझने और उन्हें जरूरी सहयोग देने में सरकार और समाज दोनों नाकाम दिखाई दे रही हैं. देश में हुए एक सर्वे से सामने आया है कि अधिकांश सार्वजनिक स्थलों पर सुविधाओं के लिहाज से दिव्यांगों का जीवन किसी चुनौती से कम नहीं है.

दिव्यांगों की सुनो सरकार

प्रमाण पत्र बनवाने में छूट जाते हैं पसीने

दिव्यांग पूरन चौधरी बताते हैं कि विकलांगता प्रमाण पत्र बनाने के लिए उन्हें कई महीने तक कार्यालय के चक्कर काटने पड़े थे. तब जाकर प्रमाण पत्र हासिल हुआ था. इस दौरान उन्हे कई दर्द से भी गुजरना पड़ा.

दृष्टि बाधित, श्रवण बाधितों के लिए नहीं है कोई व्यवस्था
मेडिकल बोर्ड मे सिर्फ हाथ पैर से संबंधित दिव्यांगों का प्रमाण पत्र देने वाले स्पेशलिस्ट ही उपलब्ध हैं. दृष्टि और श्रवण बाधित दिव्यांगों के लिए जिले में कोई व्यवस्था नहीं हैं. बोर्ड उन्हे संभागीय मुख्यालय से स्थित चिकित्सालय में रेफर कर कर देता है. ऐसे में आर्थिक तंगी झेल रहे दिव्यांगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. क्योंकि एक बार में जाने से काम नहीं होता. जिस वजह से उन्हें दो से तीन बार जाना पड़ता है.

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शारीरिक रूप से दिव्यांगों को साधनों का आभाव
दिव्यांग पूरन चौधरी ने बताया की साधन के अभाव में वह कही जाकर मेहनत मजदूरी भी नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में अगर सरकार की तरफ से स्वचालित वाहन मिल जाये तो वह मेहनत मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण सकते है.


आत्मनिर्भर बनाने पर हो जोर
जिला मुखालय उमरिया की खलेसर बस्ती में रहने वाले दिव्यांगों ने मांग की है कि उन्हें शासन की तरफ से रोजगार मूलक व्यवस्थों दी जाएं ताकि ये लोग आत्म सम्मान के साथ गुजर बसर कर सकें.


पेंशन में नहीं हो पता गुजारा

जिले में राजू बर्मन जैसे हजारों दिव्यांग हैं जो अभी भी शत प्रतिशत अक्षम होने के कारण परिवार पर आश्रित हैं. बूढ़े मां बाप के सहारे रहने वाले राजू बर्मन ने कहना है कि सरकार हमे कुछ काम दे और यदि काम की व्यवस्था नहीं हो पाती हैं तो महीने में मिलने वाली पेंशन राशि को 600 से बढ़ाकर पांच हजार कर दें, ताकि गुजर बसर ठीक से हो सके.

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विकलांगो के लिए उठाई आवाज

सोहन चौधरी जब चार साल के थे, तब सिर से पिता का साया उठ चुका था. उसके 6 माह बाद बस दुर्घटना में अपना पैर गवा चुके सोहन चौधरी जिले भर के दिव्यंगों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं है. सोहन जिले के सभी दिव्यांगों की काउंसलिंग कर उन्हे प्रमाण पत्र बनवाने सहित हमेशा लोगों की मदद करते हैं. अभी हाल ही में उमरिया के दौरे पर आए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विकलांग संघ के बैनर तले सोहन चौधरी ने ज्ञापन सौपा था.

Last Updated : Dec 3, 2020, 4:05 PM IST
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